साहित्य और टेलीविजन के बीच तालमेल नहीं — असगर वजाहत

साहित्य और टेलीविजन दो अलग अलग धारा। पढ़िए लेखक असगर वजाहत के साथ समूह संपादक दीपक सेन से 23 मई 2010 की मुलाकात।

नई दिल्ली: वरिष्ठ नाटककार और अनुवादक असगर वजाहत का कहना है कि हिन्दी में व्यावसायिक नाट्य समूहों का अभाव है। साहित्य और टेलीविजन की दुनिया के बीच तालमेल नहीं हो पा रहा है जिससे भारतीय भाषाओं का बेहतरीन साहित्य पर्दे पर नहीं पहुंच पा रहा है।

वजाहत साहब ने बातचीत में कहा, “हमारे देश में और खासकर हिन्दी में प्रोफेशनल थियेटर है ही नहीं, जिसके कारण अच्छे नाटक मंच तक नहीं पहुंच पाते हैं। हिन्दी में लोग शैकिया तौर पर पर थियेटर करते हैं। हिन्दी में अच्छे नाटक लिखे जाते हैं, लेकिन शौकिया तौर पर थियेटर करने वाले इन नाटकों को नहीं करते क्योंकि इनमें खर्चा अधिक आता है।”

असगर साहब कहते हैं, “देश में केवल राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय यानी एनएसडी एकमात्र संस्थान है और वह अकेले दम पर कितने हिन्दी नाटकों का मंचन कर सकता है। इसके विपरीत कन्नड, गुजराती और मराठी प्रोफेशन थियेटर समूह है और यही बड़ा कारण है कि इन भाषाओं में अच्छे साहित्य का मंचन होता है।”

असगर वजाहत को उनके सुप्रसिद्ध नाटक “जिन लाहौर नहीं वेख्या, ते जन्म्या नई” के लिए जाना जाता है। इस नाटक ने भारत और पाकिस्तान दोनो मुल्कों में खूब सराहना मिली।
वह बताते हैं, “इन नाटक को लेकर एक प्रसिद्ध फिल्मकार फिल्म बनाना चाहते है और वे इस पर काम कर रहे हैं।”

उन्होंने कहा, “हिन्दी में साहित्य और टेलीविजन की दुनिया के बीच तालमेल नहीं हो पाया है जिसके कारण बेहतरीन साहित्य छोटे पर्दे तक नहीं पहुंच पा रहा है। साहित्यिक रचनाओं पर आमतौर पर दूरदर्शन काम करता है और इसके लिए प्रोडक्शन करने वाले लोग गैर व्यावसायिक होते हैं जिससे इन कार्यक्रमों का प्रोडक्शन खराब होता है। जब भी प्रोफेशन तरीके से प्रोडक्शन होता है तब बेहतर काम सामने आता है।”

वह पूछते हैं, “भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश के संविधान ने 26 भाषाओं को मान्यता दी है, लेकिन क्या हर साल 26 किताबों का भी हिन्दी में अनुवाद होता है? क्या देश में तमिल से हिन्दी और तेलुगु से हिन्दी में अनुवाद के लिए किसी प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता है? हिन्दी के लेखक को दक्षिण में कोई जानता ही नहीं और कमोबेश यही स्थिति दक्षिण के लेखक को लेकर उत्तर भारत में है।”

तीन कहानी संग्रह, छह उपन्यास और छह नाटकों के लेखक का कहना है कि कुल मिलाकर अनुवाद के मामले में देश के सूरत ए हाल बेहद खराब है और इसमें काफी सुधार की जरूरत है।