कश्मीर के दर्द को बयां कर रही है कश्मीरी कविता- डॉ. रहमान राही

कश्मीर के दर्द का बयां कर रही है कश्मीरी कविता। ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले पहले कश्मीरी भाषा के रचनाकार डॉ. रहमान राही की समूह संपादक दीपक सेन से 10 नवंबर 2008 की बातचीत के अंश।

नई दिल्ली: ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले कश्मीरी लेखक डॉ. रहमान राही ने कहा कि कश्मीरी आवाम के दुख और तकलीफों को कश्मीरी भाषा के कवि और लेखक अपनी रचनाओं के जरिये बयां कर रहे हैं।

कवि और समालोचक राही ने बातचीत में कहा, “कश्मीरी भाषा की विभिन्न धाराओं के लेखक वर्तमान हालात, दुख और तकलीफों को अपनी कलम से कागज पर उकेर रहे हैं। खासकर कश्मीर से विस्थापित कश्मीरी पंडित देश के विभिन्न हिस्सों में रहकर कश्मीर के दर्द को जुबांं दे रहे है।”

वह चिंता जताते हैं, “कश्मीरी भाषा में वर्तमान समय में लिखा जा रहा साहित्य समसामयिक होने के कारण वर्तमान में तो काफी प्रभावी लग रहा है। मगर जब घाटी के हालात बदल जायेंगे तब भी क्या लोग इस साहित्य को पसंद करेंगे? इस बारे में कवियों और लेखकों को सोचना चाहिए और गुणवत्ता का ध्यान रखना होगा।”

राही मानते हैं, “कश्मीरी साहित्य की पुरानी पीढ़ी छंद के लिहाज से आजादी ले लेती थी, वहीं नयी पीढ़ी के कलमकार मानते हैं कि छंद में स्वतंत्रता नहीं लेनी चाहिए। यह अन्य भारतीय साहित्य से अलग लगता है। पुराने वक्त के काव्य में गीत और गज़ल प्रमुख थे और नयी पीढ़ी के रचनाकार कविता को काफी तवज्जो दे रहे हैं। इसमें भी लघुकविता यानी चार या छह पंक्ति की कविता कहने का चलन बढ़ा है।”

उनका कहना है,”इसके साथ ही सूचनापरक साहित्य का सृजन काफी हो रहा है। जब भी हालात खराब होते हैं तो लोगों में रचनात्मकता बढ़ जाती है। कश्मीर के कलमकारों की रचनात्मकता में भी खासी वृद्धि हुई है। खासकर कश्मीरी पंडित वर्ग में कवयित्रियों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है। कश्मीरी भाषा में आज भी काफी संख्या में महिलायें काव्य सृजन कर रही हैं।”

राही साहब कहते हैं, “कश्मीरी भाषा की पहली प्रमुख शायरा महिला थी जिनका नाम लल्ला था। कश्मीरी भाषा के काव्य में महिलाओं का विशेष योगदान रहा है और कश्मीरी कविता को जवान करने में भी महिलाओं की मिसाल दूसरी भारतीय जबानों के मुकाबले अधिक मिलती है।”

उन्होंने कहा, “देश में कश्मीरी जैसी तमाम क्षेत्रीय भाषायें हैं जिनमें बेहतरीन साहित्य लिखा जा रहा है, लेकिन उनके पाठक काफी कम हैं। इसलिए अनुवाद का बंदोबस्त होना बेहद जरूरी है।”
एक मजेदार वाकये का जिक्र करते हुए वे बताते है, “मुझे कश्मीरी भाषा में कविता लिखने के लिए ज्ञानपीठ मिलने का समाचार मिलने के बाद कश्मीर की खूबसूरती तारीफ करने वाले एक सज्जन ने बड़ी ही उत्सुकता से मुझसे पूछा….क्या कश्मीरी भाषा में कविता लिखी जाती है!”

उन्होंने कहा, “केवल कविता लेखन में ही नहीं बल्कि सिलसिला दूसरी तरफ भी तेजी से बढ़ रहा है और गद्य लेखन में नये लेखक उभरकर सामने आ रहे हैं। मुझे विश्वास है कि ये देश की नयी भाषा समूह की सबसे प्राचीन भाषा कश्मीरी को समृद्ध करेंगे।”