आरती ‘ओम जय जगदीश हरे’ के 150 वर्ष पूरे, जानिए इसका इतिहास

नई दिल्ली: हम सभी के जीवन से जुड़ी आरती ‘ओम जय जगदीश हरे’ की रचना के 150 वर्ष पूरे हो गये हैं। यह आरती घर-घर में गायी जाती है और सभी सनातन धर्म को मानने वाले सुबह सांझ इस आरती को गाते है। आइए जानते हैं, इसके रचनाकार और इससे संबंधित इतिहास के बारे में।

‘ओम जय जगदीश हरे’ आरती की रचना 1870 में की गयी थी। इस आरती के रचनाकार पंडित श्रद्धाराम फ़िल्लौरी थे। उनका मूल नाम पंडित श्रद्धाराम शर्मा था। फ़िल्लौरी उपनाम रखने के पीछे कारण उनका जन्म पंजाब के फ़िल्लौर में 1834 को हुआ था। शर्मा जी सनातन धर्म प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, संगीतज्ञ तथा हिन्दी और पंजाबी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे।

फ़िल्लौरी जी के पिता जयदयालु एक अच्छे ज्योतिषी थे। उनके पिता ने अपने बेटे का भविष्य पढ़ लिया था और भविष्यवाणी की थी कि यह एक अद्भुत बालक होगा। बालक श्रद्धाराम को बचपन से ही धार्मिक संस्कार विरासत में मिले थे। उन्होंने सात साल की उम्र तक गुरुमुखी में पढाई की।

पंडित श्रद्धाराम फ़िल्लौरी ने दस साल की उम्र में संस्कृत, हिन्दी, फ़ारसी तथा ज्योतिष की पढाई शुरु की और कुछ ही वर्षो में वे इन सभी विषयों के पारंगत हो गए। उनका विवाह सिख महिला महताब कौर के साथ हुआ था। 24 जून 1881 को लाहौर में उनका देहावसान हुआ।

1877 में पंडित श्रद्धाराम फ़िल्लौरी का उपन्यास ‘भाग्यवती’ प्रकाशित हुआ। इसे हिन्दी का पहला उपन्यास माना जाता है। इस उपन्यास की पहली समीक्षा अप्रैल 1887 में हिन्दी की मासिक पत्रिका ‘प्रदीप’ में प्रकाशित हुई थी।

क्या यह सोच पाना भी संभव है कि इस आरती का गायन से पहले हम लोग अपने हवन कीर्तन सहित किस किस अनुष्ठान में करते हैं। कितने ही गायकों ने इस आरती को अपनी आवाज दी है। मगर हम कभी नहीं सोचते कि इसका रचनाकार कौन है। इसकी रचना कब की गयी ?