खड़ी बोली के प्रवाह को कायम रखना जरूरी- कृष्णा सोबती

खड़ी बोली के लिए यह कठिन वक्त है। पढ़िए समूह संपादक दीप​क सेन के साथ 17 फरवरी 2009 के साक्षात्कार का मुख्य अंश।

नई दिल्ली: हिन्दी की उम्दा फिक्शन लेखिका कृष्णा सोबती (Fiction writer Krishns Sobti) ने एक दफा कहा था कि हिन्दी के लिए कठिन वक्त है। दूसरी भाषाओं के इस्तेमाल के बीच खडी बोली का प्रवाह रखना बेहद जरूरी है। ‘मितरो मरजानी’, ‘जिंदगीनामा’, ‘ए लड़की’ और ‘दिल ओ दानिश’ जैसी अपनी रचानाओं के जरिये मानवीय रिश्तों को बडी बारीकी से उकेरने वाली लेखिका कृष्णा सोबती ने व्यक्तिगत मुलाकात में कहा था कि जिस वक्त में हम सांस ले रहे है यह हिन्दी के लिए कठिन समय है। नये लेखकों द्वारा भारतीय भाषाओं के शब्दों का हिन्दी में बेबाकी के इस्तेमाल से खड़ी बोली का विस्तार हो रहा है। ऐसे में अगर हमारे लिए राजभाषा के तेवर और कलेवर को बरकरार रखना बेहद जरूरी है।

कृष्णा जी और लेमन टी

कृष्णा जी ने कहा, “मुझे तीन दफा कृष्णा जी के घर जाने का मौका मिला और दफा वे बहुत प्रेम से खुद लेमन टी बनाकर पिलाती थी। एक दफा मैने कृष्णा जी से कहा कि यदि आप मेरे घर के नजदीक रहती होती तो मैं रोज उनसे लेमन टी पीने आ जाता, इस पर वे हंसने लगी और बडी आत्मीयता से कहा कि आ जाओ यहीं। वे बेहद शानदार लेमन टी बनाती थी। मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे उनका स्नेह मिला।“

भारतीय भाषाओं में बेहतर लेखन

कृष्णा जी ने कहा, “भारतीय भाषाओं में बहुत बेहतरीन लिखा जा रहा है। इन रचनाओं में देश की कला, साहित्य, दर्शन, सभ्यता और संस्कृति नजर आती है। अंग्रेजी की अपनी सीमायें हैं, लेकिन इसके लेखकों ने भी भारतीयता को अपनी लेखनी में स्थान दिया है। बुकर जैसा प्रतिष्ठित पुरस्कार हासिल किया।“

उन्होंने कहा, “आजादी के बाद लोगों के अंदर जो आत्मविश्वास दिखाई दिया था। कुछ वैसा ही आत्मविश्वास वैश्वीकरण के इस दौर में नजर आ रहा है। मगर यह उससे कुछ अलग है। नये लेखक महानगरों के बाशिंदे है। वे अपने नजरिये से देश को देख रहे हैं। उनका कथ्य सीधा, सादा और विश्वसनीय है।“

भारतीय भाषाओं के शब्दों का प्रयोग

कृष्णा जी ने कहा, “उर्दू शरारती जबान है जो दो लोगों को करीब लाती है। उर्दू के प्रयोग से समग्रता, सहजता और नफासत के साथ जहिर किया जा सकता है। पिछले कुछ सालों में हिन्दी के प्रति दूसरी भाषाओं के लोगों का बैर कम हुआ है। अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों के प्रयोग से हिन्दी की शब्दावली काफी समृद्ध हुई है।“

फिक्शन लेखिका कृष्णा सोबती ने कहा, “बांग्ला लेखकों के रचनाकर्म का काफी बडी तादाद में हिन्दी में अनुवाद हुआ है। शायद ही कोई हिन्दी साहित्य प्रेमी हो जिसने टैगोर और शरदचंद्र को ना पढा हो।“

उन्होंने कहा, “देश के संविधान में सभी को बराबर का अधिकार है। औरत के भी मूलभूत अधिकार और आर्थिक स्वतंत्रता हैं और किसी को उस पर अपनी संस्कृति थोपने का अधिकार नहीं है। अनुशासन तोडने वालों से केंद्र सरकार को कडाई से निपटना चाहिए।“

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