अंग्रेजों ने अंग्रेजी गीत कर दिया जरूरी, बंकिम को लगी ठेस; राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ की कहानी

नई दिल्लीः बात 1870-80 के दशक की है, जब ब्रिटिश शासकों ने सरकारी समारोहों में ‘गॉड! सेव द क्वीन’ गीत गाया जाना अनिवार्य कर दिया था। अंग्रेजों के इस आदेश से उन दिनों डिप्टी कलेक्टर रहे बंकिमचन्द्र चटर्जी को बहुत ठेस पहुंची। उन्होंने इसके विकल्प के तौर पर 7 नवंबर 1876 में संस्कृत और बांग्ला के मिश्रण से एक नये गीत की रचना की। उसका शीर्षक दिया ‘वंदे मातरम्’। आज इस गीत का कई भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है। जी हाँ, ऐसी थी बंकिम चंद्र चटर्जी या बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की शख्सियत।

वैसे तो बंकिम चंद्र चटर्जी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं। साहित्य की दुनिया में उनका नाम सबसे उपर की श्रेणी में दर्ज है। वे एक साथ उपन्यासकार भी थे कवि भी थे और पत्रकार भी। उन्होंने बंग्ला में चौदह उपन्यास और कई गंभीर, सीरियो-हास्य, व्यंग्य, वैज्ञानिक और आलोचनात्मक ग्रंथ लिखे। उन्हें बंगाली में साहित्य सम्राट के रूप में जाना जाता है। उनकी सबसे बड़ी पहचान राष्ट्र के सम्मान में समर्पित राष्ट्र गीत वंदे मातरम् की रचना है। यह गीत उन्होंने अपने उपन्यास आनंदमठ में लिखा में लिखा था, जो 1882 में प्रकाशित हुआ।

बंकिम चंद्र का जन्म पश्चिम बंगाल के नैहाटी में एक संभ्रांत बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अपने पिता यादव चंद्र चट्टोपाध्याय मिदनापुर के डिप्टी कलेक्टर थे। बंकिम चंद्र की शुरुआती शिक्षा वहीं मिदनापुर में हुई, उसके बाद उन्होंने हुगली स्थित मोहसिन कॉलेज में दाखिला लिया और करीब 6 साल तक वहां पढ़ाई की। साल 1856 में वे कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज गए, जहां से उन्होंने 1859 में बीए पास किया। इसके बाद उन्होंने साल 1869 में लॉ की डिग्री भी हासिल की। वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के पहले स्नातकों में से एक थे।

पढ़ाई पूरी करने के बाद बंकिम चंद्र चटर्जी को जेसोर के डिप्टी कलेक्टर के पद पर नियुक्त किया गया, जिसके बाद वे डिप्टी मजिस्ट्रेट के पद तक पहुंचे। वे कुछ समय के लिए बंगाल सरकार के सचिव पद पर भी तैनात रहे और साल 1891 में वे सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हुए।

उनकी शादी 11 साल की कम उम्र में कर दी गई थी, जो उस समय एक आम बात थी। शादी के समय उनकी पत्नी की उम्र महज 5 साल थी। जब वे 22 साल के हुए तो उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया। पहली पत्नी के निधन के बाद उन्होंने राजलक्ष्मी से दूसरा विवाह किया, जिनसे उन्हें तीन बेटियां हुईं।

इस बीच डिप्टी कलेक्टर रहते उन्होंने उन्होंने 7 नवंबर, 1875 को ‘वंदे मातरम’ गीत लिखा था। ‘वंदे मातरम’ के बोल उन्होंने उपन्यास ‘आनंदमठ’ लिखने से पहले लिखे थे।

बंकिम ने 1882 में अपना उपन्यास आनंदमठ प्रकाशित किया जिसमें ‘वंदे मातरम’ के छंद भी थे। यह एक राजनीतिक उपन्यास है जिसमें एक संन्यासी सेना को ब्रिटिश सैनिकों से लड़ते हुए दिखाया गया है। वंदे मातरम की धुन बाद में रवींद्रनाथ टैगोर ने रची थी।

उन्होंने कई उपन्यास और कविताएं लिखीं, इसके साथ ही उनके कई लेखों ने लोगों में क्रांतिकारी विचारों का अलख जगाने का काम किया।

कपालकुंडल (1866), मृणालिनी (1869), विषवृक्ष (1873), चंद्रशेखर (1877), रजनी(1877), राजसिंह (1881) और देवी चौधरानी (1884) जैसे उनके कई उपन्यास काफी प्रसिद्ध हुए थे। दुर्गेशानंदिनी और कपालकुंडला उनके पहले प्रमुख प्रकाशन थे। दोनों उपन्यासों को खूब सराहा गया और अन्य भाषाओं में भी अनुवादित किया गया।

उपन्यास के अलावा उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें कृष्ण चरित्र’, ‘धर्मतत्व’ और ‘देवतत्व इत्यादि शामिल हैं। कई पाठक उन्हें बंगाली साहित्य के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में से एक मानते हैं और दावा करते हैं कि उनके उपन्यासों को समझने के लिए पहले उन्हें समझने की जरूरत है।

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