नई दिल्लीः बीच मार्च से अब तक कोरोना ने जो-जो रंग दिखाये हैं, वह स्पष्ट करता है कि पूंजी वालों के लिए यह मुनाफा बटोरने का मौका है और सरकारों के लिए राजनीति करने का मौका। बच गये गरीब और मध्य वर्ग, तो उसके हिस्से में रोने के सिवा कुछ नहीं बचा। रोजगार गया, बच्चों की पढ़ाई स्थगित और बचत का पैसा भी साफ। आगे भी नाउम्मीदी।
दवा और वैक्सीन के नाम पर बड़ा खेल
कोरोना की रोकथाम के लिए दुनिया भर में प्रयोग चल रहे हैं और करोड़ों खर्च किये जा रहे हैं, लेकिन सब एलोपैथ में ही है। चिकित्सा विज्ञान की दूसरी सभी विधाएं हाशिये पर धकेल दी गई है। बिग फार्मा लॉबी इतनी मजबूत है कि आयुर्वेद, होमियोपैथ, जायरोपैथ आदि की कोई पूछ नही। अगर आप किसी तरीके से गैर एलोपैथ माध्यमों का फेसबुक, यूट्यूब, टि्वटर आदि से जानकारी फैलाना चाहते हैं, तो आप रोक दिये जायेंगे। बस, जानिये तो सिर्फ काढ़ा और घरेलू उपचार जो सरकार बता चुकी है।
चूंकि कोरोना प्रोटीन के कवच में कैद वायरस है इसलिए इसके लक्षण सार्वभौम रूप से एक समान भी नहीं हैं जिसकी वजह से दिक्कत हो रही है। कहीं-कहीं तो लक्षण के बिना भी पीड़ित मरीज मिले हैं, जो अचानक मौत के मुंह में जा रहे हैं। ऐसे में प्रभावी वैक्सीन की संभावना भी संदिग्ध है।
पाथ ने किया था आदिवासी बच्चियों पर सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन का ट्रायल
इसे एड्स (AIDS) से भी समझा जा सकता है। इसकी रोकथाम के लिए अरबों फूंके गये, लेकिन आज तक सटीक दवा नहीं बन सकी। ऐसा ही सर्वाइकल कैंसर के साथ हुआ। बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाऊंडेशन द्वारा प्रायोजित संस्था ‘प्रोग्राम फॉर एप्रोप्रियेट टेक्नोलॉजी इन हेल्थ‘ (पाथ) ने 2009 में तेलांगना और गुजरात में आदिवासी बच्चियों पर सर्वाइकल कैंसर के वैक्सीन का ट्रायल किया था। सफलता तो नहीं मिली लेकिन इस प्रयास में कई बच्चियों की मौत हो गई थी। इस मामले में राज्य सरकारों और इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की चुप्पी ने सब कुछ साफ कर दिया था कि महामारी पूंजी वालों के लिए अवसर के सिवा कुछ नहीं है।
कोरोना खौफ के बीच उम्मीद की किरण
कोरोना मामले में उम्मीद की किरण भी उभर रही हैं। इसकी प्रामाणिकता आने वाले समय में साबित होगी। अभी रूस में ऐविफैविर (Hydroxychloroquine) नामक दवा विकसित हुई है। अमेरिका ने भी वैक्सीन बनाई है, जो काफी महंगी है। इसके पांच डोज मरीज को देने होंगे जिसकी लागत तकरीबन 32 हजार रुपये होगी। गरीबों को तब या तो मरना होगा या बच कर रहना।
अमेरीका ने हटाया भारत की Hydroxychloroquine से प्रतिबंध
भारत के पास पहले से Hydroxychloroquine दवा है जिस पर से अमेरिका ने हाल में प्रतिबंध हटाया है। यह दवा दुनिया भर में भेजी गई और सस्ती भी है, लेकिन बिग फार्मा कंपनियों को सस्ते में लाभ नहीं मिलना सो उसके दबाव पर इसके उपयोग को रोकने के प्रयास किये गये। सब कुछ तो WHO पर निर्भर है और उस पर चीन व बिग फार्मा कंपनियों का साथ देने का आरोप शुरू से ही लगता आ रहा है।
भारत बना रहा है कोरोना के लिए AZD1222 नाम की वैक्सीन
इधर ब्रिटेन की दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने कहा है कि उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की ओर से तैयार कोरोना वायरस वैक्सीन की लाखों डोज का निर्माण शुरू कर दिया है। कंपनी ने बताया है कि ब्रिटेन, स्विट्जरलैंड, नॉर्वे के साथ-साथ भारत में भी वैक्सीन का निर्माण किया जा रहा है, जिसका नाम AZD1222 है। कंपनी ने दावा किया है कि कंपनी वैक्सीन के निर्माण से लाभ नहीं कमाएगी जब तक WHO महामारी खत्म होने का ऐलान नहीं करता।
Read also: Controversy on unlock: विशेषज्ञों को अनसुना कर पीएम मोदी ने हटाया लॉकडाउन
Read also: भारतीय राजनीति और मिडिल क्लास सिटिजन्स की उदासीनता