Air India: क्या खत्म हो जायेगा भारत की पहचान ‘महाराजा’ ?

नई दिल्ली: एयर इंडिया कर्ज में डूबी हुई है, पहले तो इसे घाटे से उबारने की बात हुई, लेकिन बात नहीं बनी, उल्टा साल-दर-साल घाटा बढ़ता गया। इस बीच करीब एक दशक से एयर इंडिया (Air India) में विनिवेश की भी बात चल रही है, लेकिन अभी तक इसमें भी सफलता नहीं मिल पाई है।

जैसे-जैसे एयर इंडिया (Air India) कर्ज में डूबती गई, सरकार भी इससे किनारा करती गई है। पहले एयर इंडिया में कुछ हिस्सेदारी बेचने की बात चल रही थी। लेकिन अब हमारे देश की स्वदेशी की पक्षकार पार्टी की सरकार ने साफ कर दिया है कि एयर इंडिया की पूरी हिस्सेदारी बेची जाएगी। सरकार का कहना है कि हवाई जहाज को उड़ाना सरकार का काम नहीं है। इसलिए इसे निजी कंपनियों को सौंप देंगे।

क्या पाकिस्तान से पिछड़ जायेगा भारत?

दक्षेस देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, अफगानिस्तान, भूटान, मालद्वीप और भारत की अपनी सरकारी स्वामित्व वाली एयरलाइंस हैं। यदि महाराजा बिक जाता है तो भारत दक्षिण एशिया का पहला देश बन जायेगा जिनकी अपनी सरकारी एयरलाइंस नहीं होगी। इस वक्त दुनिया में करीब 113 देशों की अपनी सरकारी एयरलाइंस हैं। ज्यादातर फायदे में चल रही है।

सरकारी एयरलाइंस देश की पहचान होती है। मगर वर्तमान और पूर्ववर्ती सरकारों के सांसदों ने एयर इंडिया (Air India) का इस्तेमाल देश की पहचान बनाने से अधिक सांसदों, विधायकों, उच्चाधिकारियों को फायदा पहुंचाने के लिए किया। कभी प्राइवेट कंपनियों की तरह एयर इंडिया का इस्तेमाल फायदा कमाने के लिए नहीं किया गया।

कैसे मुनाफे से घाटे में उड़ान भरने लगी Air India

दरअसल, एयर इंडिया इस बुरे हाल में पहुंच जाएगी, एक दशक पहले इसकी कल्पना तक नहीं की गई होगी। एक दशक से पहले भले ही ये सरकारी एयरलाइन कंपनी फायदे में नहीं चल रही थी, लेकिन इसके फायदे में आने की पूरी उम्मीद थी।

एयर इंडिया पर 58 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है, और इसे चुकाने के लिए एयरलाइंस को सालाना 4,000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। ये आंकड़ा कोरोना संकट से पहले का है। एयर इंडिया को वित्त वर्ष 2018-19 में 8,400 करोड़ रुपये का मोटा घाटा हुआ। एयर इंडिया को एक साल में जितना घाटा हुआ है उतने में तो एक नई एयरलाइंस शुरू की जा सकती है।

2000 तक मुनाफे में थी कंपनी

साल 1954 को विमानन कंपनी का राष्ट्रीयकरण किया गया था। तब सरकार ने हवाई सेवा के लिए दो कंपनियां बनाईं. घरेलू सेवा के लिए इंडियन एयरलाइंस, और विदेश के लिए एयर इंडिया। तब से लेकर के साल 2000 तक यह सरकारी एयरलाइन कंपनी मुनाफे में थी। पहली बार 2001 में कंपनी को 57 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। तब विमानन मंत्रालय ने तत्कालीन प्रबंध निदेशक माइकल मास्केयरनहास को दोषी मानते हुए पद से हटा दिया था।

एयर इंडिया के इतिहास पर नजर डालें तो राजनीतिक दखलअंदाजी और कुप्रबंधन की वजह से बेहतरीन कंपनी देखते-ही देखते कंगाल हो गई। अब कर्मचारियों को समय से पहले रिटायर्ड और विदआउट पे लीव पर भेजने की बात हो रही है। एयर इंडिया और उसकी सहायक पांच कंपनियों में कम से कम 20 हजार कर्मचारी काम करते हैं।

बर्बादी की शुरुआत?

साल 2007 की बात है, केंद्र सरकार ने एयर इंडिया में इंडियन एयरलाइंस का विलय कर दिया। दोनों कंपनियों का विलय के वक्त संयुक्त घाटा 771 करोड़ रुपये का था। विलय से पहले इंडियन एयरलाइंस महज 230 करोड़ रुपये के घाटे में थी, उम्मीद की जा रही थी कि जल्द फायदे में आ जाएगी। वित्त वर्ष 2006-07 की रिपोर्ट के अनुसार एयर इंडिया विलय से पूर्व करीब 541 करोड़ रुपये नुकसान में थी।

सरकार दावा कर रही थी कि विलय के बाद जो एक कंपनी बनेगी, वह हर साल 6 अरब का लाभ कमा सकेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। विलय के बाद कंपनी का घाटा लगातार बढ़ता गया। फिर घाटे को कम करने के लिए कंपनी ने लोन लेना शुरू किया, और फिर कर्ज में कंपनी डूबती गई।

Air India का बेजा इस्तेमाल

कुप्रबंधन और सरकारी सेवा में तत्परता की वजह से एयर इंडिया का बेजा इस्तेमाल हुआ। सरकारी बकाया समय पर नहीं मिलने से बोझ बढ़ता गया। एयर इंडिया को ज्यादा ऑपरेटिंग कॉस्ट और विदेशी मुद्रा में घाटे के चलते भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है। इसे संकट से उबारने के लिए सही समय पर सही कदम नहीं उठाए गए।

साल 2007-08 में 2226 करोड़ रुपये, 2008-09 में 7200 करोड़ रुपये, 2009-10 में घाटा बढ़कर 12,000 करोड़ रुपये हो गया। यह आंकड़ा और ज्यादा होता, लेकिन 2009 में कर्ज घटाने के लिए एयर इंडिया ने अपने कुछ विमान भी बेच दिए थे। जानकार मानते हैं कि विलय ने कंपनी का बंटाधार कर दिया।

सौदे पर भी सवाल

मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी दावा किया गया है कि 2005 में 111 विमानों की खरीद का फैसला एयर इंडिया की आर्थिक संकट की सबसे बड़ी वजह थी। इस सौदे पर 70 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे। इतने बड़े सौदे से पहले विचार नहीं किया गया कि ये कंपनी के लिए यह व्यावहारिक होगा या नहीं। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने भी इस सौदे पर सवाल खड़े किए थे। हालांकि सौदे को लेकर खूब राजनीति हुई थी।

अगस्त, 2009 में एयर इंडिया प्रमुख अरविंद जाधव ने तीन साल में बेहतरी की योजना के तहत छंटनी और अन्य उपायों के बारे में ऐलान किया। इसके विरोध में भूख हड़ताल शुरू कर दी गई। विमान चालकों ने भी आंदोलन छेड़ दिया।

बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा एक कारण

एयर इंडिया प्रबंधन का ढुलमुल रवैया भी एक कारण रहा। एयर इंडिया की फ्लाइट्स अक्सर लेट लतीफी का शिकार होती रहीं। कर्मचारियों में हड़ताल आम बात हो गई, जिस वजह से सेवाएं प्रभावित हुईं। साल 2018 एअर इंडिया के पास सिर्फ 13.3 प्रतिशत मार्केट शेयर था ये सिर्फ 45.06 लाख पैसेंजर्स थे।

एक रिपोर्ट के मुताबिक निजी एयरलाइन कंपनियों के विमान एक दिन में कम से कम 14 घंटे हवा में रहते हैं। वहीं, एयर इंडिया के जहाज सिर्फ 10 घंटे उड़ान भरते हैं। लेट लतीफी की वजह से भी यात्री Air India से जाने से बचते हैं। एयर इंडिया के विमानों को उन रूटों को लगातार रखा गया, जिस पर प्राइवेट कंपनियां ने सेवा देने से इनकार कर दिया। वहीं, लाभों वाले रूटों को बिना वजह दूसरी एयरलाइंस को दे दिया गया।

दिखी थी एक उम्मीद की किरण

2007 के बाद पहली बार वित्त वर्ष 2017 में एयर इंडिया को 105 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था। ये उम्मीद की किरण अश्विनी लोहानी ने दिखाई थी। इसलिए पिछले साल फिर अश्विनी लोहानी को एयर इंडिया का चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर बनाकर कंपनी की आर्थिक सेहत सुधारने की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन इस बार वो सफल नहीं रहे।

2020 में कोरोना की वजह से हवाई सेवाएं बुरी तरीके से प्रभावित हैं, दूसरी ओर एयर इंडिया की बैलेंस शीट लगातार बिगड़ती जा रही है। क्या कर्मचारियों की छुट्टी कर देने से एयर इंडिया की सेहत सुधर जाएगी? एयर इंडिया के कर्मचारियों के वेतन पर हर महीने करीब 300 करोड़ रुपये खर्च होते हैं।

Air India का इतिहास

आजादी के वक्त देश में कुल 9 छोटी-बड़ी विमानन कंपनियां थीं। साल 1954 में इसका राष्ट्रीकरण कर दिया गया। सभी कंपनियों को मिलाकर दो कंपनियां बनाई गईं, घरेलू सेवा के लिए इंडियन एयरलाइन्स, और विदेश के लिए एयर इंडिया। वर्ष 1953 तक एयर इंडिया का स्वामित्व टाटा समूह के पास था। इसे सबसे पहले जेआरडी टाटा ने 1932 में टाटा एयरलाइंस के नाम से लॉन्च किया था। 1946 में इसका नाम बदल कर एयर इंडिया कर दिया गया और 1953 में सरकार ने इसको टाटा से खरीद लिया था।

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