कोरोना से लड़ने वाले स्वास्थ्य कर्मियों का ऋणी है राष्ट्र- राष्ट्रपति कोविंद

नई दिल्ली: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि हमारे राष्ट्र-नायकों ने विविध विचारों को राष्ट्रीयता के एक सूत्र में पिरोया था। महात्मा गांधी के व्यक्तित्व में एक संत और राजनेता का जो समन्वय दिखाई देता है, वह भारत की मिट्टी में ही संभव था। साथ ही उन्होंने कहा कि इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के उत्सवों में हमेशा की तरह धूम-धाम नहीं होगी, क्योंकि पूरी दुनिया एक घातक वायरस से जूझ रही है।

राष्ट्र के नाम स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर अपने संबोधन में कोविंद ने कहा कि इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के उत्सवों में हमेशा की तरह धूम-धाम नहीं होगी। पूरी दुनिया एक ऐसे घातक वायरस से जूझ रही है जिसने जन-जीवन को भारी क्षति पहुंचाई है और हर प्रकार की गतिविधियों में बाधा उत्पन्न की है। इस वैश्विक महामारी के कारण हम सबका जीवन पूरी तरह से बदल गया है।

उन्होंने कहा, ‘राष्ट्र उन सभी डॉक्टरों, नर्सों तथा अन्य स्वास्थ्य-कर्मियों का ऋणी है जो कोरोना वायरस के खिलाफ इस लड़ाई में अग्रिम पंक्ति के योद्धा रहे हैं। दुर्भाग्यवश, उनमें से अनेक योद्धाओं ने इस महामारी का मुक़ाबला करते हुए अपने जीवन का बलिदान दिया। ये हमारे राष्ट्र के आदर्श सेवा-योद्धा हैं।….ऐसे डॉक्टर, स्वास्थ्य-कर्मी, आपदा प्रबंधन दलों के सदस्य, पुलिस कर्मी,सफाई कर्मचारी, डिलीवरी स्टाफ,परिवहन, रेल और विमानन कर्मी,विभिन्न सेवा-प्रदाता, सरकारी कर्मचारी,समाजसेवी संगठन और उदार नागरिक, अपने साहस तथा निस्वार्थ सेवा के प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। इस महामारी का सबसे कठोर प्रहार, गरीबों और रोजाना आजीविका कमाने वालों पर हुआ है।’

उन्होंने कहा कि इसी दौरान, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में आए‘अम्फान’ चक्रवात ने भारी नुकसान पहुंचाया, जिससे हमारी चुनौतियां और बढ़ गयीं। इस आपदा के दौरान, जान-माल की क्षति को कम करने में आपदा प्रबंधन दलों, केंद्र और राज्यों की एजेंसियों तथा सजग नागरिकों के एकजुट प्रयासों से काफी मदद मिली। पूर्वोत्तर और पूर्वी राज्यों में, देशवासियों को बाढ़ के प्रकोप का सामना करना पड़ रहा है। इस तरह की आपदाओं के बीच, समाज के सभी वर्गों के लोग,एकजुट होकर,संकट-ग्रस्त लोगों की मदद करने के लिए आगे आ रहे हैं।

उन्होंने कहा कि हमने कोविड-19के खिलाफ लड़ाई में अन्य देशों की ओर भी मदद का हाथ बढ़ाया है। अन्य देशों के अनुरोध पर, दवाओं की आपूर्ति करके, हमने एक बार फिर यह सिद्ध किया है कि भारत संकट की घड़ी में, विश्व समुदाय के साथ खड़ा रहता है। क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर महामारी का सामना करने के लिए प्रभावी रणनीतियों को विकसित करने में हमारी अग्रणी भूमिका रही है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अस्थायी सदस्यता के लिए, हाल ही में सम्पन्न चुनावों में मिला भारी समर्थन, भारत के प्रति व्यापक अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना का प्रमाण है।

उन्होंने कहा कि मेरा मानना ​​है कि कोविड-19 के विरुद्ध लड़ाई में, जीवन और आजीविका दोनों की रक्षा पर ध्यान देना आवश्यक है। हमने मौजूदा संकट को सबके हित में, विशेष रूप से किसानों और छोटे उद्यमियों के हित में, समुचित सुधार लाकर अर्थव्यवस्था को पुन:गति प्रदान करने के अवसर के रूप में देखा है। कृषि क्षेत्र में ऐतिहासिक सुधार किए गए हैं। अब, किसान बिना किसी बाधा के, देश में कहीं भी,अपनी उपज बेचकर उसका अधिकतम मूल्य प्राप्त कर सकते हैं। किसानों को नियामक प्रतिबंधों से मुक्त करने के लिए ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम’ में संशोधन किया गया है। इससे किसानों की आय बढ़ाने में मदद मिलेगी।

उन्होंने कहा कि भविष्य की जरूरतों के अनुसार शिक्षा प्रदान करने की दृष्टि से, केंद्र सरकार ने हाल ही में ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ लागू करने का निर्णय लिया है। मुझे विश्वास है कि इस नीति से, गुणवत्ता से युक्त एक नई शिक्षा व्यवस्था विकसित होगी जो भविष्‍य में आने वाली चुनौतियों को अवसर में बदलकर नए भारत का मार्ग प्रशस्‍त करेगी। हमारे युवाओं को अपनी रूचि और प्रतिभा के अनुसार अपने विषयों को चुनने की आजादी होगी। उन्हें अपनी क्षमताओं को विकसित करने का अवसर मिलेगा।हमारी भावी पीढ़ी, इन योग्‍यताओं के बल पर न केवल रोजगार पाने में समर्थ होगी, बल्कि दूसरों के लिए भी रोजगार के अवसर उत्‍पन्‍न करेगी।

अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का शुभारंभ का जिक्र करते हुए कोविंद ने कहा कि देशवासियों ने लंबे समय तक धैर्य और संयम का परिचय दिया और देश की न्याय व्यवस्था में सदैव आस्था बनाए रखी। श्रीराम जन्मभूमि से संबंधित न्यायिक प्रकरण को भी समुचित न्याय-प्रक्रिया के अंतर्गत सुलझाया गया। सभी पक्षों और देशवासियों ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय को पूरे सम्मान के साथ स्वीकार किया और शांति, अहिंसा, प्रेम एवं सौहार्द के अपने जीवन मूल्यों को विश्व के समक्ष पुनः प्रस्तुत किया। इसके लिए मैं सभी देशवासियों को बधाई देता हूँ।

अंत में उन्होंने कहा कि हमारे पास विश्व-समुदाय को देने के लिए बहुत कुछ है, विशेषकर बौद्धिक,आध्यात्मिक और विश्व-शांति के क्षेत्र में। इसी लोक-मंगल की भावना के साथ, मैं प्रार्थना करता हूं कि समस्त विश्व का कल्याण हो:

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित् दु:खभाग् भवेत्॥