पटना : रामविलास पासवान की चुनावी बेला में मौत और लालू प्रसाद की जेल से रिहाइ्र की संभावना के बाद खेल रोचक हो गया है। लेकिन चिराग और तेजस्वी इससे कितना लाभ ले पायेंगे, अभी समय के गर्भ में है। हां, एनडीए के लिए कठिन घड़ी जरूर आ गयी है।
सहानुभूति पाने में लोजपा आगे
147 सीट से लोजपा उम्मीदवारों की लड़ाई, जदयू पर उसका हमलावर होना चिराग पासवान के हाथ मजबूत कर सकता है क्योंकि सुशासन के आडंबर फजी शराबबंदी से बिहार के वोटर भी आजिज आ चुके हैं। सहानुभूति वोटों की लहर पर सवार लोजपा जदयू की चुनावी नैया को मंझधार में फंसा दे तो कोई आश्चर्य नहीं!
कटुता नहीं पाली थी रामविलास ने
रामविलास पासवान ने कभी कटुता की राजनीति नहीं की। कई दलों से रिश्ते बने-टूटे, मगर संबंधों में कभी कटुता नहीं आई। बेशक उन्होंने दलितों की राजनीति की लेकिन अन्य दलित नेताओं की तरह सवर्ण जातियों को गाली नहीं दी। दूसरी जातियों में भी बड़ी संख्या में उनके समर्थक हैं। हमेशा उन्होंने सवर्ण जातियों को साथ लेकर राजनीति की। सर्वस्पर्शी और समन्वय की राजनीति की। वे सम्बन्ध बनाने में विश्वास करते थे। इसी की बदौलत 6 प्रधानमंत्रियों की सरकार में मंत्री रहे। 11 बार चुनाव लड़ा जिसमें 9 बार विजयी हुए। लोगों की मदद करने में भी वे कभी पीछे नहीं रहे। पत्रकारों के वे प्रिय राजनेता थे। यह चिराग को बढ़त दे रहा है बशर्ते वे लगातार इसे जगाये रखें।
राजद को भी उम्मीद
लालू प्रसाद की जेल से रिहाई की संभावना जगने से राजद समर्थकों में उत्साह हुआ है। हालांकि एक और में जमानत पर 9 नवंबर को सुनवाई होनी है। अगर वहां भी जमानत मिली तो वे रिहा हो सकेंगे लेकिन तक मतदान खत्म हो जायेंगे और अगले दिन 10 नवंबर को वोटों की गिलती होगी। वैसे वे जेल में होकर भी पार्टी और चुनाव में मजबूत हस्तक्षेप कर ही रहे हैं।