ठंड के मौसम में छोटे बच्चों का रखें ध्यान, लापरवाही पड़ सकती है भारी- डॉ तौकीर

पटना: ठंड का मौसम हर किसी के लिए घातक होता है। बिहार में ठंड के मौसम में न्यूनतम तापमान 5 से 7 डिग्री तक चला जाता है, जो बच्चों के लिए काफी कम होता है। राजेन्द्रनगर स्थित डॉ प्रभात मेमोरियल हीरामती हॉस्पिटल के डॉक्टर तौकीर ने बताया कि अगर बच्चे के शरीर के हर हिस्से को ढक कर नहीं रखा गया, तो इस स्थिति में ठंड को मेंटेन रखने के लिए शरीर को ज्यादा एनर्जी खर्च करने की जरूरत होती है। इससे ग्लूकोज बर्न होता है और बच्चों के शरीर मे शूगर कम हो जाता है। शूगर कम होने से कई बार बच्चे सीरियस हो जाते हैं जो घातक भी हो सकता है।

डॉक्टर तौकीर ने बताया कि इस मौसम में 2 से 3 महीने तक के बच्चों को अक्सर ब्रॉइंक्योलाइटिस हो जाती है। इससे बच्चों में सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। हल्का सर्दी जुकाम भी हो जाता है। ब्रॉइंक्योलाइटिस के कारण कई बार बच्चों को एडमिट भी करना पड़ सकता है। कई बार बच्चे सीरियस भी हो जाते हैं और वेंटिलेटर पर जाने की नौबत हो जाती है।

1 साल या 2 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों में कुछ ऐसे भी होते हैं जिनको अस्थमा की शिकायत होती है। ठंड में कई बार लोग ज्यादा देर तक अगर किसी कारण से बच्चों को लेकर घर से बाहर रहते हैं, तो बाहर जाने से बच्चों की तबीयत ख़राब हो सकती है। इस मौसम में बेवजह का एक्सपोजर नहीं करें। बच्चों के कपड़े पर विशेष ध्यान दें। उन्हें ज्यादा गर्म कपड़े पहनाएं। उनके हाथ और पैरों को ढक कर रखें।

ब्रॉइंक्योलाइटिस हो या न्यूमोनिया इसमें ज्यादातर बच्चों को बुखार आएगा और खांसी होगी। बीमारी जैसे जैसे आगे बढ़ेगी, बच्चों की सांस लेने की गति तेज हो जाएगी। फिर बच्चों की पसली फेंकने की शुरुआत हो जाती है और बाद में बच्चा सांस लेने में आवाज निकालने लगता है। बच्चा डिस्ट्रेस होने लगेगा और खाना-पीना भी छोड़ सकता है। ऑक्सीजन सैचुरेशन बहुत देर में गिरता है। जिसका ऑक्सीजन सैचुरेशन गिर जाता है। इसका मतलब कि पिछले 2 से 4 दिन में बच्चे को सही से इलाज नहीं मिल पाया है, इसलिए शुरुआती दौर में किसी भी बच्चे की सांस उम्र के अनुसार ज्यादा नहीं होनी चाहिए।

2 महीने से कम बच्चे में एक मिनट में 60 बार तक सांस लेना सामान्य है। 2 महीने से 1 साल तक 50 बार, 1 साल से लेकर 2 साल तक 40  नॉर्मल माना जाता है, जबकि 2 साल से 5 साल तक के बच्चों में 30 तक सांस लेना सामान्य है। अगर बच्चे सांस तेजी से लेने लगते हैं। या कई बार यह भी होता है कि सांस तेज नहीं हुई तो डॉक्टर स्टैथोस्कोप सुनकर ही जान जाता है कि सीने में क्रेप्ट्स मिल रहा है। इनिशियल न्यूमोनिया में क्रेप्ट्स मिलता है। एक्स रे में निमोनिया को पकड़ पाना मुश्किल हो सकता है। शुरुआती दौर में कोशिश करनी चाहिए कि डॉक्टर से जल्द से जल्द मिला जाए।

डॉक्टर तौकीर ने बताया कि ठंड के मौसम में ज्यादातर वायरल निमोनिया होता है। बच्चों में इम्युनिटी कम होती है। जिससे बच्चों पर ठंड का अगर प्रभाव हो गया तो उसकी तबीयत खराब हो सकती है। एक या 2 दिन की दवा में अगर सुधार नहीं हो तो बच्चे को तुरंत डॉक्टर को दिखाने की कोशिश करें। अगर 3 दिन में सुधार नहीं हो रहा है तो तुरंत अच्छे डॉक्टर से जरूर सलाह लें। इसमें ज्यादा वक्त न गवाएं। शुरुआती स्टेज में निमोनिया सिरप से ही ठीक हो जाता है लेकिन देरी करने पर यह घातक हो सकता है।

डॉक्टर तौक़ीर के अनुसार बच्चे हर चीज खाना पसंद नहीं करते हैं। 6 महीने तक के बच्चों को केवल मां का दूध पिलाया जाता है। 6 महीने से ज्यादा उम्र के बच्चे को दिन में कम से कम 3 से 5 बार मां के दूध के अलावा अतिरिक्त भोजन देना पड़ता है। इससे बच्चे की सेहत अच्छी रहती है और ठंड में एनर्जी भी मिलती है। 1 साल या उससे ऊपर के बच्चे को दाल या अंडा भोजन में जरूर दें। ध्यान रखें कि बच्चों के भोजन में प्रोटीन पूरी मात्रा में मिले। डॉक्टर तौक़ीर ने बताया कि डॉक्टर प्रभात मेमोरियल हीरामती अस्पताल में बच्चों के लिए बेहतर इलाज की पूरी व्यवस्था है।

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