एथलीटों को गैर फार्मा प्राकृतिक पद्धति से जोड़ने की जरूरत

नई दिल्ली: बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में ऑस्ट्रेलिया पहले स्थान पर रहा और भारत ने चौथे स्थान पर अपना सफर समाप्त किया। इसके बाद सभी भारतवासियों की नजरें क्रिकेट में आईसीसी टी20 विश्वकप और 50 ओवर के विश्वकप पर विजय की प्रबल आकांक्षा क्रिकेट प्रेमियों के दिलो दिमाग में है। मगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने देश का प्रतिनिधित्व करना और लोगों की उम्मीद पर खरा उतरना बेहद तनावपूर्ण होता है। इसके परिणाम स्वरूप एथलीट स्ट्रेस में बैन दवाईया लेने लगते हैं और ऐसे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पड़ने वाले दबावों से उबरने के लिए एथलीटों को गैर फार्मा प्राकृतिक पद्धति से जोड़ने की जरूरत है।

योग के एक संस्थान द्वारा अंतरराष्ट्रीय एथलीटों पर गैर फार्मा वैदिक प्रोटोकाल का प्रयोग किया गया, जिससे एथीलटों के कॉग्निटिव, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार देखा गया। इससे खिलाड़ी को प्रदर्शन से पहले मानसिक तौर मजबूत किया और इसके कारण खेल के पहले की घबराहट में कमी, खेल पर ध्यान एवं बेहतर प्रदर्शन देखने को मिला।

ऑनलाइन स्पोर्ट्स माइंड इन्वेंटरी से सामने आई यह बात

जनवरी 2022 में अंतरराष्ट्रीय एथलीटों पर प्रभावों का अध्ययन करने के लिए विशेषज्ञ चिकित्सकों के एक पैनल ने रिसर्च किया। अंतरराष्ट्रीय एथलीटों पर अध्ययन करने के लिए एक ऑनलाइन स्पोर्ट्स माइंड इन्वेंटरी का उपयोग किया गया। इसमें एथलीटों को 8 सप्ताह के लिए प्रतिदिन एक घंटे का प्रोग्राम प्रस्तुत किया।

इस रिसर्च से पता चला कि इससे 80.76 प्रतिशत एथलीटों के खेल से संबंधित मानसिक और भावनात्मक व्यवहार में सुधार आया, जिसके परिणाम स्वरूप खेल में फोकस बढ़ाए चोट में कमी, खेल संबंधी एंजाइटी एवं स्ट्रेस में कमी आयी। इसके कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर प्रदर्शन में खिलाड़ी को होने वाली घबराहट, स्ट्रेस और एंजाइटी पर काबू पाया गया। इस प्रोग्राम में शामिल होने वाले आधे खिलाड़ी पुरूष वर्ग के और आधे खिलाड़ी महिला वर्ग के थे।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन का दबाव, देश का प्रतिनिधित्व का तनाव, लोगों की उम्मीद पर खरा उतरना और स्ट्रेस किसी भी खिलाड़ी के लिए प्रतिबंधित दवाओं को लेने का कारण बन सकता है। इसे रोकने के लिए गैर फार्मा तौर तरीके है। यह एथलीट को अधिक स्ट्रांग और चिंता मुक्त बनाता है। योग अत्यधिक तनाव वाले वातावरण में अपने खेल को बढ़ाने के लिए एथलीटों के कॉग्निटिव और भावनात्मक व्यवहार में सुधार करता है। डिप्रेशन को दूर करने के साथ ही पिछली विफलताओं से इतर प्रेरणा का पुनर्निर्माण करता है और बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरित करता है। सबसे महत्वपूर्ण है कि यह प्रोग्राम पूरी तरह से प्राकृतिक और गैर हानिकारक है।

ध्यान ने पर्सनल लाइफ को भी आसान बनाया

मॉरीशस की महिला एथलीट रानिनी कुन खमेर ने बताया, “अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तैयार किए मेडिटेशन प्रोग्राम में शामिल हुई। ध्यान ने ना केवल मेरे खेल पर अधिक फोकस किया बल्कि मेरी पर्सनल लाइफ को भी आसान बनाया। इस दौरान मुझे फोकस करना सिखाया और ट्रेनिंग करने के दौरान मेरा दिमाग अधिक फोकस रहा। इससे पहले खेल के दौरान दिमाग डिस्टर्ब हो जाता था। मेडिटेशन के जरिये मैंने अपनी ट्रेनिंग को अधिक प्रोडक्टिव बनाया और इस दौरान ध्यान से मुझे अपने इमोशन और स्ट्रेस पर काबू पाने पर काफी लाभ प्राप्त हुआ। इससे मेरा दिमाग काफी शांत रहा जिस कारण फोकस मेरी फाइट पर रहा और ट्रेनिंग के दौरान एवं फाइट के वक्त मेडिटेशन ने मेरी काफी मदद की। मैं सभी एथलीटों को गैर फार्मा मेडिटेशन तकनीक को अपनाने का सुझाव देती है।”

रानिनी कुन खमेर (कंबोडियन बॉक्सिंग) मय थाई और मिकिक्स्ड मार्शल आर्ट अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हैं। रानिनी ने 48 किलोग्राम की 2019 में वर्ल्ड चैंपियनशिप, वर्ल्ड मॉय थाई चैंपियनशिप और कुन खमेर (कंबोडियन बॉक्सिंग) विश्व चैम्पियनशिप में रजत पदक जीता था। 2020 में मय थाई और अन्य रूपों के लिए कई विश्व पुरस्कार हासिल किए हैं।

योग का एथलीटों पर पॉजीटिव इम्पेक्ट पड़ा

बाक्सिंग इंस्ट्रक्टर पेट्रिक के अनुसार, “योग की प्रेक्टिस सेशन में भाग लेने का हमारे एथलीटों पर पॉजीटिव इम्पेक्ट पड़ा। इसके कई लाभ फ्लेक्सिविटी, मोटिवेशन और स्टेमना बढ़ने पर देखने को मिले। मेरे एथलीटों के भीतर डिटरमेशन और तेजी से रिकवरी पर स्पष्ट प्रभाव देखने को मिला। मैं सभी एथलीटों को गैर फार्मा तरीकों को अपनाने की सुझाव देता हूं, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन पर लाभ प्राप्त कर सके।”

यह दोनों बयान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एथलीटों के बेहतर प्रदर्शन के लिए तैयार एक गैर फार्मा नेचुरल तरीके की उपयोगिता को दर्शाते हैं। इसको अपनाने से किसी भी प्रकार की प्रतिबंधित दवाओं को लेने से एथलीटों को बचाया जा सकता है और प्राचीन भारतीय पद्धति को आधुनिक युग में अच्छे तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने 2018 में 10 से 18 वर्ष के प्रतिभावान एथलीटों के लिए “खेलो इंडिया” प्रोग्राम की शुरुआत की थी। इसका आयोजन हर साल जनवरी में किया जाता है और इसके तहत एथलीटों को स्कॉलरशिप भी दी जाती है। इसका मुख्य उद्देश्य जमीनी स्तर पर बच्चों के साथ जुड़कर भारत की खेल संस्कृति को पुनर्जीवित करना है। विशेषज्ञों द्वारा तैयार किए गए प्रोटोकॉल से एथलीटों को “खेलो इंडिया” अभियान से ही जोड़ देना चाहिए। यदि शुरूआती दौर से ही खिलाड़ी को प्राकृतिक स्ट्रेस मैनेजमैंट का सहारा मिलेगा तो भारत भविष्य में खेलों में शक्ति बन सकता है।

दीपक सेन
दीपक सेन
मुख्य संपादक