World heart day: डॉक्टरों की सलाह, संतुलित जीवन शैली से स्वस्थ रख सकते हैं हार्ट

पटनाः लगातार व्यस्त होती जीवन शैली में आम लोग शरीर को ही दूसरे नंबर पर रखते हैं। वैसे तो आज के दौर में हर प्रकार की बीमारियां लोगों को अपनी जद में ले रही हैं। लेकिन हार्ट से जुड़ी बीमारियां आम हो गई हैं।  मेदान्ता पटना के विशेषज्ञ डॉक्टरों की माने तो जीवन शैली में थोड़ा सुधार और खान पान में ध्यान रखा जाए तो हार्ट डिजीज पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है लेकिन इन सारी चीजों को गंभीरता से अमल करना होगा।

ऐसे करें हृदय रोग की पहचान

डॉक्टर प्रमोद कुमार

हृदय रोग की पहचान के बारे में जयप्रभा मेदान्ता अस्पताल पटना के हार्ट इंस्टिट्यूट के  डायरेक्टर डॉक्टर प्रमोद कुमार बताते हैं, हृदय रोग की प्रमुख कारणों में छाती का दर्द मुख्य है। हृदयाघात की हालत में सीने के बीच में दर्द होता है और फिर पूरे सीने में फैल जाता है। दर्द बांह में भी फैल जाता है। इसके अलावा सांसों का फूलना, धड़कन का बढ़ना, चक्कर आना, बेहोशी होना भी हृदयाघात या हृदय रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 30 वर्ष गुजरने के बाद यदि ऐसे लक्षण दिखाई दें तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेकर जांच करवाएं। कई बार औरत या बूढ़े लोगों में सीने का दर्द नहीं होता। उनमें सांस फूलना, कमजोरी आदि दिखे तो हृदय रोग की समस्या हो सकती है।

इन कारणों से होता है हार्ट डिजीज

डॉक्टर शाहीन अहमद

जयप्रभा मेदान्ता सुपर सलेशलिटी हॉस्पिटल, पटना के हार्ट इंस्टिट्यूट के एसोसिएट डायरेक्टर डॉक्टर शाहीन अहमद कहते हैं, “आज के समाज में हार्ट डिजीज के कई कारण हो सकते हैं। इनमें बढ़ती उम्र, जेनेटिक बीमारी, असंतुलित बीपी, स्मोकिंग, अल्कोहल सेवन, जंक फूड जैसी चीजें शामिल हैं”।

हार्ट डिजीज से बचना है तो शुगर और कोलेस्ट्रॉल पर रखें नज़र

डॉक्टर शाहीन कहते हैं, “बहुत सारी ऐसी चीजें हैं, जिन पर हम ध्यान नहीं दे पाते हैं। इन चीजों पर ध्यान दें तो अटैक होने की संभावना बहुत कम होती है। यह सारी चीजें शरीर पर धीरे धीरे असर डालती हैं। कोई भी इंसान अगर 35 से 40 वर्ष पूरे होने पर नियमित रूप से अपने शुगर और कोलेस्ट्रॉल की जांच करवाता रहे तो रिस्क बहुत कम हो जाता है।

प्रति एक हजार जन्मजात शिशु में चार हृदय रोग से ग्रसित

डॉक्टर संजय कुमार

जन्मजात शिशुओं में दिल के छेद या हृदय की बीमारी पर प्रकाश डालते हुए जयप्रभा मेदान्ता अस्पताल पटना के कार्डियो वैस्कुलर एंड थोरेसिक सर्जरी विभाग के डायरेक्टर डॉक्टर संजय कुमार कहते है, “प्रति एक हजार जन्म लेनेवाले शिशु में चार हृदय रोग से ग्रसित होते हैं। इसलिए जन्म के बाद शिशु का ऑक्सीमीटर से ऑक्सीजन का स्तर मापना चाहिए। यदि 95 प्रतिशत से कम हो तो हृदय की जांच आवश्यक है। वैसे सभी जन्म लेनेवाले शिशु का इको जांच करवाना चाहिए”।

डॉक्टर संजय कहते हैं,”पहले दिल के छेद या हृदय की बीमारी वाले बच्चों को इलाज के लिए बाहर जाना पड़ता था लेकिन अब हमलोग ऐसे केस को हैंडल करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं और अब ऐसे शिशु या बच्चों को इलाज के लिए राज्य से बाहर नहीं जाना पड़ेगा”।

CPR देकर बचाई जा सकती है किसी की जान

डॉक्टर अजय कुमार सिन्हा

हार्ट अटैक आने पर CPR देने की बात कहते हुए जयप्रभा मेदान्ता सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल पटना के हार्ट इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉक्टर अजय कुमार सिन्हा बताते हैं, ” कार्डिओपलमनरी रिसिटेशन (CPR) को मेडिकल इमरजेंसी में देकर किसी व्यक्ति की सांस रुकने, दिल के रुकने की हालत में उसकी जान बचाई जा सकती है। यह हार्ट के बंद होने के बाद फिर चालू करने की प्रक्रिया है। अगर किसी को CPR दे रहे होते हैं तो प्रति मिनट 100 CPR देने की जरूरत होती है साथ ही हर 3 मिनट पर एक बार सांस देना होता है। CPR के साथ ही डिफैब्युलेटर मशीन की भी जरूरत पडती है। अगर CPR और ओटोमेटिक एक्सटर्नल डिफैब्युलेटर मशीन अगर मिल जाये तो 10 में से 8 लोगों की जान बचाई जा सकती है।

हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट में होता है अंतर

डॉक्टर सिन्हा बताते हैं,”कई बार लोग हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट में अंतर नहीं समझ पाते हैं। जबकि ये दोनों अलग अलग चीजें हैं। हार्ट के बंद होने को कार्डियक अरेस्ट कहते हैं, जबकि हार्ट के किसी एक हिस्से में रुकावट को हार्ट अटैक कहते हैं। हार्ट अटैक से कई तरह की परेशानी आ सकती है इससे हार्ट के मसल्स में खराबी आ सकती है। कार्डियक अरेस्ट के कई कारण होते हैं।

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