लॉकडाउन: राज्यों को अधिकार देने से कोरोना ने जीना किया मुहाल ?

कोरोना संकट भी कैसी आपदा है। इसने आदमी का जीना मुहाल कर दिया है। मगर एक बात बार बार मेरे मन को परेशान करती है जिसके बारे में लोगों को चिंतन अवश्य करना चाहिए कि ऐसे कौन से कारण थे कि पहले तो केंद्र सरकार को लॉकडाउन लगाने में देरी करनी पड़ी?

इसके बाद स्वघोषित कर्फ्यू लगा पड़ा और अचानक पूरे देश को लॉकडाउन में झौंक दिया गया। दो महीने से अधिक वक्त तक पूरा देश लॉकडाउन में रहा जिसकी बागडोर केंद्र सरकार के हाथों में थी। इसके बाद भी जब मरने वालों का सिलसिला नहीं रूका और मरीजों की संख्या में इजाफा होता रहा तब राज्य सरकार की “आज्ञाकारी” केंद्र सरकार ने अचानक 31 मई के बाद अनलॉक करने का निर्णय ले लिया और लॉकडाउन संबंधी निर्णय लेने का अधिकार राज्य सरकारों को दे दिया।

अब एक बार फिर देश की राजधानी में लॉकडाउन लगाने की सुगबुगाहट तेज हो गयी है। इसका सबसे बड़ा कारण दिल्ली में मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि है। हालांकि, दिल्ली के निजी अस्पतालों की बजाय सरकारी अस्पतालों और इनके कोरोना वारियर्स की तारीफ की जानी चाहिए।

अनलॉक के निर्णय से पहले केंद्र सरकार को यह विचार अवश्य करना चाहिए था कि लॉकडाउन के दरम्यान देश में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या का प्रतिशत भी काफी कम थी और कोरोना को लेकर भारत सरकार की विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी तारीफ की थी।

कहीं केंद्र सरकार की मंशा प्रदेश सरकारों के सिर पर कोरोना का ठीकरा फोड़ना तो नहीं था? कहीं केंद्र की भाजपा सरकार का ध्यान आने वाले महीनों में कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पर तो नहीं?

कुछ भी हो केंद्र को वैश्विक स्वास्थ्य आपदा के वक्त कमान अपने हाथों में रखनी चाहिए थी। इससे मरीजों की संख्या में एक जून के बाद से हुआ इजाफा नहीं होता और स्थिति नियंत्रण में रहती।

दीपक सेन
दीपक सेन
मुख्य संपादक