कैसे करें स्टूडेंट के मानसिक स्वास्थ्य और बर्नआउट की रोकथाम?

नई दिल्ली: एक समय तक शिक्षा अध्यापक पर केंद्रित था और इसके जरिये बच्चे को संबंधित विषयों का ज्ञान देना होता था। वक्त के साथ शिक्षा का केंद्र स्टूडेंट बन गया और उसकी मानसिक स्थिति, रूचि और अन्य योग्यताओं को आधार बनाकर सिलेबस तैयार किया जाने लगा है। इसी का परिणाम भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति 2020 हैI

एक संस्थान ने मानसिक स्वास्थ्य और बर्नआउट रोकथाम के लिए ने गैर फार्मा तौर तरीके वैज्ञानिक प्रोटोकॉल तैयार किया है, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त चार साइंस जर्नल ने प्रकाशित किया है। वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हुआ हैं कि डिप्रेशन, अनिद्रा और एंजाइटी 80 प्रतिशत तक सुधार होता है और जीवन की गुणवत्ता 77% तक बढ़ जाती है।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के अनुसार , सिलेबस लचीलेपन पर आधारित होगा, ताकि स्टूडेंट को अपने सीखने की गति और विषयों को चुनने का अवसर हो। इस तरह जीवन में अपनी प्रतिभा और रुचि के अनुसार वे अपने रास्ते चुन सकेंगे। नई शिक्षा नीति में कला , विज्ञान, व्यावसायिक और शैक्षणिक धाराओं आदि के बीच में कोई भेद नहीं होगा। सहज शब्दों में कहा जाये तो नई शिक्षा नीति लिबरल एजुकेशन पर आधारित हैI ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य और बर्नआउट रोकथाम प्रोटोकाॅल का महत्व काफी बढ़ जाता है।

शिक्षा का उद्देश्य छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को ठीक बनाये रखना भी है, क्योंकि अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के बगैर बच्चों की योग्यताओं का उचित विकास सम्भव नहीं है और जिन बच्चों में भय, चिन्ता, निराशा तथा अन्य दोषों का विकास हो जाता है। उनका मन पढ़ने में नहीं लगता और सीखने में उन्नति नहीं हो पाती। इसके अतिरिक्त स्कूल में कई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न करते हैं, जिनको समझने और समाधान के लिए अध्यापक को मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का जानना आवश्यक है।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य और मनो सामाजिक कल्याण सबसे उपेक्षित क्षेत्रों में से एक है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2016 दर्शाता है कि हमारे देश में ऐसे लगभग एक सौ पचास मिलियन नागरिक हैं जिन्हें मानसिक स्वास्थ्य कल्याण के लिए देखभाल और सहायता की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त, यह पता चला कि इनमें से सत्तर से नब्बे प्रतिशत लोग सही समय पर गुणवत्ता युक्त सहायता प्राप्त नहीं कर सके।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार किशोर आयु समूह में आत्महत्या दर वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक संख्या में पाई जाती है। अधिकांश शारीरिक बीमारियों के लिए भावनात्मक तनाव और अन्य चिंताएं एक प्रमुख कारक हैं। मनो चिकित्सक, मनो वैज्ञानिक, काउंसलर और पेशेवरों जैसे मानसिक स्वास्थ्य सेवा प्रदाता इस बात से सहमत हैं कि हम ठीक समय पर सहायता देकर भविष्य की कई मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों को रोक सकते हैं।

रिसर्च के निष्कर्ष बताते हैं कि शारीरिक बीमारी, सीमित बुनियादी संसाधन, स्वयं और परिवार के साथ-साथ जीवन में अधूरी इच्छाओं को पूरा करने में असमर्थता प्रमुख कारक हैं जो मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को प्रभावित करते हैं।

छात्रो और छात्राओं को शारीरिक और मनोवैज्ञानिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य सेवा और सहायता की उपलब्धता पहला कदम है। मानसिक स्वास्थ्य के दायरे में बच्चों के भावनात्मक, व्यावहारिक और सामाजिक कल्याण को शामिल किया जाना चाहिए। मानसिक स्वास्थ्य की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता दैनिक जीवन की चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना करने की क्षमता है। इसलिए स्कूलों में बच्चों को सुरक्षित वातावरण देना महत्वपूर्ण है।

स्कूल में एक व्यापक प्रणाली निर्मित करने के लिए आसान पहुंच, कल्याण और अनुकूलन क्षमता को एक साथ रखा जाना चाहिए। स्कूल और जीवन में बच्चों की सफलता सीधे उनके मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी हुई है। कुछ रिसर्च के निष्कर्ष बताते हैं कि जो बच्चे मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्राप्त करते हैं वे शिक्षण में बेहतर प्रदर्शन करते हैं, कुशल होते हैं और परिवर्तन के लिए अनुकूल होते हैं। समग्र मानसिक स्वास्थ्य भविष्य का निर्धारण करता है। मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करके गतिविधियों और व्यवहार में आने वाली समस्या का समाधान किया जा सकता है।

रिसर्च बताती हैं कि पांच में से लगभग एक बच्चा और किशोर स्ट्रेस, एंजाइटी और डिप्रेशन के कारण शराब और मादक पदार्थों के सेवन से होने वाली मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकारों का सामना करता है। मानसिक बीमारियों के प्रति उपेक्षा भाव और गलत अवधारणाओं की वजह से बड़ी संख्या में छात्रों पर ध्यान नहीं दिया जाता और उन्हें आवश्यक देखभाल नहीं मिल पाती है। इसलिए, स्कूली छात्रों के सामने आने वाली मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने के लिए व्यापक जागरूकता होना जरूरी है।

बच्चे के साथ माता.पिता का व्यवहार, उच्च आदर्श. परिवार में तनाव. परिवार का टूटना, निर्धनता, घर का अनुशासन. स्कूलों का प्रभाव, अध्यापक का व्यवहार. विद्यालय का वातावरण. अभिव्यक्ति के अवसर न देना और परीक्षा प्रणाली पर भी स्टूडेंट का मानसिक स्वास्थ्य निर्भर करता है। प्रोटोकॉल के माध्यम से भारतीय छात्रों और युवाओं को सशक्त बनाया जा सकता है और मानसिक स्वास्थ्य और बर्नआउट की रोकथाम की जा सकती है। मेंटल हेल्थ रेजिलिएशन और बर्नआउट प्रिवेंशन प्रोग्राम्स के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य के साथ विश्व स्तर पर छात्रों को लाभ पहुंचा रहे हैं।

युवा शिक्षित हैं, प्रतिभाशाली हैं, उनमें काफी संभावनाएं हैं, युवा भारत का वर्तमान और भविष्य है, स्वस्थ युवा ही स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण करेंगेI बच्चों को स्ट्रेस, एंजाइटी, डिप्रेशन से निपटने की आवश्यकता होती है ताकि वे अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकें और अपनी पूरी क्षमता से प्रदर्शन कर सकें।

दीपक सेन
दीपक सेन
मुख्य संपादक