‘शरिया में राजनीतिक दलों की कोई अवधारणा नहीं’: तालिबान ने अफगानिस्तान में लोकतंत्र पर लगाया प्रतिबंध

अफगानिस्तानः तालिबान (Taliban) ने शरिया का हवाला देते हुए देश में सभी राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगा दिया है। तालिबान का कहना है कि ऐसी गतिविधियां इस्लामी कानून के खिलाफ हैं। लोकतंत्र और राजनीति की बहाली की लड़ाई को यह नया झटका तालिबान द्वारा काबुल पर कब्जे की दूसरी वर्षगांठ मनाने के एक दिन बाद आया है।

प्रतिबंध की घोषणा अफगानिस्तान के काबुल में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान की गई। प्रेस कॉन्फ्रेंस का नेतृत्व तालिबान के न्याय मंत्री अब्दुल हकीम शेरी (Abdul Hakim Sharei) ने किया, जिन्होंने कहा कि शरिया के तहत राजनीतिक दलों की कोई अवधारणा नहीं है।

शेरेई ने अधिक विवरण दिए बिना कहा, “देश में राजनीतिक दलों के संचालन के लिए कोई शरिया आधार नहीं है। वे राष्ट्रीय हित की सेवा नहीं करते हैं, न ही राष्ट्र उनकी सराहना करता है।”

घटनाक्रम से परिचित लोगों ने एक समाचार संस्थान बताया कि यह फैसला सरकार के शीर्ष नेतृत्व की सहमति से लिया गया है। उन्होंने बताया कि शैरी कंधारी गुट से संबंधित है, जिसका नेतृत्व मुल्ला मोहम्मद उमर कर रहे हैं और इसमें अमीर खान मुत्ताकी जैसे दिग्गज नेता भी शामिल हैं।

लोगों ने यह भी बताया कि अब विदेशी राहत और सहायता मिलना कठिन होगा क्योंकि इस नए विकास को वैश्विक समुदाय द्वारा स्वीकार नहीं किया जाएगा जो तब अनुदान और सहायता को प्रतिबंधित कर देगा।

2021 तक कम से कम 70 प्रमुख और छोटे राजनीतिक दलों को औपचारिक रूप से अफगानिस्तान के न्याय मंत्रालय के साथ पंजीकृत किया गया था, लेकिन तालिबान द्वारा युद्ध से तबाह अफगानिस्तान पर फिर से नियंत्रण हासिल करने और उसके बाद अमेरिकी सेना की वापसी के बाद, देश में राजनीतिक व्यवस्था चरमरा गई।

तालिबान ने सरकार के खिलाफ आलोचना को दबाने के लिए संघ, सभा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया है, लेकिन वह अपने समर्थकों को इन अधिकारों का आनंद लेने की अनुमति देता है।

उन्होंने सत्ता पर कब्ज़ा करने के बाद अफगानिस्तान पर शासन करने के लिए शरिया की कठोर व्याख्याएं लागू की हैं और लड़कियों को छठी कक्षा से आगे के स्कूलों में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। अफ़ग़ान महिलाओं को काम और सार्वजनिक जीवन से प्रतिबंधित कर दिया गया है। सैलून बंद होने के कारण अब महिलाओं को आत्म-देखभाल और सौंदर्य के मामले में भी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है।

तालिबान शासन के दो वर्षों के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता की अवधारणा भी समाप्त हो गई है, आतंकवादियों ने कई समाचार चैनलों और आउटलेट्स को बंद करने के लिए मजबूर किया है और सैकड़ों पत्रकारों को युद्धग्रस्त राष्ट्र छोड़ने के लिए मजबूर किया है।