कश्मीरी कविता को समृद्ध करने में महिलाओं का खास योगदान- डॉ. रहमान राही

कश्मीरी कविता को समृद्ध करने में महिलाओं का अहम योगदान। पढ़िए कश्मीरी कवि रहमान राही से दीपक सेन की 5 मई 2009 की बातचीत।

नई दिल्ली : कश्मीरी कवि और समालोचक डॉ. रहमान राही ने बताया कि कश्मीरी भाषा के साहित्य की काव्यधारा को समृद्ध करने में महिलाओं का खासा योगदान रहा है और 21वीं सदी में संभ्रांत परिवारों की महिलाएं काव्य सृजन कर रही हैं।

राही ने बताया कि कश्मीरी कविता की पहली शायरा लल्लेश्वरी या लल देद नामक महिला थी जिसे कश्मीरी साहित्य की काव्यधारा की जननी कहा जाता है। उनका नाम कश्मीरी भाषा के साहित्य में बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है।

राही साहब ने बताया, “14वीं सदी में हुई इस शायरा के काव्यकर्म का अंग्रेजी और फ्रेंच सहित कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। हालांकि, मेरी जानकारी में उनकी कविताओं का अभी तक हिन्दी में अनुवाद नहीं हुआ है। कश्मीर में कवियत्री लल देद को कुछ लोग सूफी संत अथवा शिव की आराध्य के रूप में याद करते हैं।”

उन्होंने बताया, “16वीं सदी के अंत में हब्बा खातून कश्मीरी शासक होने के साथ ही कश्मीरी भाषा की बड़ी शायरा थीं जिनकी कविताओं में व्यक्ति के मनोभावोंं और औरत पर होने वाले जुल्म का वर्णन मिलता है।”

राही साहब बताते हैं, “सत्रहवीं सदी में रूप भवानी कश्मीरी भाषा की दूसरी सबसे बड़ी रहस्यवादी कवियत्री थी जिन्होंने जिंदगी के उतार चढ़ाव का बड़ी ही खूबसूरती से वर्णन किया है। युसुफ शाह चक कश्मीरी काव्य का अहम पड़ाव हैं। वह धर्मनिरपेक्ष शायर थे और उनके साहित्य में आम जिंदगी की झलक मिलती है।”

उन्होंने बताया, “कश्मीरी भाषा के काव्य में अर्णिमाल नामक कवियत्री का अहम स्थान है। कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में जन्मी इस कवियत्री ने दुनियावी मसाइल पेश किया है और इंसानियत की चर्चा की है।”
वर्तमान दौर इस सिलसिले को जम्मू की विमला रैना, नसीम शफाई, रूखसाना जबीन और नोएडा में रहने वाली सुनीता पंडित जैसी कई कवियत्री आगे बढ़ा रही हैं। इस वक्त कश्मीरी काव्य में रोजमर्रा की जिंदगी की दुश्वारियां और स्त्री विमर्श जैसे मसले उठाये जा रहे हैं।

इसके अलावा कश्मीरी भाषा में गुलाम अहमद मंजूर, स्वामी गोविंद कौल, कृष्णाजू राजदान, मास्टर जिंदा कौल, रसूल मीर और दीनानाथ नदीम जैसे कई शायर हुए हैं, जिन्होंने कश्मीरी कविता को समृद्ध किया है।

कश्मीरी कविता की धर्मनिरपेक्ष परंपरा को अनुवाद के जरिये लोगों के सामने लाया जा सकता है। साथ ही मेरा मानना है कि कश्मीरी भाषा के साहित्य हीं नहीं बल्कि पूरे देश के क्षेत्रीय भाषाओं में लिखे गये श्रेष्ठ साहित्य का अनुवाद बेहद जरूरी है।