इस समय का आज्ञापत्र है महिला आरक्षण विधेयक- कृष्णा सोबती

महिला आरक्षण से समाज के मानसिक दिवालियेपन में परिवर्तन आयेगा। पढ़िए समूह संपादक दीपक सेन के साथ लेखिका कृष्णा सोबती की 14 मार्च 2010 की बातचीत।

नई दिल्ली: हिन्दी की प्रसिद्ध लेखिका कृष्णा सोबती ने महिला आरक्षण विधेयक को समय का आज्ञापत्र बताया था। महिलाओं के लिए संसद और विधानसभाओं में आरक्षण से शिक्षा और आर्थिक पिछडेपन की शिकार महिला आये आयेंगी। सुरक्षित ट्रैक पर चलने वाले भारतीय समाज के मानसिक दिवालियेपन में भी परिवर्तन आयेगा।

कृष्णा जी ने मुलाकात में कहा था कि महिला आरक्षण विधेयक के पारित होने से सिर्फ महिलाओं की ही नहीं बल्कि पूरे समाज की शक्ल बदल जायेगी। इसके लागू होने से भारतीय समाज की सोच और शहरों एवं गांवों में परिवारों सूरत में परिवर्तन आयेगा।

सफदपोश की हरकतों से नहीं हो सका पास

हम आपको बता दें कि महिला आरक्षण विधेयक पहली दफा 12 सितंबर 1996 में संसद में पेश किया गया। उस वक्त केंद्र में एचडी देवगौडा की सरकार थी। इस बिल में संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव है। 1996 के बाद 1999, 2002, 2003, 2004, 2005, 2008 और 2010 में इसे पास कराने की कोशिश की गयी। मगर सफेदपोश इसमें नाकाम रहे। 2010 में यह बिल राज्यसभा में पास हो गया। लेकिन लोकसभा में पास नहीं हो सका। इसका सपा, जेडीयू और राष्ट्रीय जनता दल ने विरोध किया था।

अब सरकार को नये सिरे से महिला आरक्षण विधेयक लाना पडेगा और संसद के दोनों सदनों से इसे पास कराना पडेगा। इस वक्त दोनों ही सदनों में भाजपा सरकार मजबूत स्थिति में है। महिलाओं की हिमायत करने वाली मोदी सरकार के लिए यह कोई कठिन कार्य नहीं हैं। मगर सरकार कहीं से पहल करती नहीं दिख रही है।

महिला आरक्षण विधेयक कृपा नहीं

कृष्णा सोबती ने आगे कहा था, “लोकतंत्र में स्त्री पुरूष दोनों को समान नागरिक अधिकार दिए गए हैं। महिला आरक्षण विधेयक पारित होना कोई अनुदान या कृपा नहीं है, बल्कि यह समय का आज्ञापत्र है। आजादी के बाद आधी आबादी के लिए कुछ नहीं किया गया जिसकी यह क्षतिपूर्ति होगी। इससे देश की मुख्यधारा में महिलाओं की भागीदारी बढेगी और वह अपना योगदान दे सकेंगी।”

उन्होंने कहा, “महिलाओं की सहभागिता बढने से राज्य संस्थानों को बल मिलेगा। महिला का स्वतंत्र अस्तित्व सामने आयेगा। वर्तमान दौर में महिलायें की साक्षरता दर तेजी से बढ रही ​है। और आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो रही है। समाज, परिवार और बाजार की चुनौतियां बदल गयी हैं।”

महिला वोटबैंक साधने की कोशिश

कृष्णा सोबती ने कहा था, “धर्मनिरपेक्षता की आड़ में करीब ढाई दशकों से महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करने वाले नेताओं के परिवार की बहू बेटियां युवा हिन्दुस्तान का प्रतिनिधित्व कर रही है जो खुद इसकी पक्षधर होंगी। कहीं न कहीं यह राजनैतिक साजिश है कि महिलाओं का वोट बैंक हाथ से निकल ना जाये।”

पद्मभूषण लेने से मना करने के बारे में वह कहती हैं, “मेरा मानना है कि बुद्धिजीवी वर्ग को सरकार द्वारा स्थापित पुरस्कारों से दूर रहना चाहिए। मुझसे संपर्क करके बताया गया कि सरकार आपको पद्मभूूषण से सम्मानित करना चाहती है। इस पर मैंने कहा था कि मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकती। और साहित्य अकादेमी का फैलो होना मेरे लिए सबसे बडा पुरस्कार है।”

लेखक मंच का अलंकरण

अकादेमी के टैगोर पुरस्कार के साथ सैमसंग के जुडने के बारे में वह कहती हैं, “विदेशी कंपनी द्वारा पुरस्कार देने के मसले को भारतीय सांस्कृतिक संबंध प​रिषद और साहित्य अकादेमी को मिलकर संभालना चाहिए था। अफसोस है कि 24 भाषाओं के लिए करने वाली अकादेमी एक साहित्यकार की आवाज भी नहीं सुन सकी।”

उन्होंने कहा, “अफसोस हैं कि हमारे देश में लेखक को मंच का अलंकरण समझा जाता है। विदेशी कंपनी यदि साहित्य के क्षेत्र में धन लगाना ही चाहती है तो लेखकों के लिए पुरस्कार को प्रायोजित करने की बजाय हॉलीडे होम और संयुक्त कोष की स्थापना करनी स्थापना करनी चाहिए थी। इतना ही नहीं यदि लेखक ही 10-10 हजार रूपये मिलाकर सहायता कोष बनाये तो किसी कंपनी और सरकार की जरूरत नहीं होगी।”

हिन्दी में अनुशासन की कमी

कृष्णा सोबती का मानना था, “हिन्दी में अनुशासन की कमी है, जो भाषा को सही दिशा में आगे बढने से रोकती है। क्षेत्रीय भाषाओं से शब्द लेकर हिन्दी समृद्ध हुई है और आगे भी होती रहेगी। किसी भी भाषा के प्रभाव में कुछ जुडता है और कुछ खोता है।”

उन्होंने कहा, “लोकतंत्र के आने वाले परिवर्तन का सीधा प्रभाव साहित्य पर पडता है और वक्त के साथ टेक्स्ट बदल रहे हैं। रचनात्मकता और शैक्षणिक शब्दों में काफी अंतर आया है। और परिवेश में आये बदलाव के कारण चीजें बदल रही हैं।”

हिन्दी भाषा नहीं संस्कृति बन गयी

कृष्णा जी ने कहा, “किसी भी भाषा से पता चल जाता है कि समाज में लोग कैसी जिंदगी जीते हैं। वर्तमान समय में हिन्दी महज भाषा न होकर संस्कृति बन गयी है। और अन्य भारतीय भाषाओं को समृद्ध बनाने के लिए सरकार को प्रयास करना चाहिए। अंग्रेजी का बढता प्रभाव भारतीय भाषाओं के लिए परेशानी का सबब है। क्षेत्रीय भाषाओं की तालीम को अधिक सशक्त करना होगा।”

उन्होंने कहा, “वैश्विककरण के दौर में हिन्दी सहित भारतीय भाषाओं ​को संस्कृति और साहित्य को लेकर काफी सजग रहना होगा। तकनीक ने लोगों को बराबर कर दिया है। इसके बढते प्रभाव का कारण ही है कि वर्ग, समुदाय, जाति और लिंगभेद जैसी चीजें कम हो रही हैं।”

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