Social distancing: कोरोना से बचाव के लिए भारत में यह उपाय नामुमकिन!

मौजूदा केन्द्र सरकार ने कोरोना से बचाव को लेकर कुछ उपाय बताये हैं। मास्क लगाने, हाथ धोने के अलावा सोशल डिस्टेंसिंग (Social distancing) इसमें प्रमुख हैं। मगर आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में Social distancing का पालन करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। इस पर तमाम लोगों को आश्चर्य हो सकता है, तो इसे हम आंकड़ों के सहारे समझने का प्रयास करते हैं।

भारत में जनसंख्या घनत्व 464 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार 2020 मध्य तक भारत की अनुमानित जनसंख्या 1,380,004,385 है। भारत की जनसंख्या विश्व की कुल आबादी का 17.7 प्रतिशत है। सभी जानते हैं कि भारत चीन के बाद दूसरे नंबर है। भारत में जनसंख्या घनत्व 464 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो गया है।

भारत का आधिकारिक कुल भूभाग 3,287,240 वर्ग किलोमीटर

भारत का आधिकारिक कुल भूभाग 3,287,240 वर्ग किलोमीटर है। Social distancing को लेकर यहां यह प्रश्न उठना लाजमी है कि इसमें से कितने भूभाग का उपयोग भारतीय जनता द्वारा रहने के लिए होता है। इसे समझने के लिए कुछ आंकड़ों पर नजर डालना होगा जो बेहद चौंकाने वाला है।

भारत की 13 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक भूमि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के पास है। वहीं, 5,180 वर्ग किलोमीटर जमीन अक्साई चीन का कब्जे में है जिस पर चीन का कब्जा है। केंद्रीय जल आयोग के अनुसार हमारे देश में बहने वाली लंबाई लगभग 43,06,456,639 किलोमीटर है। नहरों की लंबाई 3,32,183,494 किलोमीटर है। इसके अलावा अन्य जल स्रोतों झीलों, तालाबों, पोखरों आदि की कुल संख्या 7,96,588 है।

भारतीय भूभाग का करीब 8 लाख 20 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि का उपयोग जल स्त्रोतों के लिए

रिपोर्ट बताती है कि हमारे देश में नदियों के लिए तकरीबन 7,53,630 वर्ग किलोमीटर भूमि का उपयोग होता है। नहरों की खातिर 16,610 वर्ग किलोमीटर भूमि उपयोग में लायी जाती है। वहीं अन्य जल स्रोतों के लिए 48,963 वर्ग किलोमीटर जमीन का उपयोग होता है। यह आंकड़े बताते हैं कि भारत की कुल भूभाग में से करीब 8 लाख 20 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि का उपयोग जल स्त्रोतों के लिए हो जाता है।

भारत में कृषि योग्य भूमि का कुल क्षेत्रफल 17 लाख 97 हजार 210 वर्ग किलोमीटर

कृषि क्षेत्र से संबंधित वर्ल्ड बैंक की जुलाई 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में कृषि योग्य भूमि का कुल क्षेत्रफल 17 लाख 97 हजार 210 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से लगभग 15 लाख 64 हजार 630 वर्ग किलोमीटर भूमि कृषि के लिए उपयोग में लायी जा सकती है। इसके अलावा सरकारी आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश में वनों का कुल क्षेत्रफल 7 लाख 12 हजार 249 वर्ग किलोमीटर है।

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जनता के उपयोग में लायी जाने वाली सड़कों की कुल लंबाई लगभग 59 लाख किलोमीटर है। इसमें तकरीबन एक लाख 42 हजार किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग, करीब एक लाख 76 हजार किलोमीटर राजकीय राजमार्ग, लगभग 6 लाख 24 हजार किलोमीटर की प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत बनी सड़कें, करीब पांच लाख 62 हजार किलोमीटर जनपदीय सड़कें और तकरीबन 43 लाख 94 हजार किलोमीटर अन्य सड़कें निर्मित की गयी है।

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इस विकास को हम जनसंख्या और जमीन के अनुपात के नजरिये से देखे तो भारत में राष्ट्रीय राजमार्ग के लिए 21 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक की जमीन, राजकीय राजमार्ग के लिए करीब 8 हजार 800 वर्ग किलोमीटर भूमि का उपयोग किया गया है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के लिए करीब 6 हजार 200 वर्ग किलोमीटर भूमि, जनपदीय सड़कों के लिए करीब 11 हजार 200 वर्ग किलोमीटर भूमि और अन्य शहरी एवं ग्रामीण सड़कों के लिए 44 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन का उपयोग किया गया। इस प्रकार भारत की 91 हजार 520 वर्ग किलोमीटर भूमि का उपयोग सड़कों के लिए किया गया।

रेलवे नेटवर्क के लिए तकरीबन 19 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि का उपयोग

इसके अलावा रेलवे नेटवर्क के लिए भारत में वृहद भूभाग का उपयोग किया जाता है। मार्च 2020 तक भारत के रेलवे नेटवर्क की लंबाई 1,26,366 किलोमीटर थी, जिसके अनुसार देश भर में फैले नेटवर्क के लिए तकरीबन 19 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि का उपयोग किया गया।

कोरोना ने भारत को बता दिया कि ‘चाकलेटी बदलाव’ सिर्फ कुछ दिन के होते हैं

इस पूरे आंकड़े से हमें पता चलता है कि सभी को घटाने के बाद कितनी भूमि नागरिकों के रहवास और निजी उपयोग के लिए लायी जाती है। इसका उत्तर हमारे आंगन वाले घर का तेजी से हो रहा बदलाव। नगरों और गांवों में मल्टी स्टोरी इमारतों की बढ़ती संख्या। पुराने शहरों में हेरिटेज मोहल्ले जैसे इलाहाबाद में सिविल लाइंस में आया बदलाव। यह सभी भविष्य के लिए चेतावनी हैं। कोरोना ने भारत को बता दिया कि ‘चाकलेटी बदलाव’ सिर्फ कुछ दिन के होते हैं।

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बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को Social distancing करने का फरमान सुना दिया, लेकिन हमारे रहनुमाओं ने सोचा कि क्या यह मुमकिन है। वोट बैंक की राजनीति में लिप्त किसी पार्टी के पास इस बारे में सोचने की फुर्सत नहीं है। आबादी के संबंध में 1945 में यूनिवर्सिटी ऑफ इलाहाबाद के जर्नल ऑफ इकोनॉमिक्स ने देश की बढ़ती जनसंख्या पर विशेषांक प्रकाशित किया था। मगर सरकार और जनता में विशेषज्ञों से राय लेकर नीति निर्माण करने और योजना बनाने का कभी सहूर ही नहीं रहा।

कोरोना के पीछे सही लगती है माल्थस की थ्योरी

भारत के विश्वविद्यालयों अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने की क्षमता है, लेकिन हमारे रहनुमाओं में देश को पढ़े लिखे समाज में तब्दील करने की इच्छाशक्ति का अभाव है। कोरोना के पीछे माल्थस की थ्योरी सही लगती है, जो कहती है कि यदि आप आबादी नहीं रोक सकते हैं तो प्रकृति इसे अपने तरीके से नियंत्रण कर लेती है। इस आपदा के वक्त अधिक आबादी के कारण सामने आयी समस्याओं को देखते हुए समाज को एक प्रेशर ग्रूप बनकर सामने आना चाहिए और जनसंख्या नियंत्रण एवं अस्पतालों पर कानून बनाने के लिए सरकार को मजबूर करना चाहिए। यदि हम ऐसा नहीं कर सके तो हम एक मृत समाज और नाकामयाब देश का हिस्सा है, जहां Social distancing की बात बेमानी है।

Deepak Sen, News Stump, Editor newsstump
     संपादकीय सलाहकार
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