COVID-19: क्या कभी दुनिया से खत्म हो पाएगी यह बीमारी?

किसी बीमारी की तीन अवस्थायें होती हैं। आउटब्रेक यानी एक इलाके में बीमारी का फैलना। महामारी यानी दो तीन राज्यों में बीमारी का फैलना। वैश्विक महामारी यानी पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लेना। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 2009 में H1N1 वायरस से होने वाले स्वाइन फ्लू के बाद 11 मार्च 2020 को SARS-2 वायरस से होने वाली बीमारी  COVID-19 को वैश्विक महामारी घोषित किया।

बीमारी को नियंत्रित करने का पहला प्रकार चिकित्सा सुविधा के जरिये नियंत्रण पाया जाये। जैसे भारत ने टीबी की बीमारी को नियंत्रित किया। दूसरा प्रकार है एंडेमिक, जिसमें बीमारी न्यूनतम स्तर पर बनी रहती है। भारत में डेंगू, कुष्ठ रोग, चिकनगुनिया और रेबीज सहित 14 बीमारी इस दायरे में है। तीसरा प्रकार है एलिमिनेशन में 10 लाख लोगों में एक  आदमी संक्रमित हो। इसके लिए लगातार प्रयास करने होते है। जैसे भारत ने 2010 में पोलियो को समाप्त किया। चौथा प्रकार है इरेडिकेशन यानी पूरी दुनिया से बीमारी खत्म हो जाये।

चेचक को समाप्त होने में लगे करीब 200 साल

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में चेचक एकमात्र बीमारी है जो पूरी दुनिया से समाप्त हो गयी। चेचक का टीका 1798 में एडवर्ड जेनर ने तैयार किया था। इसे पहला टीका माना जाता है। हालांकि, चेचक को समाप्त होने में करीब 200 साल लगे। सामान्यत: रोगाणु खत्म नहीं होते हैं। हमारे साथ बने रहते है। समय समय पर तबाही मचाते है।

COVID-19 के खत्म होने के आसार ना के बराबर!

अंतरराष्ट्रीय सहयोग का अभाव, टीके की कमी, बच्चों का टीका ना होना, टीका लगाना स्वैच्छिक, मजहबी ताकतें और लापरवाही से COVID-19 के खत्म होने के आसार ना के बराबर है। इस वक्त हम वैश्विक महामारी (Pandemic) के साथ सूचना महामारी (Infodemic) से भी दो चार हो रहे हैं।

160 देशों में 155 नंबर पर है भारत की चिकित्सा व्यवस्था

भारत में दूसरी लहर में 90 फीसदी मौत चिकित्सकीय लापरवाही के कारण हुई। केवल 10 प्रतिशत मौतें प्राकृतिक हैं। वैसे भी भारत की चिकित्सा व्यवस्था 160 देशों में 155 नंबर पर है। 10 लाख लोगों में 500 लोगों का मानक है,जबकि भारत में यह आंकड़ा 50 है।

COVID से बचने का एक ही तरीका हर्ड इम्युनिटी

COVID से बचने का एक ही तरीका हर्ड इम्युनिटी है। 1930 में वैज्ञानिकों ने देखा कि खसरा अपने आप कमजोर पड़ने लगा जिसे हर्ड इम्युनिटी कहा गया। हर्ड इम्युनिटी में पहली लहर में बड़ी संख्या में लोगों को वायरस ने अपनी चपेट में लिया। दूसरी लहर पहले बीमार नहीं हुए लोग संक्रमित हुए। तीसरी लहर में काफी कम लोग को बीमार पड़े। हर्ड इम्युनिटी (Herd immunity) लाने के लिए शरीर में एंटीबॉडीज़ बने जो रोगाणु से लड़ सके।

Herd immunity क्या है और कैसे बनती है

दो तरीके से एंटीबॉडीज़ बनती है। यह है संक्रमण के बाद प्राकृतिक तरीके से बनी एंटीबॉडीज या इंजेक्शन यानी प्रयास करके बनी एंटीबॉडीज। प्रयास करके बनी एंटीबॉडीज के लिए जीवित या मृत रोगाणु का एक छोटा हिस्सा व्यक्ति के अंदर डाल दिया जाता है। इससे एंटीबॉडीज़ पैदा होने लगती है। यही टीका बनाने का तरीका है। यहां यह ध्यान देना होगा कि खसरा प्राकृतिक तरीके से नियंत्रण में आ गया, जबकि पोलियो और चेचक पर नियंत्रण टीके से हो पाया।

हर्ड इम्युनिटी हर रोग को लेकर अलग-अलग है

हर्ड इम्युनिटी हर रोग को लेकर अलग-अलग है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार खसरा में 95 प्रतिशत लोगों में रोग होने के बाद हर्ड इम्युनिटी (Herd immunity) आती है, जबकि अन्य बीमारियों 50 से 90 फीसदी लोगों में बीमारी होने के बाद हर्ड इम्युनिटी आती है। WHO के अनुसार COVID-19 में 60 से 70 फीसदी लोग इम्युन हो जायेंगे तो हर्ड इम्युनिटी (Herd immunity) की शुरूआती अवस्था आनी शुरू हो जायेगी।

सीरो सर्वे के लिए पूरे देश के 10 साल से अधिक उम्र के 15 हजार लोगों के नमूने लिए गए। जून 2020 के सर्वे में एंटीबॉडी 0.73 पायी गयी। अगस्त-सितंबर 2020 के दूसरे सर्वे में 6.6 लोगों में एंटीबॉडीज पायी गयी। दिसंबर-जनवरी 2021 के तीसरे सर्वे में 21.4 फीसदी लोगों में एंटीबॉडीज़ पायी गयी। दिल्ली सरकार ने पांच सर्वे कराये। दिल्ली में जनवरी में कराये गये पांचवे सर्वे में 56 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी बन चुकी है।

हर्ड इम्युनिटी लाने का बेहतर तरीका होगा टीकाकरण

टीकाकरण हर्ड इम्युनिटी (Herd immunity) लाने बेहतर तरीका होगा। भारत में 33 फीसदी आबादी 18 साल कम उम्र की है। भारत को 67 फीसदी आबादी के लिए 186 करोड़ टीके चाहिए। इसमें 6.5 प्रतिशत टीके खराब हो जाते है यानी 200 करोड़ डोज़ की आवश्यकता है। राज्यसभा की एक रिपोर्ट के अनुसार 100 से 130 करोड़ टीके साल में बनते है। भारत में अभी तक करीब 13 करोड़ जनता को एक डोज़ और तकरीबन 3 करोड़ जनता दो डोज़ दिए जा चुके हैं। यह काफी धीमी रफ्तार है।

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एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने वैश्विक डेटा के जरिये अनुमान लगाया है कि अक्टूबर तक भारत में 15 फीसद लोगों को दो डोज़ और 63 प्रतिशत लोगों को एक डोज़ लग जायेंगे, तो हम एंडेमिक के स्तर पर पहुंच जायेंगे। भारत में 2022 के मध्य तक सभी को टीके लग चुके होंगे।

हर्ड इम्युनिटी के रास्ते में कई चुनौतियां भी हैं। कोरोना वायरस के यूके, साउथ अफ्रीका, इंडिया (महाराष्ट्र), ब्राजील (मानोस सिटी) म्यूटेन्ट आ गये है। म्यूटेशन के कारण वेरिएंट बनते हैं। कई बेहद घातक वेरिएंट होते है। इसे रोकने के लिए वैश्विक टीकाकरण होना चाहिए।

तो कम घातक होगी कोरोना तीसरी लहर

हमारी सरकार कोरोना को नियंत्रण करने में नाकाम रही है। सरकार ने कहा था कि 5 फीसदी मामलों की जीन सीक्वेंसिंग करेंगे, लेकिन एक प्रतिशत जीन सीक्वेंसिंग नहीं की गयी। तीसरी लहर काफी कम घातक होगी बशर्ते नए वेरिएंट ना आये। इस वक्त हमें शासन प्रशासन को लालफीताशाही से मुक्त करना चाहिए और वैज्ञानिकों एवं महामारी विशेषज्ञों के हिसाब से देश को चलाने की जरूरत है।

Deepak Sen, News Stump, Editor newsstump

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