पांच दिन बाद जयपुर लौटे सचिन पायलट, गांधी परिवार के किसी सदस्य से नहीं हुई मुलाकात

जयपुरः राजस्थान का सियासी मौसम जिस तेजी से बिगड़ा था, उसी तेजी से अब शांत होता भी दिख रहा है। सियासी दंगल के बीच सुलह की उम्मीद लिए दिल्ली पहुंचे पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट पांच दिन बाद जयपुर लौट आए हैं। राजस्थान कांग्रेस प्रभारी अजय माकन को छोड़कर पायलट की गांधी परिवार के किसी भी ना सदस्य से मुलाकात नहीं हुई। वहीं, पायलट समर्थक मंत्रिमंडल विस्तार की मांग पर अड़ गए हैं।

चाकसू विधायक वेद सोलंकी ने बुधवार को कहा कि जब तक पार्टी में हैं तब तक अपने हैं हक की लड़ाई लड़ना नहीं छोड़ेंगे। एससी एसटी के मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए गहलोत समर्थक उन पर हमले कर रहे हैं। हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि कांग्रेस और सोनिया गांधी में अब भी उनकी आस्था है।

SC-ST और अल्पसंख्यकों से जुड़ें मुद्दों पर जनसमर्थन जुटाकर मोर्चाबंदी के मुड में पायलट खेमा

सूत्रों का कहना कि गहलोत खेमे के हमले के जवाब में पायलट समर्थक अब एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों के हकों जुड़े मुद्दों पर जनसमर्थन जुटाकर नए सिरे से सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी कर सकते हैं। एक हफ्ते से पायलट और गहलोत समर्थकों के बीच छिड़ी जंग बयानों तक सिमट गई है। कोई नतीजा निकलने के आसार नहीं दिख रहे हैं। क्योंकि सीएम गहलोत पहले ही संकेत दे चुके हैं कि वे किसी भी दबाव में कोई काम नहीं करेंगे।

धीरे-धीरे कमजोर हो रहा पायलट खेमा

इस सियासी संकट के बीच पायलट खेमा धीरे-धीरे कमजोर होता जा रहा है, चूंकि उनके खेमे में शामिल दो कद्दावर नेता विश्वेन्द्र सिंह और भंवरलाल शर्मा भी अब गहलोत को अपना नेता करार दे रहे हैं। पिछले साल जुलाई महीने में जब सचिन पायलट ने गहलोत से बगावत की थी, उस समय उनके साथ 18 विधायक थे, जिनमें तीन 3 निर्दलीय थे। कांग्रेस के पास कुल 106 विधायक थे और 13 निर्दलीयों का समर्थन था। उस समय बसपा के सभी छह विधायकों ने गहलोत का समर्थन करते हुए कांग्रेस की सदस्यता ले ली थी।

पायलट के पास शुरू से ही कम था नंबर गेम

राजनीतिक विश्लेषज्ञों की मानें, तो पायलट के पास शुरू से ही नंबर गेम काफी कम था। अब 11 महीने बाद भी पार्टी आलाकमान पायलट गुट को तरजीह नहीं दे रहा है। पायलट के जयपुर लौटने के बाद उनके समर्थक कुछ युवा विधायक काफी आक्रोशित है और वे बयानबाजी कर रहे हैं। इससे दोनों गुटों के बीच विवाद बढ़ने की आशंका और बढ़ गई है। इस मामले में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूरी तरह अडिग हैं और अनुशासनहीनता को माफ करने के कतई पक्ष में नहीं है।

विशेषज्ञों का तर्क है कि पिछले साल बगावत कर पायलट गुट के लोग मानेसर के बजाय दिल्ली पहुंचते तो शायद अब तक दोनों के बीच सुलह भी हो जाती, लेकिन गहलोत सरकार को गिराने का कथित षड़यंत्र उजागर होने के बाद सबकुछ गड़बड़ हो गया।

षड़यंत्र के चलते कांग्रेस आलाकमान ने पायलट से बनाइ दूरियां

कथित षड़यंत्र के चलते कांग्रेस आलाकमान ने भी पायलट से दूरिया बना ली। गहलोत भी कांग्रेस पार्टी से बगावत करने वाले विधायकों को पूरी तरह सबक सिखाने के मूड में हैं। इसमें न तो मंत्रिमंडल में जगह देना है। और न ही राजनीतिक नियुक्तियों में तरजीह देना । पायलट समर्थकों को पार्टी में भी अलग-थलग रखना, गहलोत समर्थकों की रणनीति का हिस्सा है। पायलट समर्थक विधायकों की कांग्रेस पार्टी में रहना भी 11 महीनों में एक मजबूरी बन गई है।

बसपा छोड़ कांग्रेस में गए विधायकों पर BSP प्रदेश अध्यक्ष भगवान सिंह बाबा का तंज

सियासी घमासान के बीच बसपा प्रदेशाध्यक्ष भगवान सिंह बाबा ने बसपा छोड़कर कांग्रेस में गए 6 विधायकों पर तंज कसा। कहा क कि इन विधायकों ने विश्वासघात किया है। ऐसे में ये कांग्रेस से वफा कैसे कर पाएंगे। आरोप लगाया कि गहलोत कैबिनेट विस्तार नहीं करना चाहते। इसीलिए बसपा के बागी विधायकों से सत्ता में भागीदारी के बयान दिलवा रहे हैं। ताकि आलाकमान को बता सकें कि पायलट गुट के विधायकों को कैबिनेट में शामिल किया तो बगावत हो सकती है। ये भी कहा- सरकार बनाने में पायलट का बड़ा योगदान है। उनके विधायकों को सत्ता में भागीदारी मिले।