संघर्षों से भरा रहा है देश की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मु्र्मू का जीवन

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नई दिल्लीः देश को 15वां राष्ट्रपति मिल गया। NDA की ओर से घोषित उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति बन गई हैं। देश की 15वीं राष्ट्रपती द्रौपदी मु्र्मू का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। मुर्मू आज जिस मुकाम पर हैं, वहां पहुंचने के लिए उन्होंने एक संघर्षपूर्ण लंबा सफर तय किया है। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ने अपने जीवन में कई व्यक्तिगत त्रासदियों को दूर किया है। 2009-2015 के बीच केवल छह वर्षों में, मुर्मू ने अपने पति, दो बेटों, मां और भाई को खो दिया।

मुर्मू ने तीन अपनों को खो दिया

द्रौपदी मुर्मू के परिवार में उनके पति श्याम चरण मुर्मू के अलावें दो बेटे और एक बेटी समेत तीन बच्चे थे। खबरों के मुताबिक उनके एक बेटे की 2009 में रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी, जबकि उसके दूसरे बेटे की तीन साल बाद सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। उन्होंने अपने पति को पहले ही कार्डियक अरेस्ट के कारण खो दिया था। मुर्मू की बेटी इतिश्री फिलहाल ओडिशा के एक बैंक में काम करती है।

संथाल परिवार में जन्मीं मुर्मू एक बेहतरीन वक्ता हैं

20 जून 1958 को ओडिशा के के संथाल परिवार में जन्मीं मुर्मू झारखंड की पहली महिला राज्यपाल थीं और अब वे स्वतंत्रता के बाद पैदा होने वाली देश की पहली राष्ट्रपति भी हो गई हैं। जानकार बताते हैं, “वह उनकी जीवन बेहद दर्द और संघर्षों से गुजरा हैं, लेकिन वे विपरीत परिस्थितियों से नहीं घबराती हैं। संथाल परिवार में जन्मी मुर्मू संथाली और ओडिया भाषाओं में एक उत्कृष्ट वक्ता हैं। उन्होंने आदिवासी बहुल मयूरभंज क्षेत्र में सड़कों और बंदरगाहों जैसे बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए बड़े पैमाने पर काम किया है।

सार्वजनिक जीवन में मुर्मू का सफर

रायरंगपुर से ही उन्होंने बीजेपी की सीढ़ी पर पहला कदम रखा। वह 1997 में रायरंगपुर अधिसूचित क्षेत्र परिषद में पार्षद थीं और 2000 से 2004 तक ओडिशा की बीजद-भाजपा गठबंधन सरकार में मंत्री बनीं। 2015 में, उन्हें झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया और 2021 तक इस पद पर रहीं।

2014 में रायरंगपुर से लड़ा था विधानसभा चुनाव

मुर्मू ने 2014 का विधानसभा चुनाव रायरंगपुर से लड़ा था, लेकिन बीजद उम्मीदवार से हार गई थीं। झारखंड के राज्यपाल के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद, मुर्मू ने अपना समय रायरंगपुर में ध्यान और सामाजिक कार्यों के लिए समर्पित किया। मुर्मू ने मंगलवार रात अपने रायरंगपुर आवास पर संवाददाताओं से कहा, “मैं हैरान भी हूं और खुश भी हूं। सुदूर मयूरभंज जिले की एक आदिवासी महिला होने के नाते मैंने शीर्ष पद के लिए उम्मीदवार बनने के बारे में नहीं सोचा था।” उन्होंने कहा, “मैं इस अवसर की उम्मीद नहीं कर रही थी। मैं पड़ोसी राज्य झारखंड का राज्यपाल बनने के बाद छह साल से अधिक समय से किसी भी राजनीतिक कार्यक्रम में शामिल नहीं हो रही हूं। मुझे उम्मीद है कि सभी मेरा समर्थन करेंगे।”

देश के सबसे दूरस्थ और अविकसित जिलों में से एक, मयूरभंज से संबंधित, मुर्मू ने भुवनेश्वर के रामादेवी महिला कॉलेज से कला में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और ओडिशा सरकार में सिंचाई और बिजली विभाग में एक कनिष्ठ सहायक के रूप में कार्य किया। उन्होंने रायरंगपुर में श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में मानद सहायक शिक्षक के रूप में भी काम किया। मुर्मू को 2007 में ओडिशा विधानसभा द्वारा वर्ष के सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

उन्हें ओडिशा सरकार में परिवहन, वाणिज्य, मत्स्य पालन और पशुपालन जैसे मंत्रालयों को संभालने का विविध प्रशासनिक अनुभव है। भाजपा में, मुर्मू उपाध्यक्ष और बाद में ओडिशा में अनुसूचित जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष थीं। वह 2010 में भाजपा की मयूरभंज (पश्चिम) इकाई की जिला अध्यक्ष चुनी गईं और 2013 में फिर से चुनी गईं। उन्हें उसी वर्ष भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी (एसटी मोर्चा) की सदस्य भी नामित किया गया था। उन्होंने अप्रैल 2015 तक जिला अध्यक्ष का पद संभाला जब उन्हें झारखंड के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया।

फिलहाल द्रौपदी मुर्मू विपक्ष की तरफ से उम्मीदवार रहे यशवंत सिन्हा को हराकर देश की 15वीं राष्ट्रपति चुन ली गई हैं।  एनडीए की लामबंदी को देखते हुए मुर्मू की जीत की संभावना पहले से जताई जा रही थी। अब द्रौपदी ने जीत हासिल कर ली है। राष्ट्रपति चुनाव में मुर्मू ने अपने प्रतिद्वंद्वी यशवंत सिन्हा के विरुद्ध कुल 6,76,803 वोट हासिल किए जबकि सिन्हा को 3,80,177 वोट मिले।

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