जानिए कैसे बचाएं कॉरपोरेट जगत को मानसिक तनाव से

नई दिल्ली: कॉरपोरेट सेक्टर में काम करने वाले कर्मचारियों पर हर वक्त रहने वाले मानसिक तनाव के चलते कॉरपोरेट बर्नआउट, एंजाइटी, डिप्रेशन और अनिद्रा सहित कई तरह के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारी के शिकार हो जाते हैं। इस तरह के मेंटल डिसआर्डर का सीधा असर कॉरपोरेट सेक्टर की प्रोडक्टिविटी पर पड़ता है, जिससे देश की इकोनॉमी प्रभावित होती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुमान के मुताबिक, आने वाले वर्षों में भारत के कॉरपोरेट सेक्टर को मानसिक स्वास्थ्य की वजह से काफी भारी नुकसान झेलना पड़ेगा। इसमें आगे बताया गया कि वर्ष 2012 से 2030 के बीच 1.03 ट्रिलियन डॉलर तक का नुकसान हो सकता है। इस आंकड़े को कोरोना महामारी ने अधिक बदतर स्थिति में पहुंचा दिया और आने वाली रिपोर्ट में यह नुकसान अधिक हो सकता है। कई अन्य सर्वे भी सामने आये जिसमें पाया गया कि एशिया पैसिफिक क्षेत्र की बजाय भारत के कॉरपोरेट क्षेत्र के कर्मचारी अधिक स्ट्रेस और अन्य मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारी से परेशान रहते हैं।

योगा आफ इर्म्मोटल्स (YOI) के संस्थापक ईशान शिवानंद ने कारपोरेट सेक्टर में काम कर रहे कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य लिए वैज्ञानिक तरीके से एक प्रोग्राम तैयार किया। इससे कॉरपोरेट बर्नआउट, अनप्रोडक्टविटी, बेरोजगारी, और गरीबी जैसे मानसिक स्ट्रेस से बचा जा सके। इस प्रोग्राम से कॉरपोरेट प्रोडक्टिविटी में सुधार आया और मानसिक स्वास्थ्य पर होने वाले खर्चे में कमी आयी।

YOI के अनुसार, “मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मरीजों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही थी, जबकि वाईओआई से जुड़ने के बाद जीवन स्तर में 77 प्रतिशत सुधार आया। साथ ही डिप्रेशन, एंजाइटी और अनिद्रा में 80 फीसदी कमी आयी। 90 हजार करोड़ रुपये मानसिक स्वास्थ्य के इलाज में खर्च करना पड़ रहा था, जिसमें 50 फीसदी की कमी आयी।”

YOI के संस्थापक ईशान शिवानंद के अनुसार, “कारपोरेट जगत में मानसिक स्वास्थ्य काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इससे होने वाले डिसआर्डर से प्रोडक्टिविटी, निर्णय क्षमता और आर्थिक हानि पर प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा शारीरिक स्वास्थ्य, हिंसा, अपराध और सामाजिक स्थिति को लेकर चिंता बनी रहती है।”

आंकड़ों पर नजर डाले भारत की स्थिति बदतर दिखाई देती है। नेशनल मेंटल हेल्थ स्ट्रेटजी :एनएमएचएस: का अनुमान है कि छह भारतीय नागरिकों में से एक मानसिक स्वास्थ्य के लिए मदद की जरूरत है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, “चार अमेरिकी डॉलर के रिटर्न ऑफ इन्वेस्टमेंट :आरओआई: में से एक अमेरिकी डॉलर एंजाइटी और डिप्रेशन के उपचार में खर्च होता है। जहां, एक तरफ दुनिया सकल घरेलू उत्पाद :जीडीपी: का 5 से 18 प्रतिशत तक मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च करती है, वहीं भारत में केवल 0.8 फीसदी मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च किया गया जाता है। कोरोना महामारी के बाद 2020 से एंजाइटी और डिप्रेशन में 35 फीसदी की वृद्धि हुई और आत्महत्या की दर 10 प्रतिशत बढ़ी।”

योगा ऑफ इर्म्मोटल्स (वाईओआई) ने अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी और जॉन हॉप्किंग यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन के मिलकर स्टडी की। इसमें अलग अलग बैकग्राउंड से आये 10,000 लोगों ने शिरकत की। इस स्टडी में पाया गया कि वाईओआई के प्रोग्राम से अनिद्रा में 82 फीसदी की कमी, क्वालिटी ऑफ लाइफ में 77 प्रतिशत सुधार, डिप्रेशन के लक्षणों में 72 फीसद कमी और एन्जाइटी में 75 प्रतिशत तक कमी देखने को मिली।

दीपक सेन
दीपक सेन
मुख्य संपादक