विधानसभा चुनाव के आंकड़े बता रहे राजद की ताकत की सच्चाई

पटना: बिहार में चुनाव तो हो गये लेकिन प्रोपगैंडा थमने के बाद पता चल रहा है कि जनता में राजद के प्रति प्रेम बढ़ा नहीं बल्कि घटा ही है। भले ही एक्जिट पोल में महागठबंधन और राजद की बल्ले—बल्ले दिखाई गई।

एक्जिट पोल की कलई खुली

तीसरे चरण का मतदान खत्म होने के बाद दर्जनों एक्जिट पोल सामने आये लेकिन किसी ने राजग की वापसी की बात नहीं कहीं सबमें तेजस्वी की सुनामी बतायी गई। नतीजा यह हुआ कि जंगल राज देख चुके लोग भयभीत होने लगे और उनको परिणाम आने के बाद सुकून मिला। हाल यह था कि एक साजिश के तहत चुनाव के पहले से कहा जा रहा था कि लालू यादव को देसी नेल्सन मंडेला हैं तो तेजस्वी यादव देसी मार्टिन लूथर किंग।

आंकड़ों मे सच्चाई

2015 में राजद 101 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और उसे मत मिले थे 69.95 लाख यानी 18.4%। उसे 80 सीट मिली थीं। राजद द्वारा 2015 में जीती गयी सीटों की यह संख्या उसके द्वारा लड़ी गई सीटों की संख्या का 79% थी। इस बार राजद 144 सीटों पर चुनाव लड़ी यानी 2015 से 42.5% अधिक। इस बार उसे 75 सीट मिली जो उसके द्वारा लड़ी गई सीटों की संख्या का 52% है। अर्थात इस बार लगभग 34% की गिरावट दर्ज हुई है।

राजद को इतने वोट पड़े

राजद को इस बार कुल मत मिले हैं 97.40 लाख (23.1%)। यह संख्या 2015 में मिले मतों (18.4%) के प्रतिशत से 25.5% अधिक है लेकिन 2015 में पार्टी की लड़ी गई सीटों की संख्या में हुई 42.5% की वृद्धि के बावजूद उसे मिले मतों की संख्या के प्रतिशत में केवल 25.5% की वृद्धि का यह अन्तर 17 प्रतिशत का है और यह तथ्य तेजस्वी यादव की नेतृत्व क्षमता का नहीं बल्कि नेतृत्व अक्षमता का ज्वलंत साक्ष्य है। लेकिन ढिंढोरापीटागयाकि इस बार तेजस्वी यादव ने बिहार में शानदार ऐतिहासिक प्रदर्शन किया है।

अनुकूल हालत में भी फेल

ये तथ्य इसलिए और अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि इस बार बिहार का चुनाव नीतीश कुमार सरकार के विरोध और कोरोना के कारण उपजी गम्भीर समस्याओं के कारण व्याप्त आक्रोश के वातावरण में लड़ा जा रहा था। ऐसी जबर्दस्त अनुकूल राजनीतिक परस्थितियों में तेजस्वी यादव का गठबंधन विपक्ष की भूमिका में लड़ रहा था लेकिन हार को रिजल्ट लूटना बता कर लोकतंत्र को बदनाम किया जा रहा है।

अजय वर्मा
अजय वर्मा
समाचार संपादक