‘दोस्ती प्यार यार’: जीवंत किरदारों, हँसमुख संवादों से लिपटा नई हवा का उपन्यास

नई दिल्ली: ‘दोस्ती प्यार यार’। जैसा कि नाम से विदित है, यह रचना युवाओं की ग़ैर रुमानी, अर्द्ध रूमानी और रूमानियत से भरी दोस्ती, प्यार और यारी की कहानी बयां करती है। सपाट ज़िंदगी की नीरसता से कोसों दूर इस उपन्यास के किरदार महानगरीय युवा हैं जो मॉडलिंग, लेखन, म्यूज़िक बैंड़, फोटोग्राफी के व्यवसाय से जुड़े हैं। साहित्य जगत में यह किताब ताज़गी से इतना भरपूर है कि यह पाठक किसी रोचक वेब सीरीज़ की तरह लगता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यूनिक सेलिंग प्वाूइंट (USP) इसके जीवंत किरदार और इसका घिसापिटा लव ट्रायंगल का ना होना है।

लेखिका प्रज्ञा तिवारी की यह दूसरी प्रकाशित रचना है, जबकि उनका यह पहला उपन्यास है। यश प्रकाशन से छपी इस रचना की प्रस्तावना साहित्य जगत की मशहूर कवयित्री, उपन्यासकार व आलोचक डॉ.अनामिका ने लिखी है। अनामिका लिखती हैं कि ‘वर्तमान में अस्मिता-आंदोलनों, विस्थापन व इंटरनेट प्रदत्त उड़ानों के कारण संबंधों में सामंतशाही कम हुई है, जनतांत्रिक आदर्श गहराए हैं और इसीलिये स्त्री-पुरुष के बीच भी ग़ैर-रुमानी, अर्द्ध रुमानी दोस्तियाँ संभव हुई हैं।’ दोस्ती और प्रेम के इस एहसास की अभिव्यक्ति सीधे तौर पर शब्दों में कहीं नहीं हुई है। आप पढ़ते चलते हैं और ख़ुद ही इस दबे-ढँके से एहसास को समझते चलते हैं।

उपन्यास संवाद के मामले में जितना अनौपचारिक है, भावों के मामले में उतना ही गंभीर। आप इसे ऐसे पढ़ जाएँगे मानो किसी दोस्त-यार की ज़ुबानी उसकी बेहद संजीदा सी कहानी लेटे-बैठे सुन रहे हों। हालाँकि किरदारों की बेफ़िक्री और अनामिका के मुताबिक, ‘इस ढेर-सी चटर पटर के बीच भी कई बार हृदय के अतल तह में धड़कती बात अनभिव्यक्त ही रह जाती है।

हिंदी साहित्य जगत के मापदंडों के आधार पर यदि बात की जाए तो इस उपन्याास की भाषा विवादास्पद हो सकती है क्योंकि इस रचना में देवनागरी के साथ रोमन लिपि का भरपूर प्रयोग किया गया है। हालांकि लेखिका की मानें तो यह रचना दरअसल भाषा शिल्पियों को नहीं, किताब के किरदारों और पाठकों को ध्यान में रखकर लिखी गई है। इसके संवाद में मैसेजिंग ऐप्स् की महत्वपूर्ण भूमिका है। उपन्यास खरीदारों के लिए एक नकारात्मक पहलू यह है कि किताब पर कहीं भी उपन्यास का सारांश नजर नहीं आता।

समीक्षा — प्रणति मुखर्जी

दीपक सेन
दीपक सेन
मुख्य संपादक