COVID-19 पर वैज्ञानिकों का नया दावा: फेफड़े और किडनी को डैमेज कर रहा है कोरोनावायरस

नई दिल्लीः द लैंसेट माइक्रोब में प्रकाशित कोरोनावायरस स्टडी में पता चला है कि वायरस के कारण मरने वाले मरीजों में फेफड़ों और किडनियों पर चोट के निशान थे। इंग्लैंड में कोविड 19 मरीजों पर हुई पोस्टमार्टम एग्जामिनेशन को इंपीरियल कॉलेज लंदन और इंपीरियल कॉलेज हेल्थकेयर NHS ट्रस्ट ने किया था। स्टडी में जांच किए गए मरीजों की संख्या कम थी, लेकिन इसे इंग्लैंड में अब तक कोविड 19 मरीजों के हुए पोस्टमार्टम एग्जामिनेशन की सबसे बड़ी स्टडी कहा जा रहा है। स्टडी में 10 एग्जामिनेशन किए गए थे।

9 मरीजों के अंगों पर मिले खून के थक्के

स्टडी में 10 जांचें की गईं थीं, जिनमें से 9 मरीजों के कम से कम एक बड़े अंग (दिल, फेफड़े और किडनी) में थ्रोम्बोसिस (खून का थक्का) मिले। हालांकि टीम 10वें मरीज में थ्रोम्बोसिस की जांच नहीं कर सकी। शोधकर्ताओं का मानना है कि इस स्टडी से क्लिनीशियन्स को मरीजों के इलाज में मदद मिलेगी।

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स्टडी के सह लेखक और इंपीरियल कॉलेज लंदन में होनोररी क्लीनिकल सीनियर लेक्चरर, इंपीरियल कॉलेज हेल्थकेयर एनएचएस ट्रस्ट में कंसल्टेंट पैथोलॉजिस्ट डॉक्टर माइकल ऑस्बर्न ने कहा “कोविड 19 नई बीमारी है और हमारे पास ऑटोप्सी में टिश्यू को एनलाइज करने के लिए सीमित मौके थे, ताकि हम मरीज की बीमारी के कारण को रिसर्च के लिए बेहतर तरीके से समझ सकें।”

उन्होंने कहा “यह अपनी तरह की देश की पहली स्टडी है जो डॉक्टर्स और शोधकर्ताओं की पहले से चल रही उन थ्योरीज का समर्थन करती है, जिनमें कहा जा रहा था कि फेफड़ों की चोट, थ्रोम्बोसिस और इम्यून सेल का कम होना कोविड 19 के गंभीर मामलों की सबसे बड़ी खासियत है।” डॉक्टर ऑस्बर्न ने कहा “जांच किए जा रहे मरीजों में हमने किडनी की चोट और आंतों की सूजन भी देखी। ये और रिसर्च की दूसरी प्राप्तियां क्लिनीशियन्स की मरीजों को संभालने के लिए नई रणनीति बनाने में मदद करेंगी।”

22 से 97 साल उम्र के मरीजों पर हुई स्टडी

शोधकर्ताओं की टीम ने इंपीरियल कॉलेज एनएचएस ट्रस्ट के अस्पतालों में मार्च से जून के बीच पोस्टमार्टम एग्जामिनेशन किए। इस स्टडी में 22 से 97 साल की उम्र के 7 पुरुष और 4 महिलाएं शामिल थे। 6 मरीज BAME बैकग्राउंड से थे और 4 सफेद थे।

मरीजों की मौत के पीछे सबसे आम कारण हाई ब्लड प्रेशर और क्रोनिक ऑबस्ट्रेक्टिव पल्मोनरी डिसीज (फेफड़ों में होने वाली परेशानियों का समूह, जिससे सांस लेने में परेशानी होती है) थी। सभी मरीजों को बुखार आया था और बीमारी के शुरुआती दौर में कम से कम दो रेस्पिरेटरी लक्षण नजर आए थे। जैसे- खराश और सांस लेने में तकलीफ। ज्यादातर मरीजों की मौत तीन हफ्तों के अंदर हो गई थी। हालांकि सभी समूहों में इलाज अलग थे।