Corona effect on economy: आर्थिक मंदी नहीं, महामंदी की तरफ जायेगी अर्थव्यवस्था!

नई दिल्लीः कोरोना महामारी ने भारत सहित दुनियाभर के देशों की अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है (Corona effect on economy)। पूरी दुनिया में इस वायरस के फैलने के बाद बने यक्ष प्रश्न का उत्तर सभी को मिल गया है। खासकर ब्रिटेन, जर्मनी और कनाडा जैसे विकसित तथा भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे विकासशील देशों का आर्थिक ढ़ांचा पूरी तरह चरमरा गया है। डेढ़ सौ साल में भारत की अर्थव्यवस्था में इस तरह की गिरावट पहली दफा आयी है। एनएसओ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, सकल घरेलु उत्पादन (GDP) की पिछली तिमाही (अप्रैल, मई, जून) में नकारात्मक आयी है। उद्योग क्षेत्र में माइनस 38.1 फीसदी, खनन क्षेत्र में माइनस 41.3 फीसदी, भवन निर्माण में माइनस 50 फीसदी, सेवा क्षेत्र में माइनस 20.6 फीसदी, विनिर्माण क्षेत्र में माइनस 39.3 फीसदी, कृषि क्षेत्र में 3.4 फीसदी और व्यापार एवं होटल सहित अन्य माइनस 47 फीसदी पर पहुंच गया हैं। इसके साथ ही भारत जी-20 के देशों की सबसे खराब अर्थव्यवस्था बन गयी है।

यहां एक बात याद रखनी होगी कि पिछले तीन सालों में नोटबंदी आर्थिक क्षेत्र का सबसे विफल प्रयोग रहा, महत्वपूर्ण आर्थिक डेटा सरकार ने छिपाया, GST एक असफल प्रयोग रहा और सरकार कुछ फायदे में चल रही PSU को बेच रही हैं, क्योंकि सरकार के पास धन का अभाव था। देश में बेरोजगारी बढ़ रही है, जो सरकार के लिए चेतावनी थी। इसके अलावा पिछले आठ तिमाही में भारत की GDP लगातार गिर रही थी। इस पर कोरोना ने दोहरा प्रहार किया और भारत की GDP पिछली तिमाही में माइनस 23.9 फीसद पर पहुंच गयी है।

कोरोना काल में जी-7 देशों की सबसे खराब GDP में भारत के बाद ब्रिटेन की माइनस 20.4 प्रतिशत, फ्रांस की माइनस 13.8, इटली की माइनस 12.4, कनाडा की माइनस 12, जर्मनी की माइनस 10.1, अमेरिका की माइनस 9.5 और जापान की माइनस 7.6 फीसदी है। सिर्फ चीन की GDP 3.2 फीसद के साथ फायदे में रही है। कोरोना महामारी से पहले जनवरी, फरवरी, मार्च में भारत की GDP 4.2 पर चल रही थी, जिसकी अगली तिमाही में नीचे जाने की आशंका थी।

आखिर भारत की अर्थिक दशा के लिए जिम्मेदार कौन है। काफी पहले से कहा जाता रहा है कि भारत को यूरोपीय संघ की तरह संभालना चाहिए, लेकिन सरकार ने आनन फानन में पूरे देश पर लॉकडाउन लगा दिया। हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन का कहना है, ‘WHO द्वारा जारी दिशानिर्देशों में लॉकडाउन का कहीं जिक्र नहीं किया गया था। मगर कुछ देशों ने अधिक कठोर कदम उठाते हुए लॉकडाउन कर दिया।’ शायद यही कारण है कि अचानक लॉकडाउन हटाने का निर्णय लिया गया। इसके अलावा चिकित्सा सुविधा नहीं बढ़ायी गयी और इस कारण इस वक्त भारत में 80 हजार से अधिक कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं।

अर्थव्यवस्था को कमजोर करने वाले प्रमुख कारण

  1. बजट 2020 में बताया गया था कि पिछले एक दशक में सबसे कम कर संग्रह किया गया।
  2.  NSSO ने बताया था कि बेरोजगारी दर देश में 45 साल के सबसे निचले स्तर पर है।
  3. कृषि आय को सहारा बताया गया जो अक्टूबर से दिसंबर 2018 के 14 साल में सबसे निचले स्तर पर थी और एक करोड़ से अधिक नौकरियां चली गयी थी। अब हम इससे उबर रहे हैं।
  4. एक ‘कोल्ड वेब’ भारत की अर्थव्यवस्था पर आघात पहुंचा रही थी। इसका प्रभाव GDP पर पड़ा और वृद्धि, बेरोजगारी, औद्योगिक उत्पादन क्षमता, उपभोक्ता का भरोसा और कारोबारी धारणा काफी गिर गयी थी।
  5. भारत में ‘मेक इन इंडिया’, ‘लोकल टू वोकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी योजनाएं राजनीतिक इच्छापूर्ति के लिए घोषित की गयी। इस कारण इससे उबरने में लंबा वक्त लग सकता है। साथ ही बैकिंग प्रणाली पर भी कर्ज का बोझ बढ़ जायेगा।
  6. भारत की राजनीति ने देश की अर्थव्यवस्था का बंटाधार कर दिया है। हम चीन की उन्नति के बारे में सोचने की बजाय अर्थव्यवस्था को तबाह करने वाले निर्णय लेने लगते है।
  7. ‘इज आफ डूइंग बिजनेस’ के बारे में भारत की सरकारों ने 1991 के वैश्वीकरण के बाद कोई कदम नहीं उठाया। ना तो सरकारें वर्तमान कारोबारियों से ‘फीडबैक’ लेती है और ना ही कारोबारियों को आकर्षित करती है। इस कारण चीन से अपना प्लांट हटाने वाली कंपनियां ने वियतनाम, थाईलैंड और इंडोनेशिया को चुन रही है। ‘इज आफ डूइंग बिजनेस’ से संबंधित वर्ल्ड बैंक की रैंकिग को समाप्त कर दिया है।
  8. भारत में सीबीसीडी और ईडी जैसे संस्थान बेमतलब परेशान करते हैं। इस बारे में कई कारोबारियों ने बोला है और सरकार ने इस बात को स्वीकार भी किया है।
  9. सामाजिक अस्थिरता भारत को कहीं ना कहीं कई विकासशील देशों से पीछे कर देती है। करोड़ों डॉलरों में निवेश करने वाला व्यापारी इस पर खास तव्वजो देता है।
  10. दसवां और अंतिम कारण है कि भारत की सरकारें कभी अपनी गलती को मानकर किसी प्रकार का सुधार करने का प्रयास नहीं करती हैं।

भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कोरोना को ‘एक्ट आफ गॉड’ कहा था, लेकिन अर्थव्यवस्था को दुरूस्त रखना ‘एक्ट आफ गवर्नमेंट’ है। राजनीति की तरह ही एक राजनेता आर्थिक निर्णय लेने लगता है जो देश के लिए घातक साबित होता हैं। इसलिए इस मुश्किल वक्त में भारत के वित्तमंत्री के तौर पर कोरोना के बाद एक राजनेता के बजाय एक वित्त विशेषज्ञ की आवश्यकता होगी, जो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरह देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सके।

विशेषज्ञों का मानना है कि आर्थिक मंदी की बजाय महामंदी की तरफ वैश्विक अर्थव्यवस्था का जाना तय है और यह महामंदी बेहद खतरनाक साबित हो सकती है। भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों के लिए कोरोना के बाद वाला वक्त बहुत कठिन होने वाला है। आने वाली अगली तीन तिमाही की जीडीपी भी नकारात्मक रहेगी। सबसे अहम मसला है कि भारत सरकार के पास कामगारों का कोई आंकडा नहीं हैं। भारत में असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले दैनिक वेतनभोगी मजदूरों की संख्या 80 फीसदी है। ऐसी स्थिति में इन कामगारों तक सरकारी मदद पहुंचाना भारत सरकार के लिए असंभव है। भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए यह कितना गंभीर होगा। इसको सरकारी आंकड़ों से समझना बेहद मुश्किल है।

दीपक सेन
दीपक सेन
मुख्य संपादक