Bihar assembly elections 2020: मुद्दों के बीच चेहरे की राजनीति फिर ले डूबेगी बिहार को

अजय वर्मा

पटना: वैसे तो बिहार विधानसभा चुनाव में अभी वक्त है और कोरोना को देखते हुए फिलहाल कुछ कहना कठिन भी लेकिन सियासी चौसर बिछायी जा रही है। नयापन इस बार होगा डिजिटल माध्यमों पर निर्भरता का। बाकी बातें और तैयारी तो पुराने ढर्रे पर शुरू हो गई है।

कमर कसने की तैयारी जोरों पर

चुनाव की तैयारी के लिए चुनाव आयोग की सक्रियता को देखते हुए सियासत में गर्मी आ गई है। BJP की ओर से अमित शाह ने वर्चुअल रैली कर दी। अब पीएम का पत्र घर-घर बांटने का सिलसिला चल रहा है। NDA के सहयोगी जदयू सुप्रीमो और सीएम नीतीश कुमार ने लगातार 6 दिन कार्यकताओं से डिजिटल संवाद कर सोशल मीडिया पर सक्रिय हो जाने का संदेश दिया। लालू राज पर हमला उनके एजेंडे में हावी रहा। जदयू 14 जून को मिशन 200 के साथ वोटरों के बीच उतर रहा है। 243 सीटों के चुनाव में NDA को 200 सीट दिलाना इसका लक्ष्य है। एक घटक लोजपा की ओर से चिराग पासवान ने भी संभावित उम्मीदवारों से बैठकें की।

चुनावी रणनीति को लेकर विपक्ष में भी सरगर्मी

दूसरी ओर विपक्षी दलों ने भी रणनीतियों से सरगर्मी दिखायी है। राजद समेत रालोसपा, हम, वीआईपी, वामदल और कांग्रेस महागठबंधन को आकार देने की कोशिश में है। लेकिन नेतृत्व या सीएम फेस के नाम पर तेजस्वी यादव किसी को पच नहीं रहे हैं। संभव है आगे के दिनों में किसी सहमति पर पहुंचा जा सके।

मुद्दे कई लेकिन विकास की ठोस योजना नहीं

भ्रष्टाचार, बेलगाम अपराध, बेरोजगारी, चौपट शिक्षा ओर स्वास्थ्य व्यवस्था, बंद कल—कारखाने, बाढ़ की भयावहता तो पुराने चल रहे मुद्दे हैं ही, लॉकडाउन के कारण लाखों प्रवासियों की वापसी ताजातरीन मसला है जिनके लिए यहीं रोजगार की बाधाओं को दूर कर नये वोटर को लुभाने की कोशिश भी नहीं दिख रही है। वैसे बाहर से लौटे श्रमिकों के हुनर का डाटाबेस बनाकर यहीं रोजगार के अवसर देने की बात सरकार ने कही थी लेकिन उस पर अविश्वास करते हुए पुन: पलायन भी होने लगा है। फिलहाल एक ही मुद्दा अभी तैर रहा है—लालू-राबड़ी के 15 साल बनाम नीतीश के 15 साल।

राजग की ओर से 15 साल की अपनी उपलब्धियों के बूते मैदान में आने के बदले लालू काल के जंगल राज की बात उठाना, लालू के कारनामों के पोस्टर लगवाना साबित करता है कि नये पुराने सारे गंभीर मसले गौण रहेंगे और बिसात बिछेगी चेहरे पर। लालू या नीतीश। 15 साल बनाम 15 साल का मकसद यही है। विकास की बात बेमानी सी है। राजनीति की नई बयार ही असली समस्या को सतह पर ला सकेगी। इसमें किसी की दिलचस्पी फिलहाल नहीं उजागर हो रही है।

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समाचार संपादक
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