नई दिल्लीः फ्रेंडशिप-डे के मौके पर रविवार को हरियाणा से तीसरे मोर्चे का जुमला बना गया और इसके सूत्रधार बने इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला। उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लंच पर अपने गुरुग्राम स्थित आवास पर बुलाया और बंद कमरे में दोनों दिग्गजों की चर्चा हुई। इस दौरान जेडीयू के महासचिव के.सी त्यागी भी मौजूद थे, जो कि नीतीश और चौटाला के बीच हुई मुलाकात के सूत्रधार भी रहे।
दरअसल, राजनीति में कोई मुलाकात केवल शिष्टाचार के वशीभूत नहीं होती। हर मुलाकात का कोई न कोई मतलब होता है। हरियाणा के पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके ओमप्रकाश चौटाला और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रविवार को हुई मुलाकात को भी इसी राजनीतिक मंतव्य की एक कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी माने जाने वाले दोनों नेता बंद कमरे में घंटों साथ रहे। लंच भी हुआ और राजनीति पर चर्चा भी। चौटाला की रणनीति है कि उनके द्वारा बुने जा रहे तीसरे मोर्चे के जाल का नेतृत्व नीतीश कुमार करें, लेकिन नीतीश ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि जिस पार्टी इनेलो का न तो कोई विधानसभा में विधायक हैं और न ही लोकसभा व राज्यसभा में कोई सांसद, वो कैसे तीसरा मोर्चा बनाने के बारे में सोच सकती है ? ऐसी ही कोशिश ममता बनर्जी, मायवती, अखिलेश यादव, एम.के स्टालिन सहित कई नेता कोशिश कर चुके हैं, लेकिन कोई भी कामयाब नहीं हो पाया।
फिलहाल बिहार में जेडीयू और बीजेपी मिलकर सरकार चला रहे हैं। बीजेपी के विधायक नीतीश कुमार के दल जेडीयू से ज्यादा हैं , इसके बावजूद बीजेपी ने नीतीश को सीएम बनाया हुआ है। ऐसे में नीतीश क्यों तीसरे मोर्चे में जाएंगे, जिससे कि उनकी सीएम की कुर्सी भी जा सकती है?
बीजेपी और जेडीयू मिलकर 2005 से बिहार में सरकार चला रहे हैं , अगर 2013 से 2017 तक के 4 साल का वक्त छोड़ दिया जाए तो बाकी वक्त बिहार में जेडीयू और बीजेपी ने मिलकर सरकार चलाई है। अगर नीतीश को तीसरा मोर्चा बनाना होता तो वो पहले ही बना लेते, लेकिन आज की स्थिति में उनकी तीसरे मोर्चे में जाने की संभावना ना के बराबर है।
वैसे भी ओमप्रकाश चौटाला और उनके सभी उम्मीदवारों ने नीतीश कुमार के दल समता पार्टी से 1996 का लोकसभा और प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ा था। 1996 में पूर्व उप प्रधानमंत्री दिवंगत चौधरी देवीलाल ने भी समता पार्टी की टिकट पर रोहतक लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। नीतीश कुमार और चौधरी देवीलाल के बीच अच्छे संबंध रहे हैं। इसी के चलते भी नीतीश कुमार ने चौटाला का न्यौता स्वीकार किया था, खुद को राष्ट्रीय राजनीति में प्रासंगिक बनाए रखने के लिए भी इनेलो सुप्रीमो नीतीश से मुलाकात को तीसरे मोर्चा बनाने से जोड़कर बता रहे हैं, लेकिन इसके जरिए अपने कार्यकर्ताओं को संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि उनमें अभी भी दमखम बाकी है और दूसरा भविष्य की राजनीति को लेकर भी चौटाला ऐसा कर रहे हैं , क्योंकि 2024 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में दुष्यंत की पार्टी जेजेपी का अगर प्रदर्शन खराब रहता है, तो उस सूरत में हो सकता है कि इनेलो की एनडीए में एंट्री हो जाए! हो सकता है कि एनडीए में आने के लिए चौटाला नीतीश और केसी त्यागी के जरिए जुगत लगा रहे हों!
वैसे भी 2012 में जब नरेंद्र मोदी गुजरात के चौथी बार सीएम बने थे तो अहमदाबाद में उनके शपथग्रहण समारोह में ओमप्रकाश चौटाला भी शामिल हुए थे, नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने का चौटाला ने स्वागत भी किया था और 2014 में अपने दो सांसदों का मोदी सरकार को समर्थन भी दिया था, 2014 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जब बीजेपी का कुलदीप बिश्नोई की पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस यानी हजकां से गठबंधन टूटा था, तब भी चौटाला बीजेपी से गठबंधन करना चाहते थे, लेकिन मोदी ने घास नहीं डाली और चौटाला का एनडीए में आने का ख्वाब टूट गया। अब देखना दिलचस्प होगा कि चौटाला की लंच डिप्लोमेसी कितनी कामयाब होती है और इसके जरिए कितना वो कार्यकर्ताओं को अपने साथ जोड़े रखने में कामयाब होते है और भविष्य में इनेलो की एनडीए में एंट्री होती हैं या नहीं?