टेस्ला कंपनी पर बढ़ा चीन से प्लांट हटाने के लिए अमेरिकी दबाव

नई दिल्ली: अमेरिका और चीन के बीच ‘ट्रेड वार’ शुरू हो चुका है। इसके चलते अमेरिका अपनी कंपनियों पर अप्रत्यक्ष रूप से चीन से अपने प्लांट बाहर ले जाने के लिए दबाव बना रहा है। इस फेहरिस्त में सबसे बड़ा नाम है इलेक्ट्रानिक कार बनाने वाली कंपनी टेस्ला (Tesla) का।

अमेरिका स्थित सूत्रों के अनुसार, अमेरिका टेस्ला (Tesla) कंपनी से अपना प्लांट चीन से बाहर लगाने के लिए दबाव बना रहा है। मगर टेस्ला अपना प्लांट चीन के बाहर ले जाने के लिए कतई तैयार नहीं है। शायद इसका कारण यह है कि टेस्ला ने अपना प्लान बी तैयार नहीं किया था और चीन में प्लांट लगाने से पहले वह जियोपालिटिक्स को समझने में नाकाम नहीं रही।

सूत्रों के अनुसार टेस्ला (Tesla) कंपनी ने अमेरिका के टेक्सास में जमीन खरीदी है और वहां अपना एक प्लांट लगाने का आश्वासन अमेरिकी सरकार को दिया है। मगर अमेरिका में लगने वाला यह प्लांट चीन से बहुत छोटा होगा।

यहां यह बात समझ से परे है कि मोदी सरकार ने टेस्ला को अपना प्लांट भारत लाने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल क्यों नहीं किया? टेस्ला का बड़ा प्लांट भारत आने से इकोनॉमी को अगले 20 सालों के लिए बूस्ट मिल जाता, क्योंकि टेस्ला भविष्य की जरूरतों के हिसाब से काम करती है।

हाल में अमेरिकी कंपनी एप्पल (Apple) चेन्नई स्थित ताईवान कंपनी फाक्सकान (Foxconn) के साथ उत्पादन शुरू करेगी। खबरें तो यहां तक आ रही है कि एप्पल ने भारत में अपने बड़े प्लांट के लिए जमीन खरीद ली है। भारत की प्रोडक्शन लिंक्ड इंस्सेंटिव स्कीम (PLI) के लिए आवेदन किया है।

टेस्ला केवल कारें नहीं बनाती है बल्कि वह कई क्षेत्रों में काम करती है। उसकी सहयोगी कंपनी स्पेसएक्स (spacex) हौ जो भविष्य में लोगों को अंतरिक्ष का सैर कराएगी। टेस्ला के आने से भारत में नौकरियां बढ़ेगी। इसके अलावा टेस्ला कंपनी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, बाजार के नुकसान की भरपाई जैसे कई क्षेत्रों में सहयोगी साबित हो सकती है। वैसे भी टेस्ला की इंजीनियरिंग इकाई में 30 फीसदी भारतीय काम करते हैं।

कुल मिलाकर भारत की मोदी सरकार को टेस्ला को भारत में शिफ्ट करने के लिए अमेरिका से बात करनी चाहिए। और टेस्ला को तमाम सुविधाएं मुहैया करानी चाहिए। यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा कि एस दिशा में मोदी सरकार क्या सकारात्मक कदम उठा पाती है।