नई दिल्लीः बिहार में स्वास्थ्य व्यस्था की दयनीय स्थिति एक बार फिर से उजागर हुई है। एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कई सरकारी अस्पतालों में अयोग्य व्यक्तियों को फार्मासिस्ट के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने की अनुमति देने के लिए बिहार सरकार की जमकर खिंचाई की है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अप्रशिक्षित कर्मियों को दवा वितरण से संबंधित काम की जिम्मेदारी देना खतरे से भरा है।
जस्टिस शाह ने राज्य सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट रूप से कहा कि ‘पूरे राज्य में एक भी अस्पताल’ बिना पंजीकृत फार्मासिस्ट की मदद के दवाओं का वितरण न करे। न्यायाधीश ने राज्य के स्वास्थ्य विभाग के दृष्टिकोण पर आपत्ति जताते हुए पूछा, “यदि कोई अप्रशिक्षित व्यक्ति गलत दवा या दवा की गलत खुराक देता है, और इसका परिणाम कुछ गंभीर होता है, तो कौन जिम्मेदार होगा?” उन्होंने आगे कहा कि अदालत राज्य सरकार को अपने नागरिकों के जीवन के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं देगी।
पीठ बिहार सरकार की इस दलील से प्रभावित नहीं दिखी कि वह दोषी कर्मियों के खिलाफ कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करेगी। न्यायमूर्ति शाह ने कहा, “जहां गरीबी और शिक्षा की कमी है, आप शिकायत दर्ज होने तक इंतजार नहीं कर सकते। इससे भी ज्यादा, बिहार जैसे राज्य में। आप इस मामले की गंभीरता को नहीं समझ रहे हैं। यह सिर्फ फर्जी फार्मासिस्टों का ही नहीं, फर्जी डॉक्टरों का भी मामला है। आपको राज्य में कई फर्जी डॉक्टर और फर्जी कंपाउंडर मिल जाएंगे।’
उन्होंने आगे कहा, “गरीब, अशिक्षित लोगों को इलाज के लिए उनके (फर्जी डॉक्टर और कंपाउंडर) के पास जाना पड़ता है। बिहार के अस्पतालों की हालत सबसे खराब है और आप कह रहे हैं कि शिकायत दर्ज होने तक आप इंतजार करेंगे। शिकायत प्राप्त होने तक राज्य सरकार की निष्क्रियता ‘अनुमति योग्य नहीं’ है , “न्यायाधीश ने कहा, चिंताजनक प्रवृत्ति की जांच करना उनका कर्तव्य था ।
राज्य सरकार के वकील ने बिहार राज्य फार्मेसी काउंसिल पर दोष मढ़ने की मांग की, यह दावा करते हुए कि यह वर्षों से चुनावी मोड में जाने के बाद निष्क्रिय हो गया है। वकील ने कहा “रजिस्टरों को बनाए रखने और फार्मासिस्टों को नामांकित करने के लिए परिषद जिम्मेदार है। यह जिम्मेदार निकाय है जिसे कार्रवाई करनी है।”
जस्टिस शाह ने वकील के तर्क पर बेहद कड़े लहजे में कहा, “क्या इसका मतलब यह है कि राज्य सरकार जिम्मेदारी से मुक्त है? वे किसी को भी सरकारी या अर्ध-सरकारी अस्पतालों में दवा वितरित करने की अनुमति देंगे?”
याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी कहा कि फार्मेसी अधिनियम, 1948 की धारा 45 के तहत, राज्य सरकार को अधिनियम के प्रावधानों के अनुपालन में अनियमितताओं या गैर-अनुपालन के मामलों की जांच करने की आवश्यकता थी।