सामाजिक और आध्यात्मिक दर्शन है वसुधैव कुटुम्बकम्

नई दिल्ली: ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’एक सामाजिक दर्शन है, जो एक आध्यात्मिक सोच से निकला है। यह इस सोच को प्रोत्साहित करता है कि संपूर्ण मानव जाति एक परिवार है। यदि परमात्मा एक है तो हम कैसे अलग अलग हो सकते हैं? यदि समुद्र एक है तो उसकी बूंदे अलग अलग कैसे हो सकती है। इस तरह हम सब भी एक ही परिवार के सदस्य है फिर चाहे हम भारतीय हो या अफगानी। चाहे एशिया से हो या यूरोप से।

महा उपनिषद के अध्याय 6 और श्लोक 71 के अनुसार, ‘अयं बन्धुरयं नेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥‘ अर्थात ‘यह मेरा मित्र है और यह नहीं है। इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों के लिए तो सम्पूर्ण धरती ही परिवार है।‘

वर्तमान दौर में विश्व ग्लोवल विलेज बनता जा रहा है क्योंकि दूरियाँ मिट रही है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का तात्पर्य है कि पूरा विश्व एक परिवार है। यह बीज मंत्र भारतीय संस्कृति की सतत प्रभावमान विचारधारा है और इसका उल्लेख भारतीय दर्शन ग्रंथों में मिलता है। शायद यही कारण है कि ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ को भारतीय संसद के प्रवेश द्वार में लिखा गया है।

‘वसुधैव कुटुम्बकम’का प्राथमिक शब्द संस्कृत के तीन शब्दों ‘वसुधा, ईवा और कुटुम्बकम’ से मिलकर बना है। वसुधा का अर्थ है पृथ्वी, ईवा का अर्थ है जुड़े हुए और कुटुम्बकम का अर्थ है एक परिवार। इसका तात्पर्य है कि पूरी पृथ्वी केवल एक परिवार है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का विचार हितोपदेश से शुरू होता है।

हितोपदेश रचना और छंद में संस्कृत कथाओं का एक वर्गीकरण है। हितोपदेश के निर्माता, नारायण के अनुसार, हितोपदेश बनाने के पीछे प्राथमिक प्रेरणा युवा व्यक्तित्वों को जीवन के बारे में सोचने के तरीके को सरल तरीके से प्रशिक्षित करना है, ताकि वे जागरूक हो सकें। यह व्यावहारिक रूप से पंचतंत्र की तरह है।

पश्चिमी दृष्टिकोण के अनुसार वैश्वीकरण का अर्थ है कि “विश्व एक बाजार है।” लोगों का मतलब केवल लाभ तक है। यह वैश्वीकरण का वक़्त है जिसका अर्थ है घटते मानवीय मूल्यों के कारण भ्रष्टाचार, संघर्ष और हिंसा, इंसानी मूल्यों से ज्यादा धन को महत्व देना।

पूर्वी दृष्टिकोण के अनुसार हम यह मानते हैं कि “वसुधैव कुटुम्बकम” का अर्थ है विश्व एक परिवार है। इसका अर्थ है कि संपूर्ण विश्व एक परिवार है, जो प्राचीन ज्ञान के माध्यम से विश्वव्यापी नागरिकता और सद्भाव की संस्कृति को आगे बढ़ाता है। भारत अतीत में भी सद्भाव का एक वाहक रहा हैI

‘वसुधैव कुटुम्बकम’ एक भाव है, जिसमें पूरे समाज को यह बताया गया है कि पूरा विश्व एक परिवार है फिर चाहे हम भौतिक दृष्टि से देखे या आध्यात्मिक दृष्टि से देखे। दोनों के एक ही संदेश है कि दुनिया के सभी इंसानों में कोई भेद नहीं है। जैसे एक परिवार के सदस्य एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं, वैसे ही दुनिया के लोग एक दूसरे पर निर्भर है।

मानव जाति इस वक़्त विशाल सामाजिक और पारिस्थितिक कठिनाइयों का सामना कर रही है। इस वक़्त हम न सिर्फ अपने अस्तित्व और मानवता के लिए संघर्ष कर रहे है। लोगों में नैतिकता खत्म होती जा रही है। लोग सिर्फ अपने फायदे के बारे में सोचते हैं। जैविक आपातकाल, बढ़ती हुई गरीबी के साथ जनसंख्या वृद्धि, भूखमरी, क्रूरता, आर्थिक असमानता और हथियारों की दौड़ मनुष्यों को सोचने पर विवश कर रहे है कि क्या वो खुद अपने विनाश को आमंत्रण दे रहे हैं?

दीपक सेन
दीपक सेन
मुख्य संपादक