आप खुद बन सकते हैं अपना वकील, अदालत में कर सकते हैं अपनी पैरवी- जानिए कैसे…

यह एक आम धारणा है कि कानून बहुत जटिल और कठिन विषय है, जिसे समझना आसान नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि हमारे आसपास जो कुछ भी घटित होता है या हो रहा है, वह सबकुछ कानून के ही अधीन होता है। इसलिए सभी को कानून की सामान्य जानकारी और समझ होना बेहद जरूरी है। खासकर युवा वर्ग को कानूनी जानकारी होना बहुत जरूरी है क्योंकि युवाओं पर ही देश समाज घर परिवार का भविष्य निर्भर करता है।

पटनाः यह एक आम धारणा है कि कानून बहुत जटिल और कठिन विषय है, जिसे समझना आसान नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि हमारे आसपास जो कुछ भी घटित होता है या हो रहा है, वह सबकुछ कानून के ही अधीन होता है। इसलिए सभी को कानून की सामान्य जानकारी और समझ होना बेहद जरूरी है। खासकर युवा वर्ग को कानूनी जानकारी होना बहुत जरूरी है क्योंकि युवाओं पर ही देश समाज घर परिवार का भविष्य निर्भर करता है।

कानून में धारणा है कि कानून की जानकारी सबको होती है। भले ही यह वास्तविकता न हो लेकिन कोई यह कहकर नहीं बच सकता कि मुझें नियम कानून की जानकारी नहीं थी इसलिए गलती हो गयी है। इसलिए यदि कानून की जानकारी हो या न हो, यदि कानून लागू है तो इसे जानना अति आवश्यक है। कानून की विधिवत शिक्षा नहीं होने के बावजूद लोगों को इतना सक्षम अवश्य होना चाहिए कि जरूरत पड़ने पर अपनी वकालत स्वयं किया जा सके। कानून में इस बात की छूट है कि कोई व्यक्ति अपने मामलों में पैरवी कर सकता है और न्यायालय में अपना पक्ष स्वयं रख सकता है।

वकालत एवं कानून

आम तौर पर न्यायालय में जरूरत पड़ने पर लोग अपनी पसंद का वकील नियुक्त करते हैं। वकील इसके लिए संवैधानिक रूप से अधिकृत होते हैं और अधिवक्ता अधिनियम के तहत पंजीकृत होते हैं। अधिवक्ता होने के लिए विधि स्नातक की डिग्री होना अनिवार्य है। अधिवक्ता होने से विधि व्यवसाय किया जा सकता है। अधिवक्ता दूसरों के मामलों में अधिकार पत्र के साथ पैरवी करने और पक्ष रखने के लिए कानूनन अधिकृत होते हैं और इसके लिए पेशागत सेवा शुल्क लेते हैं। कानून एवं प्रक्रिया की तकनीक और जटिलता के कारण आम लोग पेशेवर अधिवक्ताओं को नियुक्त करना लोग अधिक पसंद करते हैं, लेकिन किसी को स्वयं न्यायालय में अपना पक्ष रखने और पैरवी करने पर कानूनन कोई प्रतिबंध नहीं है।

न्यायालय में स्वयं पैरवी करने की प्रक्रिया

न्यायालय में स्वयं पैरवी करने के लिए संबंधित न्यायालय में निवेदन कर अनुमति प्राप्त करना होता है। इसके लिए न्यायालय में स्वयं उपस्थित होकर अपना निवेदन प्रस्तुत किया जा सकता है तथा और मामले में पैरवी की जा सकती है। इसके बाद न्यायालय के आदेशानुसार आगे की कार्यवाही की जा सकती है। आमलोगों को सामान्य तौर पर न्यायिक आदेशों को समझने के लिए सामान्य विधिक जानकारी और थोड़ी सी जागरूकता की जरूरत होती है। विधिक जागरूकता से ही लोग सामान्य कानूनी भाषा जैसे- सिविल और क्रिमिनल मामला क्या होता है? जमानतीय और अजमानतीय अपराध में क्या अंतर है? संज्ञेय और असंज्ञेय मामला किसे कहते हैं? इत्यादि अनेकों बातें हैं जिनकी जानकारी की बदौलत आम लोग कोर्ट में बेहतर पैरवी कर या करा सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि वकील द्वारा किये गये कार्य को भी पक्षकार द्वारा स्वयं किया गया माना जाता है। कानून की जानकारी और समझ लोगों को कानून के दायरे में रहकर गरिमापूर्ण जीवन जीने में सक्षम बनाती है। चूंकि प्रत्येक व्यक्ति जीवन भर कानून से प्रभावित होता है, इसलिए कानूनी जानकारी और जागरूकता स्वयं अर्जित करने योग्य विषय है। कानून की जानकारी से अधिकार, कर्तव्य एवं दायित्व के निर्वहन में सुविधा होती है। सभी प्रकार के मामलों को सिविल और क्रिमिनल मामलों में बांटा जा सकता है। सामान्यतः सिविल में मामले का समाधान निकाला जाता है और क्रिमिनल मामले में दंडित किया जाता है।

सिविल मामलों में पैरवी

सिविल मामलों में किसी अधिकार या दायित्व का निर्धारण किया जाता है। सिविल मामलों में कानूनी जानकारी के लिए  सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 का अध्ययन किया जा सकता है। अधिकांश सिविल मामलों में इसी संहिता का अनुशरण किया जाता है। विशेष मामलों जैसे- राजस्व, बैंक, विवाह, उत्तराधिकार, नौकरी, पेशा, व्यवसाय इत्यादि के लिए अलग अलग कानूनी पुस्तकों का अध्ययन किया जा सकता है। सिविल प्रक्रिया संहिता को सिविल मामलों का सामान्य कानून माना जाता है।

सिविल मामलों में स्वयं जबाब दाखिल किया जा सकता और सबूतों एवं गवाहों के आधार पर अपने अधिकारों को प्राप्त किया जा सकता है। अनेक मामलों में आवश्यक दस्तावेजों की प्रति न्यायालय द्वारा उपलब्ध कराई जाती है तथा नकल विभाग से भी दस्तावेजों की सत्यापित प्रति प्राप्त की जा सकती है। कोई भी कुछ सामान्य कानूनी बातों की जानकारी से अपने अधिकार एवं दायित्वों का बेहतर निर्वहन कर सकता है।

आपराधिक मामलों में पैरवी

आपराधिक मामलों में किसी अपराध के लिए दंडित करने का प्रावधान होता है। आपराधिक मामलों के जानकारी के लिए भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संहिता 1973 एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 महत्वपूर्ण है। अधिकांश आपराधिक मामले इन तीनों को मिलाकर संचालित होते हैं। यह तीनों अधिनियम मिलकर आपराधिक मामलों के लिए सामान्य कानून निर्धारित करते हैं। विशेष आपराधिक मामलों की जानकारी के निर्धारित विशेष अधिनियम का अध्ययन किया जा सकता है, जैसे- शस्त्र अधिनियम, विद्युत अधिनियम, दहेज अधिनियम, मद्य निषेध अधिनियम, विस्फोटक अधिनियम इत्यादि।

आपराधिक मामलों में स्वयं अपनी जमानत आवेदन दाखिल किया जा सकता है। गवाहों और सबूतों का स्वयं परीक्षण किया जा सकता है। मामले को समझने के लिए संबंधित नकल विभाग से आरोप पत्र एवं अन्य कागजातों की सत्यापित प्रतिलिपि प्राप्त कर अध्ययन किया जा सकता है और स्वयं न्यायालय में जिरह बहस कर खुद को निर्दोष साबित किया जा सकता है।

कानून जैसा भी हो, इसको लेकर डरने की बजाय बेहतर है कि इसको समझने की कोशिश किया जाये क्योंकि कानून से सबका जीवन प्रभावित होता है। कानून की समझ होने से लोग अपने मामलों में पैरवी के अलावे कानून व्यवस्था को बेहतर बनाने में सहयोग कर सकते हैं। खासकर युवा वर्ग, जो देश और समाज के भविष्य हैं, कानूनी जानकारी की बदौलत अपने अधिकार एवं कर्तव्यों पालन बेहतर ढ़ंग से कर सकते हैं और न्याय व्यवस्था को नया आयाम दे सकते हैं।

कुलदीप नारायण दुबे
कुलदीप नारायण दुबेhttps://newsstump.com
आप पटना उच्च न्यायालय से संबद्ध वरीय अधिवक्ता है। आप लगभग दो दशक से वकालत पेशे से जुड़े हुए हैं और कानून की बरीकियों की बेहतर समझ रखते हैं।