क्योंकि शौक बड़ी चीज है- पढ़िए कहानी दुनिया के सबसे बुजुर्ग छात्र की

बिभा पाण्डेय
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वर्ष 2003 में केनया के राष्ट्रपति एम. वाई. हिवाकी ने जब निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की घोषणा की, तो वहां के एक नाती-पोते वाले 90 वर्षीय बूढ़े किसान को पढ़ने को शौक चढा। शिक्षा का शौकिन वह शख्स केनया के रिफ्ट गांव का रहने वाला था जिसका नाम किमानी मारुगे (Kimani Maruge) था।

मारुगे (Maruge) पूरी तरह निरक्षर थे, लेकिन शिक्षा के महत्व को बखूबी समझता थे, लिहाजा उस वक्त उसने स्कूल जाना शुरू किया जब वह परदादा बन चुके थे। इस उम्र में प्राथमिक विद्यालय में दाखिला लेने वाला वह बुजुर्ग शख्स दुनिया का सबसे उम्रदराज छात्र थे।

दरअसल वर्ष 1950 में जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ विद्रोह हुआ था, तो उस समय किमानी मारुगे (Kimani Maruge) को स्कूल में दाखिल होने का मौका ही नहीं मिला। जीवन में सब कुछ हासिल कर लेने के बावजुद भी मन में एक कसक सी रह गई थी। अपनी उसी कमी को उसने 90 वर्ष के उम्र में जाकर पुरा किया। नतीजा यह हुआ कि दुनिया भर में निःशुल्क शिक्षा का प्रचार करने के लिए वह बुजुर्ग मारुगे एक तरह से पोस्टर ब्वाय बन गये।

वर्ष 2005 में किमानी मारुगे ने यूनाइटेड नेशन के न्यूयार्क की यात्रा की। उस यात्रा में विश्व भर के नेताओं से उन्होंने अपील की कि गरीबों के लिए मुफ्त शिक्षा की कानूनी व्यवस्था कायम हो।

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जानकार बताते हैं किमानी मारुगे (Kimani Maruge) वर्ष 2015 के शुरुआत में ही कैंसर जैसी घातक बिमारी की चपेट में आ गए थे। उनकी सर्जरी भी हो चुकी थी, लेकिन धिरे-धिरे उनका स्वास्थ्य गिरता चला गया। इसी बीच देश में घटित कुछ राजनीतिक और समाजिक अस्थिरता के कारण मारुगे को रिफ्ट गांव स्थित अपना घर-बार छोड़कर नैरोबी स्थित एक ओल्ड एज होम जाना पड़ा।

अपनी तमाम शारीरिक अस्वस्थता और परेशानियों के बावजूद मारुगे अनवरत अपनी पढाई को आगे बढ़ाते रहे। लेकिन नियती ने बुजुर्ग किमानी मारुगे (Kimani Maruge) की पढ़ने की इक्षा पुरी नहीं होने दी। केवल दो ही वर्ष बचे थे प्राथमिक शिक्षा पूरी होने में कि मौत ने मारुगे को अपने आगोश में ले लिया।

मरने से पहले मारूगे ने एक पत्रिका को दिए साक्षात्कार में बताया था कि वह इसलिए पढ़ना चाहते थे कि बाइबल पढ़ने में उन्हें सहूलियत हो सके। मारुगे मानते थे कि शिक्षा ही मुनष्य को सावाधीन बनाती है।

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