चीन मसले पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दोहराई पंडित नेहरू जैसी गलती!

दीपक सेन
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भारत और चीन के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) में सोमवार की रात को भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच गलवान घाटी के पास हिंसक झड़प हुई। इस घटना में भारत के 20 जवान शहीद हो गए। इसके बाद दोनों देशों के रिश्तों में एक बार फिर कड़वाहट बढ़ गई है।

एक तरह से देखा जाये तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1962 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा की गयी गलती को दोहराने का काम किया है। नेहरू ने पंचशील में चीन को शामिल किया था और 1962 में उसी चीन ने भारत पर हमला कर दिया। भारत के ना कहने के बाद चीन यूएन का स्थाई सदस्य बन गया।

वैसे ही चीन की चाल से बेखबर मोदी चीन के तानाशाह शासक शी जिंगपिंग के साथ झूला झूलते रहे और बंद कमरे में बात करते रहे। फलसफा वही रहा जो 1962 में था। भारतीय नागरिकोंं को चीन की दगाबाजी ही हाथ लगी। यह गलती प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तान जाकर और वहां की जांच एजेंसी को भारत बुलाकर भी कर चुके हैं। भारत और चीन सीमा पर मई से तनाव जारी है।

इस वक्त भारत सरकार के प्रधानमंत्री से लेकर किसी नौकरशाह में हिम्मत नहीं हुई कि जनता को वास्तविक स्थिति से अवगत करा सके?

सैनिकों के मरने की खबर चीनी अखबार “ग्लोबल टाइम्स” से मिली। यह चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का बेहद आक्रामक अखबार है। इस अखबार के संपादक ट्वीट से भारतीय मीडिया को सैनिकों के मारे जाने की खबर मिली।

क्या भारत सरकार बता सकती है कि आजादी के बाद के 70 सालों में कितने राजनेताओं के बेटे सरहद पर शहीद हुए हैं? यदि नहीं तो नैतिक रूप से उन्हें सत्ता पर बने रहने का अधिकार नहीं है। कोई राजनेता देश को जवाब देगा कि सरहद पर शहीद होने के लिए मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे और सत्ता की मलाई खाने के लिए नेताओं के बेटे, आखिर क्यों? अब देश की जनता को नेताओं से 70 साल का हिसाब मांगना चाहिए।

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मुख्य संपादक
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