तारीख 22 मार्च। बिहार दिवस। जैसे जैसे बिहारी अस्मिता जाग रही है, बिहारियों को ये तारीख याद रहने लगी है। मुझे भी याद थी। कुछ कार्यक्रम, कुछ शुभकामनाएं। कुछ पिछले सालों की तर्ज पर, तो कुछ अलहदा। पर मिला-जुलाकर सिलेब्रिशन का तरीक़ा कमोबेश एक जैसा ही। लेकिन इस बार बिहार को लेकर मेरे सपने में भी जैसे पर लग गए। लेट्स इंस्पायर बिहार (Let’s Inspire Bihar) के कार्यक्रम को देखने के बाद बिहार की तरक्की को लेकर मैं भी एक सुखद सपने में खो गया।
बिहार विकास संकल्प दिवस 2025 । पटना के गांधी मैदान के पास स्थित बापू सभागार में मै भी अपने एक पत्रकार मित्र के साथ पहुंचा। भारी भीड़ थी। सभागार तो खचाखच भरा ही था। बाहर उससे भी कहीं ज्यादा लोग खड़े थे। किसी गैर-सियासी जलसे में इतने लोगों का जमावड़ा मेरी कल्पना से परे था। पर ये सोच कर कि इतने सारे लोग बिहार की तरक्की को लेकर ना केवल उम्मीद बांधे बैठे हैं बल्कि विकास की इस यात्रा में अपनी भागीदारी भी सुनिश्चित करने को तत्पर हैं। अंदर पहुंचा तो नजारा अद्भुत लगा। बिहार को बदलने को लेकर मुट्ठी भींच कर नारा लगाते लोग जैसे मेरे दिल में भी अपनी जगह बना गए। सोचने लगा कब वो दिन आएगा जब दूसरे राज्यों वाले भी हमें सम्मान से देखेंगे। कब सूबे के सीने पर लगा- लालू के बिहार का तमगा इससे हटेगा और हम बिहारी होने पर गौरवान्वित हो सकेंगे।
इसी बीच लेट्स इन्सपायर बिहार के समस्तीपुर चैप्टर की ओर से बिहार गान की प्रस्तुति की गई। प्रस्तुति वाकई मनभावन और शानदार रही। मैं सोचने लगा कि सरकारी सेवा में रहते हुए कोई शख्स बिहार को एक सूत्र में पिरोने के लिए इतना जतन कैसे कर पाया। और कुछ हो या ना हो विकास वैभव के पास एक मजबूत इच्छाशक्ति तो अवश्य है जिसके दम पर आज इतना बड़ा परिवार उन्होंने खड़ा कर दिया है।
क्रार्यक्रम आगे बढ़ा तो ये भी साफ हुआ कि विकास के जिस एजेंडे पर काम हो रहा है उसका फलसफा भी फिसड्डी नहीं। जाति, पंथ और मजहब से उपर उठ कर बिहार के भविष्य के लिए मतदान और अपने सुधड़ विजन की बदौलत एक गौरवशाली बिहार का निर्माण। विकास वैभव ने बड़ी बारीकी से इसे गढ़ा है। कहना गलत न होगा कि इसके लिए उन्हें दिन रात मेहनत करनी पड़ रही होगी। कोई संगठन यूं ही रातो रात इतनी मजबूती से खड़ा नहीं हो जाता।
गार्गी चैप्टर के जरिए महिलाओं की भागीदारी, बिहार के 19 जगहों पर मुफ्त स्कूलों का चलाया जाना, कई जगहों पर स्टार्ट-अप के जरिए युवाओं को नियोजन वाकई वैसे ही सोपान हैं जो साल 2047 तक बिहार को देश के अव्वल राज्यों की सूची में टॉप पर पहुंचा सकते हैं। हालांकि बिहार के विकास को लेकर जनसुराज वाले प्रशांत किशोर का मॉडल भी इससे काफी हद तक मिलता जुलता है लेकिन दोनों में फिलहाल फर्क ये है कि एक का एजेंडा पूरी तरह राजनीतिक है तो दूसरे का निहायत गैर-सियासी।
लेकिन इससे इतर एक बात और है जिसपर मैने गौर किया। वो ये कि कार्यक्रम में मंचासीन लोग बड़े हिसाब से बुलाए गए थे। कुछ पत्रकार, कुछ शिक्षाविद्, कुछ समाजसेवी और कुछ नेतागण। ज्यादातर का वास्ता या तो सासाराम से है या फिर पश्चिमी चंपारण के बगहा से। इन दोनों ही जगहों पर अपने करियर के शुरुआती दौर में विकास वैभव पोस्टेड रहे हैं और अपने काम के दम पर लोगों के दिलों में जगह बनाने में भी सफल रहे हैं। कहते हैं मिनी चंबल कहे जाने वाले बगहा पुलिस रेंज के लोगों को उन्होंने अभयदान दिया। बदले में लोग उन्हें आजतक नही भूले। बगहा में उनके नाम पर विकास वैभव चौराहा तक है। वहीं बतौर पुलिस कप्तान सासाराम के किले को नक्सलियों से मुक्त कराने का गौरव भी विकास वैभव को ही हासिल है।
बगहा हो या सासाराम विकास वैभव आज भी वहां किसी के लिए भी राजनीतिक चुनौतियां खड़ी कर सकते हैं। वो चुनाव मैदान में उतर जाएं तो इन दोनों ही सीटों पर कोई भी पार्टी उन्हें हल्के में लेने की ग़लती नहीं कर सकती। लेकिन मेरा दिल कहता है कि ये उपलब्धि विकास वैभव के लिए कत्तई कोई बड़ी उपलब्धि न होगी। उल्टा लोग कहेंगे कि उन्होंने अरविंद केजरीवाल की तर्ज पर अपनी बढिया मार्केटिंग की। कहीं न कहीं मुझे लगा कि बिहार को उनकी जरुरत एक मार्गदर्शक के तौर पर ज्यादा है। विकास उनके एजेंडे में है। और इसी विकास की बदौलत बिहार अपने पुराने वैभव को वापस पा सकता है।
***** लेखक परिचय *****
लेखक बिहार के नामी-गिरामी उद्यमी हैं। साहित्य और संस्कृति से पुराना लगाव है। समाजसेवा से भी सालों पुराना सरोकार है। बिहार की राजनीति में भी थोड़ी-बहुत रुचि रखते हैं। फिलहाल लोकजनशक्ति पार्टी ( रामविलास) के कलमजीवी प्रकोष्ठ के वरीय उपाध्यक्ष हैं।