मुहिमः बुनियादी सुविधाओं को तरसते बिहार के इस गाँव की टूट रही है सरकार से उम्मीद

भारत गाँवों का देश है। इसकी आत्मा गाँवों में वास करती है। इसलिए भारत के विकास को नापना है तो गाँवों के हालात को जानना जरूरी है। लिहाजा, हमने अपनी खास पेशकश "मुहिम" की शुरुआत गाँव से की है। "मुहिम" के तहत आज हम आपको रुबरु कराएंगे रोहतास जिला के इटढ़ियाँ गाँव से।

रोहतासः भारत गाँवों का देश है। इसकी आत्मा गाँवों में वास करती है। इसलिए भारत के विकास को नापना है तो गाँवों के हालात को जानना जरूरी है। लिहाजा, हमने अपनी खास पेशकश “मुहिम” की शुरुआत गाँव से की है। “मुहिम” के तहत आज हम आपको रुबरु कराएंगे रोहतास जिला के इटढ़ियाँ गाँव से। यह गाँव बिक्रमगंज अनुमंडल अंतर्गत काराकाट प्रखंड के बेनसागर पंचायत का हिस्सा है। यहां अभी पंचायत चुनाव की गहमा गहमी है। चुनाव तीसरे चरण में है जिसके लिए 8 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे। बहरहाल, हम बात चुनाव की नहीं गाँव के हालात की करेंगे।

बिक्रमगंज अनुमंडल से 12 किमी की दूरी पर कांव नदी के किनारे बसा है इटढ़ियाँ गाँव। लगभग 4000 आबादी वाले इस गाँव में अधिकांश परिवारों की जीविका पूरी तरह से खेती पर निर्भर है। कांव नदी की वजह से गाँव में कभी सुखाड़ की समस्या आड़े नहीं आती। खेती ठाक-ठाक होती है, लेकिन शहर से गाँव काफी दूर हो जाता है, क्योंकि यहां आने-जाने के लिए नदी पर फिलहाल पूल नहीं है। एक छोटी सी पुलिया है, जिसके सहारे पैदल या फिर मोटरसाइकिल और साइकिल के जरिए लोग अनुमंडीय शहर बिक्रमगंज तक आना-जाना कर लेते हैं। समस्या तब जटिल हो जाती है, जब गाँव के गंभीर मरिजों को ईलाज के लिए अस्पताल जाना होता है और वाहन गाँव तक नहीं पहुंच पाता।

पंचायती राज व्यवस्था चारो खाने चित्त

अब गाँव के अंदर की बात करें, तो यहां के लोगों का जीवन काफी मुश्किलों भरा है। यहां के लोग गलियों में नहीं नालियों में चलते हैं। विकास से कोसो दूर यह पूरा का पूरा गाँव कचड़े के ढेर पर बसा है। शिक्षा, स्वास्थ्य और दूसरी अन्य बुनियादी सुविधाएं भी नदारद हैं। अगर सुविधाएं थोड़ी-बहुत हैं भी, तो जीर्ण शीर्ण स्थिति में। पूरे गाँव की हालत देखकर लगता है, जैसे पंचायती राज व्यवस्था में सरकार की सारी सुविधाएं यहा पहुंचने से पहले खत्म हो जाती हैं।

Itadhiyan

गाँव में नहीं पहुंच पाती सरकार की योजनाएं

इटढ़ियाँ गाँव के लोगों का कहना है कि सरकार ने जिस तरह से गाँवों के विकास के लिए खजाना खोल रखा है, उसका एक फीसदी भी इस गाँव में सही तरीके से नहीं पहुंच पाता। शौच मुक्त भारत के लिए हर घर शौचालय और पीने के लिए हर घर नल का जल तो छोड़ दीजिए, यहां कई परिवार ऐसे हैं जो खुले आसमान के नीचे बसर करने को मजबूर हैं क्योंकि इन्हें आवास भी नहीं मिल सका है। बात मनरेगा (MNREGA) की करें तो साहबों की मेहरबानी से लोगों को रोजगार और मजदूरी दोनों बस कागजों पर मिलता है। मुखिया हो या सरपंच या फिर सांसद और विधायक किसी का भी ध्यान इस गाँव पर नहीं है।

Itadhiyan

छत की कौन कहे, भूख से संग्राम करना पड़ता है

एक घर की जर्जर पड़ी पुरानी कच्ची दीवार जिस पर पूर्व सांसद उपेंद्र कुशवाहा का नाम संगमर्मर के पत्थरों पर मोटे अक्षरों मे लिखा है उसमें रहने वाले कहते हैं, ‘सांसद महोदय के नाम ने तो इस दीवार पर अपना ठिकाना तलाश लिया, लेकिन इसकी चार दिवारी में रहने वाले लोग भूखे-नंगे और बे-छत जि रहे हैं, जिस पर किसी का ध्यान नहीं।’ गाँव के भूमिहिन  बुजुर्ग दंपति द्वारिका नाथ तिवारी और सरस्वती देवी की हालत तो पूछो मत। सर पर छत की जरूरत तो इनके लिए बहुत बाद में आती है, जिने के वास्ते दो जून की रोटी के लिए भी संग्राम करना पड़ता है। यही हालत गाँव के कन्हैया राय, जगदीश बढ़ई  और कई दूसरे परिवारों की भी है।

Itadhiyan

कुल मिलाकर इटढ़ियाँ गाँव सरकार और उसकी व्यवस्था की उदासीनता का शिकार है। सरकार की योजनाएं यहां तक नहीं पहुंचती और अगर भूले बिसरे पहुंचती भी हैं, तो लाभ उन्हीं लोगों को मिल पाता हैं जिन्हे वास्तविक तौर पर इसकी जरूरत नहीं है। दबे-कुचले, बेबस और लाचार लोग वंचित रह जाते हैं, जिनकी तादाद इस गाँव में ज्यादा है।

News Stump
News Stumphttps://www.newsstump.com
With the system... Against the system