वैश्विक महामारी कोरोना ने दुनिया के सामने कई अनसुलझे सवाल खड़े कर दिए है। जिस तरह से इस महामारी की जद में आकर दुनिया के तमाम विकसित देश घुटने टेक रहे है, वैसे में अगर महाशक्ति देश का तमग़ा पाने के लिए वायरस युद्ध की आशंका व्यक्त की जा रही है तो यह आधारहीन नहीं है।
अगर दुनिया के नक्शे को देखा जाए तो अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों को छोड़कर तकरीबन बाकी दुनिया कोरोना के खतरे की ज़द में है। साथ ही अगर इतिहास पर नज़र डालेंगे तो महामारियों और उपनिवेशवाद के मध्य सदैव एक अनन्य संबंध रहा है। आज साम्रज्यवाद के सत्ता पर क़ाबिज़ होने कि होड़ में कोरोना वायरस कि भूमिका बेहद अहम् है। उपनिवेशवाद एवं महामारियों के मध्य इस अनन्य संबंध के कई दिलचस्प किन्तु भयावह पहलू हैं। इस पर आगे बात करेंगे। सबसे पहले हमे कोरोना वायरस की उत्पत्ति को समझ लेते है और फिर इसके प्रसार के दायरे को देखने पर शायद कुछ अनुत्तरित सवालों के जबाब हमें मिल जाए।
दुनिया को पिछले साल दिसंबर महीने के अंत में चीन में कोरोना वायरस का पहली बार पता चला था और तब इस बीमारी को “अज्ञात कारणों से हुआ निमोनिया” माना जा रहा था। हालांकि चीन ने अपने अस्तित्व, इसकी सीमा और शुरुआती अवस्था में इसकी गंभीरता को छुपाया भी था। चीन ने WHO को 31 दिसंबर को कोरोना वायरस की जानकारी दी और लगभग उसी वक़्त एक डॉक्टर जिन्होंने अपने सह-कर्मियों को सार्स जैसे किसी वायरस के संक्रमण को लेकर आगाह किया था उनसे पुलिस ने पूछताछ भी की थी। डॉ ली वेनलियांग और दूसरे लोगों को चुप करा दिया गया। कुछ दिनों बाद डॉ ली की मौत कोरोना वायरस की वजह से हुई।
शुरुआत में दुनिया के अग्रणी देशों ने इस वायरस को लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखाई, लेकिन जनवरी समाप्त होते-होते इस कोरोना ने चीन में हाहाकार मचा दिया। इसके बाद अमेरिका समेत यूरोप के देशों ने चीन की खान पान पद्धति को इस वायरस की उत्पत्ति के लिए जिम्मेदार ठहराया। फरवरी के शुरुआत में इस वायरस ने चीन की की सीमा को क्रॉस कर पहली दुनिया के देशों को अपने जद में लेना शुरू कर दिया।
चीन के बाद कोरोना ने सबसे ज्यादा इटली में तबाही मचाई। शुरुआत में अमेरिका के प्रभाव में इटली कोरोना को चीनी वायरस कह रहा था। और तब चीन बदनामी के डर से उससे ये गुज़ारिश कर रहा था कि ये एक महामारी है और वो इस वायरस को उसके मुल्क से ना जोड़ें। लेकिन कहते हैं समय हर समय को बदल देता है और जब समय बदलता है, तो जुबानी भाषा भी अपना रंग बदल लेती है। वक्त ने ऐसी करवट ली कि अब इटली कोरोना से लड़ने के लिए चीन के सामने मदद को गिड़गि़ड़ा रहा है।
जिस चीन को पूरी दुनिया ने इस वायरस की उत्पत्ति के लिया जिम्मेदार ठहराया और आज अमेरिका समेत पूरी दुनिया इस जानलेवा वायरस की वजह से चीन की तरफ झुकी हुई नज़र आ रही है। इन सभी देशों को कोरोना से लड़ने के लिए चीन का एक्सपीरियंस और उसके मैडिकल इक्वेपमेंट की ज़रूरत है। अमेरिका से लेकर यूरोप तक और इंग्लैण्ड से लेकर ईरान तक सभी इस महामारी से बचने के लिए चीन की मदद ले रहे हैं।
कहने वाले तो यह भी कहते है की एक अच्छा व्यापारी विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी व्यापारिक क्षमता को खत्म होने नहीं देता। शायद चीन भी एक अच्छे व्यापारी की तरह ही कोरोना संकट काल में भी व्यापार कर रहा है। स्पेन अब तक चीन से करीब 432 मिलियन यूरो यानी करीब 36 अरब रुपये का मैडिकल इक्वेपमेंट खरीद चुका है। यहां तक कि अमेरिका भी अब चीन के सामने झुक गया और वो भी कोरोना से लड़ने के लिए चीनी इक्वेपमेंट आयात कर रहा है। इसके अलावा चीन ईरान और कनाडा को भी मैडिकल इक्वेपमेंट मुहैया करा रहा है। अब ज़ाहिर है चीन जैसा देश समाज सेवा तो कर नहीं रहा है। बल्कि वो इस मौके को भुना कर दुनिया पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है।
कुल मिलाकर दुनिया के 50 से ज़्यादा ऐसे देश हैं, जो कोरोना की ये जंग चीन के भरोसे लड़ रहे हैं। और चीन भी उनकी खुशी खुशी मदद कर रहा है। क्योंकि वो जानता है कि ये महामारी जब तक चलेगी। तब तक उसकी अर्थव्यवस्था मज़बूत होती जाएगी। और दुनिया की इकॉनमी कमज़ोर होती जाएगी। इस तरह वो बेहद कम वक्त में दुनिया की सबसे मज़बूत अर्थव्यवस्था बन जाएगा। जिसके बाद सुपरपावर बनने का रास्ता बेहद आसान है।
इन सबके बीच एक बात पर ध्यान देने की ज़रुरत है चीन के पडोसी देश भारत, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, पाकिस्तान जैसे देशों में कोरोना ने अब तक वैसी तबाही नहीं मचाई है जैसा हाहाकार आज यूरोप और अमेरिकी देशों में मचा हुआ है। इसके पीछे इन देशों का चीन के लिए बाजार होना भी हो सकता है। आपको बता दें कि चीन दुनिया का मैन्यूफैक्चरिंग हब है। यानी दुनिया में सबसे ज़्यादा मैन्यूफैक्चरिंग चीन में ही होती है। दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं हैं जो इस मामले में चीन का मुकाबला कर सके। भारत जैसे देश जहाँ अब तक मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट उतनी डेवलप नहीं हो पायी है जितनी हो जानी चाहिए थी। वैसे में भारत आज भी चीन से भारी मात्रा में कई तरह की वस्तुएं निर्यात करता है।
हालांकि यह कहना जल्दबाज़ी होगा कि भारत जैसे देश में कोरोना का तांडव पहली दुनिया के देशों कि अपेक्षा कम होगा। अप्रैल के अंत तक हीं तस्वीर साफ़ हो जाएगी।
आज तक दुनिया में जितनी भी महामारियां फैली है उनका परस्पर सम्बन्ध साम्राज्यवाद से रहा है। चौदहवीं शताब्दी में यूरोप में फैले प्लेग महामारी की जिसे ‘ब्लैक डेथ‘ के नाम से भी जाना जाता है। कई इतिहासकारों के अनुसार सामंतवाद से पूंजीवाद की तरफ संक्रमण में ‘ब्लैक डेथ‘ की एक बड़ी भूमिका थी। ‘ब्लैक डेथ‘ के चलते यूरोप की तकरीबन आधी जनसंख्या का सफाया हो गया था, जिससे वहां पर खेतों में काम करने वाले ‘सर्फ‘ अथवा बंधुआ मजदूरों की अत्यधिक कमी हो गई। ऐसे में यूरोप में सामंतवादी व्यवस्था का बने रहना लगभग असंभव हो गया। परिणामतः वहां पूंजीवादी उत्पादन व्यवस्था की नींव पड़ी।
चाहे वो सोलहवीं शताब्दी का अमेरिकन प्लेग हो, या सिफलिस का विश्वव्यापी प्रसार, या अठारहवीं सदी में आस्ट्रेलिया में चेचक महामारी का कहर, या फिर उन्नीसवीं शताब्दी में भारत में हैजा एवं ब्यूबोनिक प्लेग जैसी महामारियों का प्रसार, ये सभी कहीं-न-कहीं औपनिवेशिक गतिविधियों से ही जुड़े हुए थे। हम ये देख सकते हैं कि महामारियों के इतिहास एवं उपनिवेशवाद के मध्य सदैव एक अनन्य संबंध रहा है । यही कारण है कोरोना को भी साम्राज्यवाद से जोड़कर देखा जा रहा है।
अंत में यह भी बता दें कि इस लेख को लिखे जाने तक दुनिया भर में कोरोना संक्रमण के 16 लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके है और लगभग 1 लाख के करीब लोगों की मौत हो चुकी है। और यह सिलसिला फिलहाल थमता तो नहीं दिख रहा है। बहरहाल भारत सरकार ने कोरोना संक्रमण से बचने के लिए 14 अप्रैल तक पूरे देश में लॉकडाउन किया हुआ है। सरकार लॉक डाउन की अवधि बढ़ने पर भी विचार कर रही है। जब तक मैडिकल साइंस कोरोना से निपटने के लिए कोई अचूक उपाय नहीं ढूँढ लेता तब तक सोशल डिस्टैन्सिंग ही एक मात्र उपाय है ।
नोट: इस लेख में प्रस्तुत आंकड़े इंटरनेट रिसर्च पर आधारित है। लेखक द्वारा इस लेख में व्यक्त किये गए विचार उनके निजी हैं