जलवायु परिवर्तन से चने के पौधों की जड़ सड़ने जैसी मिट्टी जनित बीमारियों के होने की संभावना

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नई दिल्लीः देश के किसानों के लिए एक बेहद गंभीर और विचारणीय खबर सामने आ रही है। भारतीय वैज्ञानिकों ने इस बात का पता लगाया है कि शुष्क जड़ सड़न (DRR) रोग के लिए उच्च तापमान वाले सूखे की स्थिति और मिट्टी में नमी की कमी अनुकूल परिस्थितियां हैं। यह रोग चने की जड़ और धड़ को नुकसान पहुंचाता है। यह कार्य रोग का प्रतिरोध करने के क्षेत्र में विकास और बेहतर प्रबंधन रणनीतियों के लिए उपयोगी होगा।

शुष्क जड़ सड़न रोग के कारण पौधे की ताकत कम हो जाती है, पत्तों का हरा रंग फीका पड़ जाता है, वृद्धि धीमी कम हो जाती है और तना मर जाता है। अगर बड़े पैमाने पर जड़ को नुकसान होता है, तो पौधे की पत्तियां अचानक मुरझाने के बाद सूख जाती हैं। वैश्विक औसत तापमान में बढ़ोतरी के कारण पौधे में रोग पैदा करने वाले नए रोगाणुओं के बारे में अब तक अधिक जानकारी नहीं है। इनमें एक मैक्रोफोमिना फेजोलिना भी शामिल है। यह एक एक मिट्टी जनित नेक्रोट्रोफिक (परपोषी) है, जो चने में जड़ सड़न रोग का कारण बनता है। वर्तमान में भारत के मध्य और दक्षिण के राज्यों की पहचान DRR रोग से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र के रूप में की गई है। इन राज्यों में चने की फसल का कुल 5 से 35 फीसदी हिस्सा संक्रमित होता है।

इस रोगजनक की विनाशकारी क्षमता और निकट भविष्य में एक महामारी की संभावित स्थिति को ध्यान में रखते हुए ICRIST (इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स) की डॉ. ममता शर्मा के नेतृत्व में एक टीम ने चने में DRR के पीछे के विज्ञान को जानने की पहल शुरू की है।

इस रोग की बारीकी से निगरानी करने वाली टीम ने इस बात का पता लगाया है कि कि 30 से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच उच्च तापमान, सूखे की स्थिति और मिट्टी में 60 फीसदी से कम नमी शुष्क जड़ सड़न (DRR) के लिए अनुकूल परिस्थितियां हैं।

ICRIST के जलवायु परिवर्तन से संबंधित उत्कृष्टता केंद्र में संचालित यह कार्य भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से समर्थित और वित्त पोषित है। इसने जलवायु कारकों के साथ इस रोग के नजदीकी संबंध को प्रमाणित किया है। इसके परिणाम ‘फ्रंटियर्स इन प्लांट साइंस’ में प्रकाशित किए गए हैं।

इन वैज्ञानिकों ने इस बात की व्याख्या की है कि मैक्रोफोमिना पर्यावरण की परिस्थितियों की एक विस्तृत श्रृंखला में जीवित रहता है। यहां तक कि तापमान, मिट्टी के पीएच (पोटेंशियल ऑफ हाइड्रोजन मान) और नमी की चरम स्थिति में भी। उच्च तापमान और सूखे की स्थिति में चने की फसल में फूल और फली आने के चरणों के दौरान DRR रोग बहुत अधिक होता है। वैज्ञानिक अब रोग का प्रतिरोध करने के क्षेत्र में विकास और बेहतर प्रबंधन रणनीतियों के लिए इस अध्ययन का उपयोग करने के तरीके की तलाश कर रहे हैं।

इसके अलावा यह टीम आणविक दृष्टिकोण से पहचाने गए रोग अनुकूल परिस्थितियों को दूर करने की भी कोशिश कर रही है। जीन एक्प्रेशन अध्ययनों के एक हालिया सफलता में वैज्ञानिकों ने कुछ चने की आशाजनक जीनों की पहचान की है, जो कि काइटिनेस और एंडोकाइटिनेस जैसे एंजाइमों के लिए एन्कोडिंग हैं। यह DRR संक्रमण के खिलाफ कुछ सीमा तक सुरक्षा प्रदान कर सकता है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के सहयोग से ICRIST की टीम ने पौधों से संबंधित इस तरह के घातक रोगों से लड़ने के लिए निरंतर निगरानी, बेहतर पहचान तकनीक, पूर्वानुमान मॉडल का विकास और परीक्षण आदि सहित कई बहु-आयामी दृष्टिकोण भी अपनाए हैं।

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