सांगली: महाराष्ट्र के सांगली के भोसे गांव के लोगों ने 400 साल पुराने बरगद के पेड़ को कटने से बचा लिया। यह बरगद का पेड़ स्टेट हाईवे के बीच में आ रहा था, जिसकी बजह से उसे काटे जाने की बात चल रही थी। गांव वालों को पता चला तो वे पेड़ को घेर कर खड़े हो गए और चिपको आंदोलन शुरू कर दिया। खबर केंद्र तक पहुंची तो लोगों की भावनाओं को देखते हुए सरकार को सड़क का नक्शा बदलने का फैसला करना पड़ा।
बरगद का यह पेड़ रत्नागिरी-सोलापुर हाईवे पर येलम्मा मंदिर के पास है। पेंड़ करीब 400 वर्गमीटर में फैला है। यह बरगद का पेड़ यहां के लोगों की परंपरा से जुड़ा है। इस पर कई किस्म की चिड़ियों और जानवरों को भी देखा जाता रहा है।
स्थानीय लोगों ने ही शुरू किया विरोध
स्टेट हाईवे-166 के लिए पेड़ को काटने का काम शुरू हो गया था। सांगली के सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों ने विरोध किया। गांव वालों ने बताया कि उन्हें जुलाई की शुरुआत में पेड़ काटने की बात पता चली। कोरोना की वजह से एक साथ विरोध नहीं किया जा सकता था। फिर भी पेड़ को बचाने की कोशिश शुरू हुई। पहले 20 लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए पेड़ को घेर कर खड़े हो गए। इसके बाद इसे काफी समर्थन मिला।
जब आदित्य ठाकरे ने लिखी नितिन गडकरी को चिट्ठी इस बारे में राज्य के पर्यटन और पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे ने केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को चिट्ठी लिखी। लोगों की भावनाओं को देखते हुए गडकरी ने हाईवे के नक्शे में बदलाव करने को कहा है। अब यह हाईवे भोसे गांव की जगह आरेखन गांव से गुजरेगा। नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) ने शुक्रवार को कहा कि पेड़ का तना नहीं काटा जाएगा, लेकिन इसकी कुछ शाखाओं को छांटा जाएगा।
सबसे पहले 1970 में उत्तराखंड में हुआ था चिपको आंदोलन
चिपको आंदोलन 1970 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में शुरू हुआ था। करीब एक दशक में यह पूरे उत्तराखंड में फैल गया था।
इसकी अगुआई पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा, गोविंद सिंह रावत, चंडीप्रसाद भट्ट और गौरादेवी ने की थी। इस आंदोलन में पेड़ों को काटने से बचाने के लिए लोग उनसे चिपक जाते थे। इसलिए इसे चिपको आंदोलन नाम दिया गया। इसमें महिलाएं बड़ी संख्या में शामिल हुई थीं।