शारीरिक और आर्थिक से ज्यादा मनोवैज्ञानिक है कोरोना की मार!

अभय पाण्डेय

नई दिल्लीः कोरोना को लेकर अब समय आ गया है एक नया दृष्टि पत्र संरचित किया जाए। सबसे पहले दुनिया भर में जो देशवार आंकड़े दिए जा रहे है, उसमे कोरोना के पहले दिन के केस से लेकर आज तक के सभी आकड़े एक साथ जोड़कर सूचित करना बेमानी है और डरावना है। कहने की जरूरत नहीं कि कोरोना की मार शारीरिक और आर्थिक से ज्यादा मनोवैज्ञानिक है।

कोरोना को लेकर फील गुड न्यूज़ की ज्यादा दरकार

आज समूची दुनिया कोरोना से जिस तरह ख़ौफजदा है, उसे देखते हुये कोरोना को लेकर फील गुड न्यूज़ की ज्यादा दरकार है। कोरोना के जो मरीज ठीक हो गए है उसे घटाकर जो एक्टिव केसेस हैं, केवल उसे बताया जाना चाहिए। कोरोना को लेकर बचाव के उपाय के साथ-साथ इससे खामखाह नहीं डरने की हिदायत भी दी जानी जरूरी है।

कोरोना की केजुअल्टी दर पांच फीसदी

अब तो यह लग रहा है बचाव के बावजूद जो लोग कोरोना की जद में आ जा रहे हैं, उनमें ठीक हो जाने का आत्मविश्वास भी भरा जाना जरूरी है। वैसे भी कोरोना की केजुअल्टी दर पांच फीसदी है। कोरोना को लेकर यह तथ्य स्पष्ट है कि अनलॉक के बाद यह ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है।

सरकार निरंतर जारी रखें स्मार्ट लॉकडाउन की प्रक्रिया

अब जबकि देश की अधिकतर आबादी इस मौके पर कहाँ रहना चाहती है यह करीब-करीब तय हो चुका है और सभी लोग अपने-अपने जगहों पर सेटल हो चुके है। ऐसे में सरकारों को चाहिए कि वे समय-समय पर सेलेक्टिव और सेंसिबल तरीके से स्मार्ट लॉकडाउन (Lockdown) की प्रक्रिया को निरंतर जारी रखें।

अभी कोरोना की वजह से देश की समूची चिकित्सा व्यवस्था अस्त व्यस्त और सरकारी प्राइवेट हॉस्पिटल के होच पॉच में उलझ गयी है। यदि देश में हेल्थ रेगुलेटरी अथॉरिटी का कांसेप्ट आया होता तो अभी यह समस्या उत्पन्न होती ही नहीं। बहरहाल इस कोरोना ने समूची दुनिया को जो सीख दी है, उससे आने वाले वक्त में इस सरीखी किसी आपदा से निपटने में बहुत बड़ी मदद मिलेगी।

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आप एक युवा पत्रकार हैं। देश के कई प्रतिष्ठित समाचार चैनलों, अखबारों और पत्रिकाओं को बतौर संवाददाता अपनी सेवाएं दे चुके अभय ने वर्ष 2004 में PTN News के साथ अपने करियर की शुरुआत की थी। इनकी कई ख़बरों ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी हैं।
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