पटना: भारत में प्रदूषण अब केवल पर्यावरण की समस्या नहीं रहा, बल्कि यह एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल का रूप ले चुका है। वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण सीधे तौर पर इंसानों के फेफड़ों, हृदय, दिमाग, आंखों और त्वचा को नुकसान पहुँचा रहे हैं। विशेषज्ञ इसे “साइलेंट किलर” मान रहे हैं, क्योंकि इसके दुष्प्रभाव धीरे-धीरे सामने आते हैं, लेकिन असर बेहद घातक होता है।
हर साल जा रही लाखों जानें, सबसे बड़ा खतरा वायु प्रदूषणः- WHO
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, वायु प्रदूषण के कारण दुनिया में हर साल 70 लाख से अधिक लोगों की असमय मौत होती है। भारत उन देशों में शामिल है, जहाँ प्रदूषण से होने वाली बीमारियों का बोझ सबसे अधिक है।
PM2.5 और PM10 जैसे सूक्ष्म कण फेफड़ों के रास्ते रक्त में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे हार्ट अटैक, स्ट्रोक, अस्थमा, फेफड़ों का कैंसर और ब्रेन स्ट्रोक जैसी बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
शरीर पर प्रदूषण का सीधा हमला
लगातार प्रदूषित माहौल में रहने से लोगों में:
- खांसी और सांस फूलना
- एलर्जी और अस्थमा
- बार-बार संक्रमण
- आंखों में जलन और सिरदर्द
- थकान और नींद की कमी
- हार्ट अटैक और स्ट्रोक का बढ़ा जोखिम जैसी समस्याएं आम होती जा रही हैं।
- बच्चों में फेफड़ों की ग्रोथ प्रभावित हो रही है
- बुजुर्गों में पहले से मौजूद बीमारियां तेजी से बिगड़ रही हैं।
बिहार: प्रदूषण का हॉटस्पॉट बनता राज्य
देश के कई राज्यों की तुलना में बिहार में प्रदूषण की स्थिति ज्यादा गंभीर मानी जा रही है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और विभिन्न एजेंसियों के आंकड़े बताते हैं कि पटना, बेगूसराय, मुजफ्फरपुर, सिवान, हाजीपुर और बिहारशरीफ जैसे शहर अक्सर “बहुत खराब” और “गंभीर” AQI श्रेणी में रहते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, बिहार में प्रदूषण बढ़ने के प्रमुख कारण हैं:
- तेज़ी से बढ़ता ट्रैफिक
- निर्माण कार्यों से उड़ती धूल
- पुराने वाहन और डीज़ल उत्सर्जन
- ठंड के मौसम में हवा का ठहराव
इन सबका सीधा असर आम लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।
डॉक्टर की चेतावनी: हर दिन हजारों मरीज प्रदूषण से प्रभावित
पटना के वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. दिवाकर तेजस्वी प्रदूषण के स्तर और इससे उत्पन्न खतरों की स्थिति को लेकर गंभीर चेतावनी देते हैं।
मेरे अनुभव में, पटना जैसे प्रदूषित शहर में हर दिन बड़ी संख्या में-अनुमानतः हजारों मरीज-प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रदूषण से जुड़ी समस्याओं के साथ चिकित्सकों तक पहुँच रहे हैं। इनमें सांस, हृदय और एलर्जी से जुड़े रोग सबसे ज्यादा हैं। यह स्थिति एक गंभीर चेतावनी है, जिसे नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है। – डॉ. दिवाकर तेजस्वी, वरिष्ठ फिजिशियन, पटना
डॉ. दिवाकर के अनुसार, अब प्रदूषण केवल बुजुर्गों या पहले से बीमार लोगों की समस्या नहीं रह गई है, बल्कि युवा और बच्चे भी बड़ी संख्या में इसकी चपेट में आ रहे हैं।
जीवन प्रत्याशा पर प्रदूषण का असर
अध्ययनों के अनुसार, लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने से औसतन 6 से 8 साल तक जीवन प्रत्याशा घट सकती है। बिहार जैसे राज्यों में यह असर और भी गहरा माना जा रहा है, क्योंकि यहां प्रदूषण के साथ-साथ स्वास्थ्य सुविधाओं पर भी अतिरिक्त दबाव है।
विशेषज्ञ और डॉक्टर प्रदूषण से बचाव के लिए कुछ जरूरी उपायों पर जोर देते हैं:
- बचाव ही सबसे बड़ा इलाज
- जहां तक संभव हो मास्क का उपयोग
- सुबह-शाम अधिक प्रदूषण के समय बाहर निकलने से बचें
- घरों में उचित वेंटिलेशन रखें
- धूम्रपान से दूरी बनाएं
- पौधे लगाएं और हरियाली बढ़ाएं
- नियमित स्वास्थ्य जांच कराएं
कुल मिलाक भारत में प्रदूषण इन दिनों एक धीमा लेकिन घातक ज़हर बन चुका है। बिहार जैसे राज्यों में हालात बेहद गंभीर हैं, जहां हर दिन अस्पतालों में इसकी गवाही देने वाले मरीज पहुंच रहे हैं।
डॉ. दिवाकर तेजस्वी की चेतावनी
डॉ. दिवाकर तेजस्वी की चेतावनी साफ है-अगर अब भी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में यह संकट और भयावह रूप ले सकता है। व्यक्तिगत सावधानी, सामाजिक जागरूकता और सरकारी सख्ती, तीनों मिलकर ही इस साइलेंट किलर से लड़ सकते हैं।