पटना: कामकाजी पुरुष महिला हो या फिर नॉर्मल जीवन जीने वाला इंसान, अगर वह कुर्सी या किसी अन्य जगह पर सही पौश्चर में नहीं बैठता है तो उसे हड्डियों की बीमारी होने का खतरा बना रह सकता है। अगर बैठने का तरीका सही हो तो काफी हद तक हड्डियों की बीमारी से बचा जा सकता है। यह कहना है अनुप इन्स्टिट्यूट ऑफ आर्थोपेडिक्स ऐंड रिहैबिलिटेशन (AIOR) के डायरेक्टर और मशहूर ऑर्थोपेडिक डॉक्टर आशीष कुमार सिंह का।
हड्डियों से जुड़ी बीमारी के इलाज में अपनी अलग पहचान बना चुके डॉ आशीष कुमार सिंह ने एक बातचित के क्रम में हड्डियों से जुड़ी कई अहम बातें बताई। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि ऑफिस में या फिर अन्य जगहों पर अगर कोई सही पौश्चर में नहीं बैठता है तो उसका हड्डियों पर बहुत असर पड़ता है। उन्हों ने कहा कि सबसे खास बात यह है कि हम कुर्सी पर सीधे नहीं बैठते हैं, आगे की तरफ झुके रहते हैं, जिसका हमारी हड्डियों पर बड़ा कुप्रभाव होता है।
डॉ आशीष ने कहा कि आज की तारीख में कंप्यूटर का इस्तेमाल आम हो गया है। कंप्यूटर का इस्तेमाल करते समय हम अक्सर सही पोश्चर का ख़याल नहीं रख पाते। कंप्यूटर का स्क्रिन लेवल हमारी आंखों के लेवल में नहीं होता। कंप्ऐंयूटर और आँखों के बीच का ऐंगल सही नहीं रहने और ज्यादा देर तक काम करने से गर्दन की हड्डी पर फर्क पड़ता है। इससे रक्त अभाव का प्रॉब्लम हो सकता है इससे हड्डियों पर असर पड़ता है।
महिलाओं की हड्डियों में कमजोरी पुरुषों की तुलना में ज्यादा
उन्होंने बताया कि महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस यानी हड्डियों में कमजोरी पुरुषों की तुलना में ज्यादा होती है। अगर एक पुरुष को ओस्टियोपोरोसिस की दिक्कत है, तो इसकी तुलना में कम से कम 4 महिलाओं में इसकी परेशानी होती है। मेंस खत्म होने के बाद यह दिक्कत ज्यादा हो जाती है। महिलाओं की हड्डी ज्यादा जल्दी कमजोर हो जाती है। इसके अलावा महिलाएं उतना फिट नहीं रहती है, जितना पुरुष रहते हैं।
अगर कोई पुरुष बाइक चलाता है, तो महिला अक्सर पीछे बैठती है। बाइक चलाते वक्त कभी न कभी तो पैर नीचे रखना पड़ता है। उस वक्त बाइक और महिला का भार पैर पर पड़ता है लेकिन महिलाएं तो आराम से पीछे बैठी रहती हैं। यानी हैवी एक्टिविटी नहीं होती है। यह भी एक कारण है। अगर ओस्टियोपोरोसिस को फोकस किया जाए, वह ज्यादा होता है। क्योंकि हड्डी कमजोर होता है। यह जेनेटिक भी होता है।
रोबोटिक सर्जरी से रहती 99.99% सही रिजल्ट की उम्मीद
वहीं उन्होंने रोबोटिक सर्जरी के महत्व से भी अवगत कराया और बताया कि जब भी हम किसी से मिले और जोड़ खराब हो गया है तो उसे हम बदल देते हैं। बदल देने के बाद जब जोड़ का सतह है वह आर्थराइटिस से खराब हो गया है। वास्तव में अगर रोबोटिक से करें या हाथ से करें। रोबोट से करने में सटीकता रहती है। गलती होने की संभावना नहीं रहती है। रोबोट की कीमत 14 करोड़ रुपए है। पूरी दुनिया में हर सेंटर में रोबोटिक ही काम हो रहा है। रोबोट से 99.99% सटीकता रहती है।
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अर्थराइटिस से बचने के लिए क्या करना चाहिए ये भी डॉक्टर आशीष सिंह ने विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि आर्थराइटिस आजकल कम उम्र के लोगों में हो रहा है। इसका एक ही कारण है बदलती जीवन शैली। अगर हम अपने जीवन शैली को बदलें धूप का सेवन करें। साइकिल का इस्तेमाल करें तो हम फिट रह सकते हैं। भोजन में बैलेंस डायट का उपयोग होना चाहिए। धूप और दूध का सेवन होना चाहिए। प्रोटीन बैलेंस होना चाहिए। जंक फूड का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।