पटरी पर नहीं बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था, सामान्य मरीज चिकित्सकीय लाभ से दूर

अजय वर्मा

पटनाः लॉकडाउन के तीसरे चरण में भी स्थितियों में सुधार नहीं दिख रही। संक्रमण की गति तेज ही होती जा रही है। प्रदेश में न तो चिकित्सा की पर्याप्त सुविधाएं हैं और न ही जांच के पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं, फिर भी बिहार कोरोना से लड़ रहा है। पर कोरोना के अलावें भी बीमारियां हैं, जिनका समय रहते उपचार जरूरी है। केवल एक वायरस संक्रमण के नाम पर उनसे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता।

उम्र, जीवन शैली और मौसम परिवर्तन से पनपने वाली बीमारियों की लंबी फेहरिश्त है। इनमें मधुमेह, हर्ट संबंधी बिमारी, दमा, कैंसर जैसे कई रोग तो ऐसे हैं जिनमें डॉक्टर के निरंतर देखरेख की जरूरत होती है। इसके अलावा चोट-चपाट, प्रसव आदि भी है। लॉकडाउन एवं सोशल डिस्टेंसिंग के चलते सभी निजी क्लिनिक और सरकारी अस्पतालों के ओपीडी बंद कर दिये गये थे।

20 अप्रैल से स्वास्थ्य सेवाओं में मिली थी छूट

संभवत: इन्हीं कारणों से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ओपीडी तथा क्लिीनिकों-नर्सिंग होम को 20 अप्रैल से काम चालू करने की छूट दी थी। बीमारों में उम्मीद जगी कि कोराना के अलावा अन्य रोगों के इलाज का अब मौका मिलेगा। लेकिन धरातल पर आ रही खबरों को देखेंगे तो साफ होगा कि ऐसा कुछ हो नहीं रहा है।

लॉकडाउन में मिली छूट का कोई लाभ नहीं

दरभंगा में मेडिकल कॉलेज और अस्पताल है। इसके अलावा निजी नर्सिंग होम का नेटवर्क भी है, जहां आम दिनों में दूर-दूर से मरीज आते रहे हैं। लेकिन वहां के जानकार से जब बात हुई तो पता चला कि ओपीडी तो खुला लेकिन आसपास के लोग ही जरूरी महसूस होने पर आ रहे हैं। निजी क्लिीनिक और निजी र्प्रैक्टिस बंद ही हैं। पटना का भी इससे अच्छा सीन नहीं है। इसी तरह, मुजफ्फरपुर का मेडिकल हब जूरन छपरा सन्नाटे में है। राज्य के तमाम शहरों में कमोबेश ऐसी ही स्थिति है। नतीजा-सरकारी छूट का कोई लाभ नहीं।

वजह भी वाजिब है

हेल्थ सेक्टर से जुड़े लोगों का कहना है कि चिकित्सा सेवा एक टीम वर्क है। केवल खोल देने और डॉक्टर के बैठने से बात नहीं बनने वाली। डॉक्टर के साथ कंपाउंडर, महिला मरीजों के लिए नर्स, क्लिनिक की सफाई के लिए कर्मी, सबका आना जरूरी होता है। रोग का पता करने के लिए तरह-तरह के जांच कराये जाते हैं। एक्सरे, सोनोग्राफी, अल्ट्रासाउंड, खुन, पेशाब और भी बहुत कुछ। यानी सबकी दुकान खुलनी चाहिए।

जिले से बाहर के मरीज को लाने में मुश्किल। शहर के मरीज भी निकले तो कब पुलिस की चपेट में आ जायें, ठीक नहीं। हर मरीज या उसके अभिभावक एसडीओ से लेकर बीडीओ तक पास बनवाने के लिए दौड़ नहीं सकते। बहुतों के पास अपना वाहन भी नही है।

फिर लॉकडाउन में इस छूट की सार्थकता क्या ?

ऐसी हालत में राज्य सरकार से मिली छूट की सार्थकता ही क्या? हां, कुछ शहरों से जानकारी मिल रही है कि डॉक्टर अगर परिचित हैं तो उनसे फोन पर या उनके आवास तक जाकर परामर्श लिया जा  रहा है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल रह ही जाता है कि क्या यह हर जरूरतमंद के लिए संभव है?

राज्य सरकार ने मिसकॉल पर डॉक्टरी सलाह की व्यवस्था की घोषणा की थी। इसके लिए नंबर भी जारी हुआ था-8010111213। लेकिन प्रगति क्या हुई, कहना कठिन है।

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समाचार संपादक
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