बिहार में बड़ा खेल: क्या 2026 में भाजपा रच रही है सियासत की नई पटकथा?

अभय पाण्डेय

पटनाः राजनीति संभावनाओं का खेल है। यहाँ कब क्या हो जाए, कौन फर्स से अर्स पर पहुंच जाए और कौन अर्स से फर्स पर आ जाए—इसका अंदाज़ा लगाना आसान नहीं। बिहार की राजनीति में इन दिनों कुछ ऐसी ही संभावनाएँ तैर रही हैं, जो नए साल 2026 की शुरुआत में बड़े सत्ता परिवर्तन की ओर इशारा कर रही हैं।

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चर्चा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनवरी 2026 में अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं और उनकी जगह मौजूदा स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय को बिहार का नया मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। वहीं, नीतीश कुमार के पुत्र निशांत कुमार को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने की अटकलें भी राजनीतिक गलियारों में तेज़ी से घूम रही हैं।

नीतीश के दिल्ली दौरे के बाद तेज हुई चर्चाएँ

नीतीश कुमार की हालिया दिल्ली यात्रा—जहाँ उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की-के बाद सत्ता परिवर्तन की चर्चाओं ने और ज़ोर पकड़ लिया।

हालाँकि इस मुलाकात के एजेंडे को लेकर कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया, लेकिन NDA के भीतर नेतृत्व परिवर्तन और भविष्य की रूपरेखा पर मंथन की अटकलें तेज हैं।

चुनाव से पहले का दावा, चुनाव के बाद की गूंज

यह उल्लेखनीय है कि चुनाव से पहले और बाद में भी यह चर्चा चलती रही है कि नई NDA सरकार में नीतीश कुमार लंबे समय तक मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे। जनसुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने कई मंचों से दावा किया था कि NDA की सरकार बनने के बावजूद नीतीश कुमार छह महीने से अधिक मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे। भले ही जनसुराज को चुनाव में अपेक्षित सफलता नहीं मिली, लेकिन यह भविष्यवाणी अब फिर राजनीतिक विमर्श में लौट आई है।

नीतीश के बाद कौन बन सकता है सीएम?

अगर NDA नेतृत्व परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ती है तो मंगल पाण्डेय का नाम कई मायनों में मुफ़ीद माना जा रहा है।

वे भाजपा के पुराने और भरोसेमंद नेता हैं, संगठन और सरकार—दोनों का अनुभव रखते हैं। स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर उनका प्रशासनिक ट्रैक रिकॉर्ड भी पार्टी के पक्ष में जाता है। सबसे अहम बात यह है कि मंगल पाण्डेय ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। बिहार की राजनीति में यह वर्ग लंबे समय से सत्ता के शीर्ष पद से दूर रहा है। ऐसे में अगर वे मुख्यमंत्री बनते हैं तो यह भाजपा के लिए नया राजनीतिक संदेश होगा।

ब्राह्मण मुख्यमंत्री: भाजपा को फायदा या नुकसान?

फैसला कोई भी हो फायदा और नुकसान की संभावनााएं बनी रहती हैं। यहां भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। ब्राम्हण जाति से आने वाले मंगल पाण्डेय को मुख्यमंत्री बनाने से भाजपा को कई मायनों में फायदा भी हो सकता है तो कई मायनों में नुकसान भी।

🔹संभावित फायदे

  • ऊपरी जातियों, खासकर ब्राह्मणों में सीधा राजनीतिक संदेश
  • कांग्रेस की उस परंपरा को चुनौती, जिसमें उसने बिहार में कई ब्राह्मण मुख्यमंत्री दिए
  • भाजपा के “सामाजिक संतुलन” के नैरेटिव को मजबूती

🔹संभावित नुकसान

  • OBC–EBC वर्ग में असंतोष की आशंका
  • जदयू के भीतर सत्ता संतुलन को लेकर बेचैनी
  • नीतीश कुमार के सामाजिक न्याय वाले राजनीतिक एजेंडे से दूरी का आरोप

बिहार की राजनीति में भाजपा का जातीय प्रयोग

बिहार की राजनीति को अक्सर जाति आधारित कहा जाता है और मौजूदा घटनाक्रम को उसी नज़र से देखा जा रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मंगल पाण्डेय को मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चा और नितिन नबीन को अचानक प्रदेश की राजनीति से उठाकर राष्ट्रीय फलक पर बैठाया जाना—दोनों को अलग-अलग घटनाएँ नहीं माना जाना चाहिए।

बिहार में कायस्थ आबादी ब्राम्हणों से भी कम, लेकिन BJP में  मिला सबसे बड़ा स्थान

हाल ही में जारी बिहार की जाति आधारित जनगणना (Bihar Caste Census 2023) के अनुसार, जहां कायस्थों की आबादी बिहार की कुल जनसंख्या का लगभग 0.60 प्रतिशत है, वहीं ब्राह्मणों की हिस्सेदारी करीब 3.65–3.66 प्रतिशत बताई गई है। दोनों ही समुदाय संख्या के लिहाज़ से अपेक्षाकृत छोटे हैं, लेकिन कायस्थों की आबादी ब्राह्मणों के मुकाबले कहीं कम है। इसके बावजूद भाजपा द्वारा नितिन नबीन को राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दिया जाना केवल व्यक्तिगत उभार नहीं, बल्कि जाति आधारित राजनीति में एक स्पष्ट और बड़ा राजनीतिक संदेश माना जा रहा है।

जिस तरह BJP द्वारा नितिन नबीन को राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय भूमिका देकर कायस्थ समुदाय को साधने का प्रयोग किया गया, उसी तरह मंगल पाण्डेय को आगे बढ़ाकर भाजपा ब्राह्मण वोट बैंक को स्पष्ट संदेश दे सकती है।

यह संकेत देता है कि भाजपा बिहार में नेतृत्व परिवर्तन को केवल प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि सोची-समझी जातीय और राजनीतिक इंजीनियरिंग के रूप में देख रही है।

कायस्थ समुदाय संख्या में सीमित होने के बावजूद प्रशासन, शहरी वर्ग और बौद्धिक हलकों में प्रभावशाली माना जाता है, वहीं ब्राह्मण नेतृत्व का चेहरा सामने लाकर भाजपा सवर्ण राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है।

बिहार में महाराष्ट्र मॉडल की परछाईं?

पिछले कुछ वर्षों में NDA शासित राज्यों में एक पैटर्न देखने को मिला है। चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने कई राज्यों में अपने मुख्यमंत्री बनाए, जैसा कि महाराष्ट्र सहित अन्य प्रदेशों में हुआ। ऐसे में सवाल उठता है— क्या बिहार में भी जदयू की भूमिका सीमित कर भाजपा सीधे सत्ता के केंद्र में आना चाहती है?

🔹संभावित पावर-स्ट्रक्चर कुछ इस तरह उभरता है—

  • मुख्यमंत्री: मंगल पाण्डेय
  • उपमुख्यमंत्री: निशांत कुमार
  • राष्ट्रीय स्तर पर भूमिका: नितिन नबीन

सीएम बदले जाने के कयासों पर उठते सवाल

क्या यह सब महज़ राजनीतिक अटकलें हैं या बिहार की राजनीति में सचमुच नई स्क्रिप्ट लिखी जा रही है? क्या नीतीश कुमार “मार्गदर्शक” की भूमिका में जाएंगे? और क्या भाजपा बिहार में वही प्रयोग दोहराएगी, जो वह अन्य राज्यों में कर चुकी है? फिलहाल जवाब भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इतना तय है कि बिहार की राजनीति एक बार फिर निर्णायक मोड़ की ओर बढ़ती दिख रही है।

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आप एक युवा पत्रकार हैं। देश के कई प्रतिष्ठित समाचार चैनलों, अखबारों और पत्रिकाओं को बतौर संवाददाता अपनी सेवाएं दे चुके अभय ने वर्ष 2004 में PTN News के साथ अपने करियर की शुरुआत की थी। इनकी कई ख़बरों ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी हैं।
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