पटनाः बिहार में पहली नज़र में कुछ भी बदला हुआ नहीं लगता। सरकार वही है, गठबंधन वही है, चेहरे भी लगभग वही हैं। लेकिन सत्ता के गलियारों और प्रशासनिक तंत्र में जो हलचल दिख रही है, वह यह इशारा जरूर कर रही है कि इस बार तेवर बदले हुए हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जहां 2005 की तरह फुल क्टिव दिख रहे हैं, वहीं भाजपा कोटे के दोनों उपमुख्यमंत्री—सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा भी अपने-अपने विभागों में सख्ती के साथ सक्रिय दिखाई दे रहे हैं।
सिर्फ बयान नहीं, सीधा हाथ सिस्टम पर
प्रदेश के नवनियुक्त गृह मंत्री सम्राट चौधरी और भूमि एवं राजस्व मंत्री विजय सिन्हा की कार्यशैली यह संकेत दे रही है कि इस बार सिर्फ बयान नहीं, बल्कि सिस्टम पर सीधा हाथ डालने की कोशिश हो रही है। यही वजह है कि वर्षों से अफसरों की मनमानी से त्रस्त रही बिहार की आवाम के बीच यह सवाल जोर पकड़ रहा है-क्या अब सच में अफसर बेलगाम नहीं रहेंगे, क्या अफसरशाही खत्म होगी?
गृह विभाग: पुलिस को ‘ताकत’ नहीं, ‘जवाबदेही’ का संदेश
गृह मंत्री के तौर पर सम्राट चौधरी ने पद संभालते ही पुलिस प्रशासन को स्पष्ट संदेश दिया कि कानून का राज सिर्फ कागज़ों में नहीं, ज़मीन पर दिखना चाहिए। लापरवाह और विवादित पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई, थानों की मॉनिटरिंग और अपराध नियंत्रण को लेकर लगातार हो रही समीक्षा बैठकों ने सिस्टम को सतर्क कर दिया है।
सूत्रों के मुताबिक, कई जिलों में पुलिस अधिकारियों को यह साफ कर दिया गया है कि अब राजनीतिक संरक्षण की उम्मीद में मनमानी नहीं चलेगी। वर्दी के साथ संवेदनशीलता और ईमानदारी अनिवार्य होगी। यही कारण है कि पुलिस महकमे में लंबे समय बाद अनुशासन और दबाव दोनों महसूस किए जा रहे हैं।
भूमि एवं राजस्व विभाग: सख्ती, फटकार और अफसरों की तिलमिलाहट
भूमि एवं राजस्व विभाग, जिसे बिहार का सबसे बदनाम और शिकायतग्रस्त विभाग माना जाता रहा है, वहां विजय सिन्हा के तेवर सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। बीते दिनों विभागीय समीक्षा बैठकों और सार्वजनिक कार्यक्रमों में मंत्री द्वारा अधिकारियों को दी गई सख्त फटकार ने सिस्टम में असहजता पैदा कर दी है।
खासकर दाखिल-खारिज, भूमि मापी और लंबित मामलों को लेकर विजय सिन्हा ने खुले मंच से अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठाए और समयबद्ध निस्तारण के निर्देश दिए। विभागीय सूत्रों के अनुसार, मंत्री की तल्ख टिप्पणी और स्पष्ट चेतावनी के बाद कई जिलों में अफसरों के बीच बेचैनी और तिलमिलाहट साफ देखी जा रही है।
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डिजिटलीकरण और मॉनिटरिंग को लेकर बढ़े दबाव का असर यह है कि जिन फाइलों पर महीनों धूल जमती थी, उन पर अब तेजी दिखने लगी है। हालांकि, अफसरशाही के भीतर यह भी चर्चा है कि इतनी सार्वजनिक फटकार से उनका मनोबल प्रभावित हो रहा है—लेकिन सत्ता का संदेश साफ है: काम नहीं तो कार्रवाई तय है।
अफसरशाही में खलबली, राजनीति में संदेश
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह सख्ती सिर्फ प्रशासनिक सुधार नहीं, बल्कि एक बड़ा सियासी संदेश भी है। भाजपा यह जताना चाहती है कि वह नीतीश कुमार के “सुशासन” के मॉडल को अब कठोर फैसलों और प्रत्यक्ष जवाबदेही के जरिए आगे ले जाना चाहती है।
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अफसरशाही, जो लंबे समय से राजनीतिक संतुलन और ढीले नियंत्रण की आदी रही है, अचानक बदले इस मिज़ाज से असहज दिख रही है। सवाल यही है कि क्या यह दबाव स्थायी रहेगा या समय के साथ सिस्टम फिर पुराने ढर्रे पर लौट आएगा।
तेवर बदले हैं, तंत्र नहीं—फैसला जनता करेगी
बिहार में फिलहाल कानून, जमीन और अफसरशाही—तीनों के गलियारों में खलबली है। सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा के तेवर यह संकेत दे रहे हैं कि सत्ता अब सिर्फ कुर्सी संभालने नहीं, सिस्टम पर हाथ डालने के मूड में है। सवाल यह नहीं है कि फटकार कितनी तीखी है, सवाल यह है कि कार्रवाई कितनी निरंतर और निष्पक्ष होगी।
बिहार की राजनीति ने पहले भी “सुशासन”, “जीरो टॉलरेंस” और “सिस्टम सुधार” जैसे दावे देखे हैं, जो वक्त के साथ फाइलों और भाषणों तक सीमट गए। अगर इस बार भी सख्ती सिर्फ चेतावनी और कैमरों तक सीमित रही, तो अफसरशाही कुछ समय दबाव में रहेगी और फिर वही पुरानी रफ्तार लौट आएगी।
बिहार में रामराज्य आता है या रामभरोसे चलता है?
लेकिन अगर सत्ता सचमुच अफसरों को यह एहसास करा पाई कि अब संरक्षण नहीं, बल्कि जवाबदेही ही ढाल है—तो यह बदलाव ऐतिहासिक होगा। वरना बिहार की जनता तो पहले से तैयार है यह कहने के लिए कि तेवर बदल गए, तंत्र नहीं बदला। और आखिर में यही सवाल सबसे बड़ा है—देखते हैं बिहार में रामराज्य आता है या रामभरोसे चलता है।