पटनाः बिहार की राजनीति में इस बार सत्ता समीकरण कुछ ऐसे बदले हैं, जिन्होंने सभी को चौंकाया है। राज्य में 53 वर्षों के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे नेता के पास गृह विभाग की जिम्मेदारी नहीं है। 2005 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही नीतीश कुमार ने गृह विभाग को हमेशा अपने पास ही रखा। लेकिन नई NDA सरकार के गठन के साथ ही इस परंपरा में बड़ा बदलाव किया गया है। गृह विभाग की कमान भाजपा कोटे से डिप्टी सीएम बने सम्राट चौधरी को सौंप दी गई है।
राजनीतिक गलियारों में इसे लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं। कई लोग इसे नीतीश कुमार के ‘पावर कम होने’ से जोड़ कर देख रहे हैं, लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल उलट है। गृह विभाग के हस्तांतरण के बावजूद नीतीश कुमार का वास्तविक नियंत्रण कमजोर नहीं हुआ बल्कि पहले की तरह मज़बूत बना हुआ है।
गृह विभाग गया, लेकिन प्रशासनिक शक्ति अब भी नीतीश के पास
यह समझने के लिए बिहार की प्रशासनिक संरचना पर एक नज़र डालनी होगी। नीतीश कुमार ने भले ही गृह विभाग सम्राट चौधरी को दे दिया हो, लेकिन सामान्य प्रशासन विभाग (General Administration Department – GAD) अब भी उनके पास है।
समान्य प्रशासन विभाग,जिसपर नीतीश का है नियंत्रण
- BDO (प्रखंड विकास पदाधिकारी)
- CO (अंचलाधिकारी)
- DSP को छोड़कर पूरा सिविल प्रशासन
- जिलाधिकारी (DM)
- सभी IAS, IPS अधिकारियों की पोस्टिंग, प्रोमोशन, ट्रांसफर जैसे अहम फैसलों को नियंत्रित करता है।
पुलिस विभाग छोड़ पूरा प्रशासनिक ढांचा GAD के अधीन
सिर्फ पुलिस विभाग को छोड़ दें तो पूरा प्रशासनिक ढांचा सामान्य प्रशासन के अधीन आता है। यही विभाग यह तय करता है कि जिला किसके हाथ में जाएगा, किस अधिकारी को कहां भेजा जाएगा, कौन-सा अफसर कब हटाया जाएगा-और यही असली शक्ति है।
GDP भी तकनीकी रूप से GAD की चौखट से होकर गुजरते हैं
गृह विभाग पुलिस प्रशासन को देखता है, लेकिन DGP- जो पूरे राज्य की पुलिस का मुखिया होता है- तक को पोस्टिंग, कार्यकाल, ट्रांसफर सहित कई मामलों में सामान्य प्रशासन विभाग की सहमति आवश्यक होती है। इसका मतलब यह है कि पुलिस विभाग भले ही सम्राट चौधरी के नियंत्रण में हो, पर पुलिस विभाग के शीर्ष पदों की नियुक्ति और उनकी प्रशासनिक संरचना फिर भी नीतीश कुमार के अधीन रहती है।
राजनीतिक संदेश क्या है?
इस फैसले से तीन बड़े राजनीतिक संकेत निकलते हैं-
- NDA के भीतर शक्ति-संतुलन का संदेश
नीतीश कुमार ने BJP को बड़ा मंत्रालय दिया, ताकि गठबंधन में सम्राट चौधरी की भूमिका महत्वपूर्ण दिख सके।
- परंपरागत छवि बदलने की कोशिश
नीतीश पर यह आरोप लगता रहा कि वे शक्ति अपने पास केंद्रीकृत रखते हैं। गृह विभाग देने से वे लचीले दिखना चाहते हैं।
- लेकिन नियंत्रण नहीं छोड़ा
असल प्रशासनिक नियंत्रण GAD के माध्यम से अब भी उनके पास है। यह ऐसा ही है जैसे- चाबी किसी और को पकड़ाई गई हो, लेकिन ताला अब भी मालिक ही खोलता हो।
सम्राट चौधरी के लिए यह अवसर है या चुनौती?
गृह विभाग संभालना सम्राट चौधरी के लिए एक बड़ा अवसर है क्योंकि, यह उन्हें राज्य की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था पर सीधा अधिकार देता है। BJP के भीतर उनका कद और मजबूत होगा। लेकिन चुनौती भी उतनी ही बड़ी है। हर बड़े निर्णय के लिए GAD का हस्तक्षेप अनिवार्य रहेगा। प्रशासनिक नियुक्तियों व अधिकारियों के प्रबंधन में अंतिम निर्णय नीतीश कुमार ही लेंगे। कानून-व्यवस्था की छोटी सी चूक भी सीधे सम्राट चौधरी की छवि पर असर डालेगी।
सम्राट को विभाग मिला है, शक्ति नहीं
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि बिहार में शक्ति का हस्तांतरण नहीं, सिर्फ विभाग का परिवर्तन हुआ है।नई व्यवस्था को समझने के बाद साफ हो जाता है कि गृह विभाग का हस्तांतरण राजनीतिक रूप से बड़ा, लेकिन प्रशासनिक रूप से सीमित प्रभाव वाला कदम है। सम्राट चौधरी को नाम का ‘गृह विभाग’ जरूर मिला है,पर प्रशासनिक व्यवस्था की असली चाबी-सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) आज भी नीतीश कुमार के पास ही है। इसलिए यह कहना अधिक सही होगा कि “सम्राट को विभाग मिला है, शक्ति नीतीश के पास ही है।”

