पटनाः जहां एक ओर 25 दिसंबर को पूरी दुनिया प्रेम, करुणा और समर्पण के मसीहा ईसा मसीह को याद कर रही थी, वहीं राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के वरिष्ठ नेता और बिहार सरकार के पूर्व मंत्री चंद्रशेखर ने इसी दिन अपने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए एक बार फिर सियासी विवाद खड़ा कर दिया। विपक्ष का आरोप है कि चंद्रशेखर सिंह ने गलत तथ्यों और भड़काऊ भाषा के सहारे समाज को बांटने की कोशिश की है। मनुस्मृति दहन से जुड़े उनके पोस्ट ने न सिर्फ राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी, बल्कि बिहार की राजनीति में एक नई वैचारिक टकराव की जमीन भी तैयार कर दी है।
उन्होंने मनुस्मृति को “इंसानों को छूत और अछूत में बाँटने वाला ग्रंथ” बताते हुए संविधान और डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों को अपनाने का आह्वान किया है।
मनुस्मृति पर चंद्रशेखर के विवादित पोस्ट में क्या है
चंद्रशेखर सिंह ने अपने पोस्ट में लिखा,” इंसानों को छूत और अछूत में बाँट कर मानवता को शर्मसार करने वाला ग्रंथ है मनुस्मृति। भगवान और धर्म के नाम पर धंधा करने वाले व नफ़रत परोसने वाले गठबंधन हो या कथावाचक उन्हें खतरा है इंसानियत और मानवता की मिसाल संविधान और उसके जनक डॉ॰ बाबा साहब अंबेडकर से या करुणा और दया के वाहक भगवान बुद्ध और उनके विचारों से या पाखंडवाद पर प्रहार करने वाले महान संत रैदास और कबीर से। इसलिए इंसानियत और ईमान की स्थापना के लिए मनुस्मृति के दहन और संविधान को अंगीकार करने का संकल्प लें।”
पोस्ट के साथ साझा की गई तस्वीर
पोस्ट के साथ साझा की गई तस्वीर में मनुस्मृति की पुस्तक को जलते हुए दिखाया गया है, पृष्ठभूमि में डॉ. अंबेडकर की आकृति और नारेनुमा संदेश के साथ मनुस्मृति दहन दिवस का उल्लेख है। तस्वीर और भाषा—दोनों ने सियासी हलकों में तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया है।
सियासी हमले तेज, NDA ने बताया ‘आस्था पर चोट’
चंद्रशेखर सिंह के इस बयान पर NDA और भाजपा नेताओं ने कड़ा एतराज़ जताया है। विपक्ष का आरोप है कि RJD नेता धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं और समाज को बांटने वाली राजनीति कर रहे हैं। भाजपा नेताओं ने इसे “आस्था पर हमला” बताते हुए सार्वजनिक माफी की मांग तक की है।
वहीं, RJD और महागठबंधन के कुछ नेताओं का कहना है कि यह बयान संविधानिक मूल्यों, सामाजिक न्याय और समानता के समर्थन में है, न कि किसी धर्म के खिलाफ। उनका तर्क है कि मनुस्मृति पर ऐतिहासिक तौर पर कई समाज सुधारकों ने आलोचना की है और यह बहस विचारों की है, न कि आस्था की।
पहले भी विवादों में रहे हैं चंद्रशेखर सिंह
यह पहला मौका नहीं है जब चंद्रशेखर सिंह के बयान ने बिहार की राजनीति में हलचल मचाई हो। इससे पहले भी वे रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों को लेकर दिए गए बयान पर, शिक्षा और सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दों पर तीखे वक्तव्यों के कारण और धार्मिक ग्रंथों की आलोचनात्मक व्याख्या को लेकर विवादों में रहे हैं। हर बार विपक्ष ने उन पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाया, जबकि समर्थकों ने उन्हें सामाजिक सुधार और संविधानिक सोच का पक्षधर बताया।
सियासी असर और आगे की राह
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद 2025 के सियासी माहौल में सामाजिक न्याय बनाम धार्मिक आस्था की बहस को और तेज करेगा। RJD अपने पारंपरिक वोटबेस के बीच संविधान और अंबेडकरवादी विचारधारा को मजबूती से रखने की रणनीति पर है, जबकि NDA इसे धार्मिक ध्रुवीकरण के मुद्दे के रूप में भुनाने की कोशिश कर सकता है।
फिलहाल, चंद्रशेखर सिंह के इस ताज़ा पोस्ट ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि बिहार की राजनीति में विचारधारा, धर्म और संविधान—तीनों के टकराव की बहस अभी थमी नहीं है।