पटनाः बिहार में प्रचंड बहुमत के साथ NDA सरकार की वापसी के बाद अगर किसी एक विभाग ने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी हैं, तो वह है गृह विभाग। करीब 53 साल बाद ऐसा हुआ है जब गृह विभाग की कमान मुख्यमंत्री की जगह किसी और को सौंपी गई है। यह जिम्मेदारी संभाल रहे हैं उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी। गृह मंत्री बनते ही सम्राट चौधरी ने अतिक्रमण के खिलाफ सख्त रुख अपनाया और बुलडोज़र एक्शन को अपनी पहचान बना लिया।
पटना से लेकर प्रदेश के लगभग हर छोटे-बड़े शहर में बुलडोज़र की गूंज सुनाई दे रही है। फुटपाथ की दुकानों, ठेलों और अस्थायी ढांचों पर कार्रवाई को सरकार कानून का राज और सुशासन का प्रमाण बता रही है। लेकिन इसी अभियान के बीच एक बड़ा और असहज सवाल खड़ा हो गया है-क्या कानून की धार सिर्फ कमजोर अतिक्रमणकारियों तक ही सीमित है?
अपार्टमेंट और शॉपिंग मॉल: सबसे बड़े उल्लंघन, लेकिन सबसे ज्यादा संरक्षण?
अगर बिहार के शहरी इलाकों पर नजर डालें तो तस्वीर बिल्कुल उलट दिखती है। पटना, गया, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, दरभंगा जैसे शहरों में सैकड़ों आलिशान अपार्टमेंट, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और मॉल ऐसे हैं, जो- बिल्डिंग बायलॉज, सेटबैक और सड़क चौड़ाई नियम, फायर सेफ्टी मानक, पार्किंग व्यवस्था और रेरा (RERA) ऐक्ट की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि करोड़ों की इन इमारतों पर अब तक सरकार के बुलडोज़र की नजर नहीं पड़ी।
क्या कहते हैं बिहार बिल्डिंग बायलॉज और RERA ?
बिहार अपार्टमेंट एवं भवन निर्माण उपविधियों और रेरा ऐक्ट के मुताबिक-
🔹 सड़क और सेटबैक
- मुख्य सड़क से तय दूरी (सेटबैक) अनिवार्य
- संकरी सड़कों पर ऊंची इमारतों की अनुमति नहीं
🔹 पार्किंग
- हर अपार्टमेंट, मॉल और कॉम्प्लेक्स में पर्याप्त ऑन-साइट पार्किंग जरूरी
- सड़क पर पार्किंग अवैध मानी जाती है
🔹 फायर सेफ्टी
- 15 मीटर से ऊंची इमारतों के लिए फायर NOC अनिवार्य
- फायर एस्केप, स्प्रिंकलर और हाइड्रेंट सिस्टम जरूरी
🔹 रेरा प्रावधान
- बिना रेरा रजिस्ट्रेशन फ्लैट या दुकान की बिक्री गैरकानूनी
- स्वीकृत नक्शे के मुताबिक ही निर्माण अनिवार्य।
अपार्टमेंट और मॉल के मेंटेनेंस पर क्या कहते हैं नियम?
अक्सर यह मान लिया जाता है कि इमारत खड़ी हो गई और फ्लैट बिक गए, तो प्रशासन और बिल्डर की जिम्मेदारी खत्म हो गई। लेकिन बिल्डिंग बायलॉज और रेरा (RERA) ऐसा मानने की इजाजत नहीं देते।
- संरचनात्मक सुरक्षा (Structural Safety) और समय-समय पर ऑडिट अनिवार्य
- फायर अलार्म, स्प्रिंकलर, फायर एस्केप का नियमित मेंटेनेंस
- पार्किंग और कॉमन एरिया का व्यावसायिक उपयोग गैरकानूनी
- अपार्टमेंट एसोसिएशन का गठन और मेंटेनेंस फंड की पारदर्शिता जरूरी
किसी हादसे की स्थिति में मेंटेनेंस एजेंसी, अपार्टमेंट एसोसिएशन और स्थानीय निकाय-तीनों ही जवाबदेह माने जाते हैं। किसी हादसे की स्थिति में इनमें से कोई भी अपनी जवाबदेही से पीछा नहीं छुड़ा सकता
जमीनी हकीकत: नियम कागजों में, अराजकता शहर में
🔹ग्राउंड रिपोर्ट बताती है कि-
- सेटबैक खत्म कर सड़क तक निर्माण
- बेसमेंट-पार्किंग को दुकान, गोदाम या फ्लैट में तब्दील किया गया
- फायर सेफ्टी सिर्फ फाइलों में
- बिना वैध रेरा रजिस्ट्रेशन (RERA Registration) के फ्लैट बिक्री
🔹नतीजा-
- ट्रैफिक जाम
- हादसों का बढ़ता ख़तरा
- आपात स्थिति में जान-माल के नुकसान की गंभीर आशंका
जब हाईकोर्ट ने तय की थी PMC और पुलिस की जिम्मेदारी
बिहार में अवैध मल्टी-स्टोरी बिल्डिंगों का यह संकट नया नहीं है। 2013–14 में पटना में सैकड़ों मल्टी-स्टोरी इमारतों पर कार्रवाई हुई थी और यह मामला सीधे पटना हाईकोर्ट (Patna high court) तक पहुंचा था। उस वक्त कुलदीप नारायण पटना नगर निगम (PMC) के कमिश्नर हुआ करते थे। हाईकोर्ट ने तब स्पष्ट निर्देश दिए थे कि-
- अवैध और नियम-विरोधी मल्टी-स्टोरी इमारतों पर PMC गंभीरता से कार्रवाई करे
- सिर्फ नोटिस नहीं, बल्कि निर्माण रोकने और ध्वस्तीकरण तक की कार्रवाई हो
- स्थानीय पुलिस की जिम्मेदारी तय की जाए, ताकि बिल्डरों को संरक्षण न मिले
- नगर निगम, जिला प्रशासन और पुलिस समन्वय के साथ काम करें
उस दौर में PMC ने सैकड़ों इमारतों के खिलाफ विजिलेंस केस दर्ज किए थे और कई जगह निर्माण पर रोक भी लगी। यह पहला मौका था जब हाईकोर्ट ने साफ कहा था कि “अगर अवैध निर्माण चलता है, तो उसकी जिम्मेदारी सिर्फ बिल्डर की नहीं, बल्कि नगर निगम और स्थानीय पुलिस की भी होगी।”
हालांकि, समय के साथ वह सख्ती ढीली पड़ती चली गई। प्रशासनिक इच्छाशक्ति कमजोर हुई, अधिकारी बदले गए और बिल्डर लॉबी फिर मजबूत होती चली गई। नतीजा यह है कि आज वही समस्या कहीं ज्यादा बड़े और खतरनाक रूप में सामने है।
अवैध निर्माण और खराब मेंटेनेंस के असली जिम्मेदार कौन?
नगर निगम से जिला प्रशासन तक सवालों के घेरे में
🔹कानूनन-
- नगर निगम / नगर परिषद / नगर पंचायत: नक्शा स्वीकृति, निरीक्षण, सीलिंग और ध्वस्तीकरण
- JE–AE–कार्यपालक अभियंता: नियमित साइट निरीक्षण
- DM–SDM: खतरनाक इमारतों पर त्वरित कार्रवाई
- स्थानीय पुलिस: निर्माण रोकने और कानून लागू कराने की जिम्मेदारी
जब 2013–14 में हाईकोर्ट यह जिम्मेदारी तय कर चुका है, तो आज सवाल यह है कि क्या उन निर्देशों को भुला दिया गया है?
बुलडोज़र नीति पर सबसे बड़ा सवाल
जब फुटपाथ हटाने में पूरा प्रशासनिक तंत्र सक्रिय दिखता है, तो करोड़ों के अवैध अपार्टमेंट, मॉल और उनके खतरनाक मेंटेनेंस पर वही तंत्र निष्क्रिय क्यों हो जाता है?
निष्कर्ष: इतिहास भी सवाल पूछ रहा है
2013–14 के हाईकोर्ट निर्देश बताते हैं कि कानून, नियम और अधिकार पहले से मौजूद हैं। कमी सिर्फ इच्छाशक्ति और समान कार्रवाई की है। अगर बिहार सरकार वास्तव में सुशासन और कानून का समान राज चाहती है, तो-अवैध निर्माण, अवैध उपयोग, खराब मेंटेनेंस और दोषी अफसर-पुलिस-बिल्डर सब पर एकसमान कार्रवाई जरूरी है। वरना सवाल सिर्फ आज का नहीं रहेगा, बल्कि इतिहास की तरह बार-बार लौटकर पूछेगा- बिहार में बुलडोज़र चल रहा है, लेकिन क्या वह सही जगह चल रहा है?