नई दिल्ली: प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आज भारतीय ज्ञान परंपरा की उस शाश्वत सोच को रेखांकित किया, जो आत्म-अनुशासन और आत्मनिर्भरता को व्यक्ति और राष्ट्र—दोनों की प्रगति का मूल आधार मानती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की प्राचीन चिंतनधारा आज भी समकालीन चुनौतियों के समाधान का मार्ग दिखाती है।
एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर साझा अपने संदेश में प्रधानमंत्री मोदी ने संस्कृत की एक प्रसिद्ध सूक्ति का उल्लेख करते हुए पर-निर्भरता और आत्म-नियंत्रण के अंतर को स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि दूसरों पर निर्भरता व्यक्ति को कष्ट की ओर ले जाती है, जबकि अपने कर्मों और निर्णयों पर नियंत्रण स्थायी सुख और संतुलन प्रदान करता है।
प्रधानमंत्री ने संस्कृत में लिखा-
“सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्।
एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः॥”
सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्।
एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः॥ pic.twitter.com/519XHslFd4
— Narendra Modi (@narendramodi) December 15, 2025
इस सूक्ति के माध्यम से प्रधानमंत्री ने जीवन-दर्शन का सार प्रस्तुत करते हुए कहा कि आत्मनिर्भरता केवल आर्थिक अवधारणा नहीं, बल्कि मानसिक और नैतिक शक्ति का भी प्रतीक है। उन्होंने संकेत दिया कि जब व्यक्ति आत्म-अनुशासन को अपनाता है, तभी समाज और राष्ट्र सशक्त बनते हैं।
प्रधानमंत्री का यह संदेश ‘आत्मनिर्भर भारत’ की व्यापक सोच से भी जुड़ा माना जा रहा है, जिसमें व्यक्तिगत जिम्मेदारी, आत्मविश्वास और स्वावलंबन को विकास की धुरी माना गया है। उनके इस विचार को सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भारतीय मूल्यों की पुनर्स्थापना के रूप में भी देखा जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि प्रधानमंत्री द्वारा साझा की गई यह सूक्ति न केवल व्यक्तिगत जीवन के लिए मार्गदर्शक है, बल्कि नीति निर्माण और राष्ट्र निर्माण की सोच को भी नैतिक आधार प्रदान करती है।
