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मणिपुर हिंसा का असर, विधानसभा सत्र में शामिल नहीं होंगे 10 आदिवासी विधायक

नई दिल्लीः मणिपुर में दस आदिवासी विधायकों ने घोषणा की है कि वे 21 अगस्त से शुरू होने वाले आगामी विधानसभा सत्र में भाग नहीं लेंगे। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने सुरक्षा बाधाओं को इसका कारण बताया है, क्योंकि विधानसभा मैतेई-प्रभुत्व वाले इम्फाल में है।

इन 10 विधायकों में से सात सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के हैं। उन्हीं 10 विधायकों ने हाल ही में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपा था, जिसमें अनुरोध किया गया था कि उन पांच पहाड़ी जिलों के लिए मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक या इसके समकक्ष पद बनाए जाएं जहां जातीय हिंसा भड़कने के बाद से समुदाय के सदस्य रह रहे हैं।

उन्होंने खुले तौर पर मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के खिलाफ बोलते हुए कहा है कि वह ‘लगभग हर दिन पहाड़ी जिलों के गांवों पर हमला करके कुकी-ज़ो पहाड़ी आदिवासियों के खिलाफ युद्ध छेड़ते रहते हैं।’

ज्ञापन में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया था कि कुकी-ज़ो समुदाय के सदस्यों के लिए अब इंफाल जाना असंभव है। इसमें कहा गया है, ‘कोई भी कुकी-ज़ो लोग इंफाल नहीं जा सकते, न ही इंफाल की राजधानी और अन्य घाटी जिलों में तैनात सरकारी कर्मचारी अपने कार्यालयों में जा सकते हैं।’

बाद में, इसमें कहा गया है, ‘[ई] कुकी-ज़ो जनजातियों से संबंधित आईएएस और एमसीएस अधिकारी, और आईपीएस और एमपीएस अधिकारी कार्य करने और अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हैं क्योंकि इंफाल घाटी भी हमारे लिए मौत की घाटी बन गई है। ‘

मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की सरकार 21 अगस्त को मणिपुर विधानसभा के विशेष सत्र में मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता को संरक्षित करने के लिए एक प्रस्ताव पेश कर सकती है और इस तरह कुकी-ज़ो विधायकों की एक अलग प्रशासन की मांग के खिलाफ जा सकती है।